UP: कई अहम घोटालों की जांचों की रफ्तार थमी, CBI ने भी दागियों के रसूख के आगे घुटने टेके
Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: यूपी से लेकर केंद्र सरकार तक भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही हैं। इसके बावजूद दागी नौकरशाहों के खिलाफ सीबीआई जैसी एजेंसियों को मामला आगे बढ़ाने की मंजूरी नहीं मिलने से कई बड़े घोटालों की अहम जांचें पटरी से उतर चुकी हैं।
सबसे बड़ा मामला 1179 करोड़ के चीनी मिल घोटाले का है। इस घोटाले में सीबीआई ने खुद को पीएम मोदी का बेहद करीबी बताने वाले एक पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ जांच आगे बढ़ाने की मंजूरी मांगी थी। चीनी मिलों का सौदा होने के दौरान उन्हें खरीदने वाली कंपनियों को इसी अफसर ने बसपा राज के दौरान स्टांप ड्यूटी में बड़ी छूट दी थी। दो साल बाद भी उक्त प्रकरण एक इंच आगे नहीं बढ़ा।
बड़े घोटाले की जांच में सीबीआई पूरी तरह से बेबस
नतीजतन इतने बड़े घोटाले की जांच में सीबीआई पूरी तरह बेबस है। इसी तरह यूपी के बिजली विभाग में हुए हजारों करोड़ के पीएफ घोटाले में पूर्व आईएएस संजय अग्रवाल, आलोक कुमार और अपर्णा यू (सेवारत) के खिलाफ जांच करने की मंजूरी नहीं मिलने से सीबीआई अफसरों के कदम थम गए। बारी अब श्रमिकों के बच्चों के लिए शुरू सचल पालना गृह घोटाले की है।
50 करोड़ से ऊपर के इस घोटाले में सीबीआई ने तत्कालीन प्रमुख सचिव श्रम शैलेश कृष्ण और तत्कालीन समाज कल्याण बोर्ड की दो बार अध्यक्ष रही दिव्या मिश्रा के खिलाफ अभियोजन मंजूरी मांगी थी। दिव्या बसपा नेता सतीश मिश्रा की बेहद करीबी परिजन हैं। सरकार ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज करने की मंजूरी नहीं दी। इसी घोटाले में महिला कल्याण विभाग के चार छोटे कर्मियों के खिलाफ भी मांगी गयी अभियोजन मंजूरी का कुछ अता-पता नहीं है।
अखिलेश सरकार के दौरान हुआ था अरबों का रिवर फ्रंट घोटाला
उ.प्र. सहकारी चीनी मिल संघ लि. के पूर्व प्रबंध निदेशक डॉ. बीके यादव के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सीबीआई ने अभियोजन स्वीकृति मांगी थी। मंजूरी देने की जगह यादव को सीधे केंद्र में सहकारिता व किसान कल्याण विभाग में निदेशक जैसी अहम तैनाती से नवाजा गया। अगला नंबर अखिलेश सरकार के दौरान हुए अरबों के रिवर फ्रंट घोटाले का है।
जिसमें पूर्व मुख्य सचिव दीपक सिंघल और आलोक रंजन के खिलाफ जांच आगे बढ़ाने की मंजूरी सीबीआई को मांगे दो साल हो गए। इस घोटाले की जांच भी मंजूरियों के अभाव में रफ्तार नहीं पकड़ सकी। हालांकि सीबीआई को भ्रष्टों के खिलाफ मंजूरियां न दिए जाने का खेल पुराना है।
तभी 2012 से 2017 तक तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास सदाकांत शुक्ला के खिलाफ बॉर्डर एरिया घोटाले में अभियोजन मंजूरी का मामला लटका रहा था। बाद में सीबीआई को अभियोजन मंजूरी देने से साफ मना कर दिया गया।
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए भी हो रहे सम्बद्ध
खनन घोटाले में सीबीआई द्वारा नामजद आईएएस अफसरों को मानो क्लीनचिट मिल रही है। इसके संकेत केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए इन अफसरों की सम्बद्धता से लगाया जा सकता है। घोटाले की सीबीआई जांच में करीब दर्जन भर आईएएस फंसे थे। एक वरिष्ठ आईएएस पहले से अतिरिक्त रक्षा सचिव के पद पर थे। बाद में केंद्र में सचिव पद पर प्रमोशन होने के बाद रिटायर हो गए।
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