क्या ‘हाथ’ बदलेगा सपा के हालात, राष्ट्रीय पार्टी का मिलेगा दर्जा?
Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सपा और कांग्रेस के खेवनहारों में खूब जोश है। दोनों ही दलों ने विपक्षी गठबंधन इण्डिया के तहत न सिर्फ यूपी बल्कि अन्य प्रदेशों में भी एक दूसरे का साथ निभाने का फैसला किया है। जिससे न सिर्फ कांग्रेस को यूपी में अपनी खोई सियासी जमीन तलाशने में सहूलियत होगी बल्कि सपा को उन प्रदेशों में भी दस्तक देने का मौका मिलेगा, जहां उसकी भागीदारी अभी कुछ खास नहीं है।
कांग्रेस ने साइकिल की सवारी लम्बी करने का इरादा कर लिया है। तभी यूपी के अगले विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों के प्रमुख नेता एक दूसरे का हाथ थामें एक साथ साइकिल की सवारी करते नजर आएंगे। सपा मुखिया अखिलेश यादव की नजरें हरियाणा के यादव बहुल क्षेत्रों के सहारे इस प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने पर टिकी हैं।
कांग्रेस के साथ ही उनका राष्ट्रीय स्तर पर अस्तित्व बचा रह सकता
सपा के जिम्मेदार ये बखूबी समझते हैं कि कांग्रेस के हाथ के साथ ही उनका राष्ट्रीय स्तर पर अस्तित्व बचा रह सकता है। इसलिए कांग्रेस को लेकर सपा के अंदर उत्साह ज्यादा है। दोनों ही दलों के नेताओं को एक-दूसरे के प्रति किसी भी प्रकार की बयानबाजी को लेकर सख्त ताकीद किया गया है। जिससे दोनों दलों के रिश्ते अभी और मजबूत हो सकें। नतीजतन आने वाले मिशन 2027 में एकसाथ भाजपा का मुकाबला किया जा सके।
हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले सपा के विपक्षी गठबंधन इण्डिया का हिस्सा बनने को लेकर काफी खींचतान देखने को मिली थी। तब राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस उप्र में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सपा से सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार लचीला रुख अपनाए थी। आखिरकार कांग्रेस ने उप्र में केवल 17 सीटों पर ही चुनाव लडऩे की सहमति देकर सपा को अपने पाले में खींच लिया था।
हरियाणा के यादव बहुल क्षेत्रों पर टिकी अखिलेश की नजरें
सपा की राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने की उम्मीदें भी जागी हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पंजे का साथ बनाए रखना चाहेंगे। हरियाणा व महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। जहां सपा इस बार अपनी दावेदारी करेगी। विशेषकर हरियाणा में सपा यादव बहुल क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारना चाहेगी। वहीं कांग्रेस उप्र में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में चार से पांच सीटों पर अपने दावेदारी करेगी।
वंचित समाज के वोटबैंक को अपने पाले में करने का प्रयास
कांग्रेस जातीय गणना का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है और इसके जरिए वह उप्र में वंचित समाज के वोटबैंक को हथियाने की जुगत में है। कांग्रेस की इस चाल का लाभ सपा को भी मिलता दिखाई दे रहा है। उप्र में अपनी धाक बढ़ाने के लिए कांग्रेस हरियाणा व महाराष्ट्र में सपा को सीटें देने में पीछे नहीं हटेगी। सपा भी विधानसभा उपचुनाव में एनडीए की हिस्से वाली सीटें कांग्रेस को देने में गुरेज नहीं करेगी।
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