UP: शासन ने भुला दिया राज्य कर विभाग में 27 अरब की टैक्स चोरी का घोटाला

Sandesh Wahak Digital Desk: राजस्व के लिहाज से सबसे अहम राज्य कर विभाग में सरकार चाहे जिस भी दल की रही हो, सिक्का सिर्फ उन अफसरों का चलता है। जो कई घोटालों को अंजाम देने के बावजूद कभी सुखियों में आये ही नहीं।

बीते वर्षों में कई घोटालों के बावजूद सरकार ने इन अफसरों पर शिकंजा नहीं कसा। जिन अफसरों ने घोटालों का खुलासा किया, उनकी विदाई होते देर नहीं लगी। कई तो ऐसे भी हैं।, जिनकी हैसियत के आगे बड़े बड़े धनकुबेर भी पानी भरते हैं।

2700 करोड़ की टैक्स चोरी

पिछले वर्ष राज्य कर विभाग के अपर आयुक्त ओपी वर्मा ने तकरीबन 2700 करोड़ की टैक्स चोरी से जुड़े सात मामलों का खुलासा करते हुए शासन को कड़ा पत्र भेजा था। ये अफसर टैक्सचोर माफियाओं की सरपरस्ती में काम कर रहे थे। खुद की गर्दन फंसती देखकर अफसरों के गैंग ने उलटे तत्कालीन अपर आयुक्त ओपी वर्मा के ऊपर ही 70 लाख घूस लेकर विभागीय अफसरों की जांच खत्म करने के आरोप लगा दिए गए।

वर्मा ने अपने मामले समेत सभी सातों प्रकरणों की जांच एसआईटी या निष्पक्ष एजेंसी से कराये जाने की संस्तुति शासन से की थी। बस फिर क्या था, राज्य कर मुख्यालय से लेकर शासन तक मानो हड़कंप ही मच गया। नतीजतन राज्य कर विभाग के अपर आयुक्त ओपी वर्मा को यहां से हटाते हुए प्रतीक्षारत कर दिया गया था। जिन अफसरों पर टैक्स चोरी में लिप्त होने के आरोप लगे थे। उनमें से एक के खिलाफ भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।

आईटीसी में फर्जीवाड़े की उस्ताद कंपनियों को संरक्षण

अरबों के जीएसटी घोटालों के बावजूद विभाग के अफसरों के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होती है। अफसरों द्वारा गलत तरीके से आईटीसी का लाभ लेने वाली कंपनियों को संरक्षण दिया जाता है। बदले में मोटी रकम वसूली जाती है। पांच साल पुराने 382 करोड़ की टैक्स चोरी के मामले में भी गलत तरीके से आईटीसी का लाभ लेने वाली कंपनी के विरुद्ध कार्रवाई की गई तो कार्रवाई करने वाले अधिकारी को ही शिकायत करके फंसा दिया गया। विभाग में इस प्रकार के कई मामले हो चुके है। जिनमें बड़ी टैक्स चोरी पकडऩे वाले अधिकारियों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया।

आय से अधिक संपत्ति में अफसरों की जांच नहीं, मुखिया ही हटा दिए गए

2012 में तत्कालीन आयुक्त हिमांशु कुमार के कार्यकाल में भी राज्य कर विभाग के तकरीबन तीन दर्जन अफसरों के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति मामले में जांच की संस्तुति हुई थी। खुद हिमांशु ने प्रारम्भिक जांच की थी। भ्रष्ट अफसरों के दबाव में अखिलेश सरकार के दौरान तत्कालीन आयुुक्त का ही तबादला करा दिया गया। वहीं शासन ने इन अफसरों के खिलाफ जांच कराने का कोई औचित्य न पाते हुए उल्टे आयुक्त को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

तत्कालीन आयुक्त मिनिस्ती एस के स्टाफ पर लगे थे वसूली के आरोप

पिछले वर्ष दो अगस्त को शासन ने शीर्ष स्तर से मिले निर्देशों के बाद तत्कालीन आयुक्त मिनिस्ती एस के स्टाफ अफसर राजेश प्रताप सिंह चंदेल और वाणिज्य कर अधिकारी कपिल देव तिवारी को प्रतीक्षारत किया था। माना जा रहा था कि तबादलों की एवज में खुलेआम वसूली किये जाने की गोपनीय शिकायतें मुख्यमंत्री सचिवालय को प्राप्त होने के बाद इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया था। पूरा मामला ठन्डे बस्ते में चला गया। मामले की गहराई से निष्पक्ष जांच होती तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होते। चंदेल कई आयुक्तों के बेहद करीबी अफसरों में लम्बे समय से शुमार थे।

सख्त प्रमुख सचिव एम देवराज के आने से बेचैनी

हालांकि लम्बे समय बाद राज्य कर विभाग के किसी प्रमुख सचिव का दबदबा विभागीय अफसरों पर नजर आ रहा है। विभाग के प्रमुख सचिव एम देवराज हैं। जिनकी सख्त छवि से कुख्तात अफसरों में भी घबराहट मची है। एम देवराज के चलते कुछ अफसरों में बेचैनी ज्यादा है। अफसर अपने आकाओं के यहां देवराज को हटवाने की गुहार भी लगा रहे हैं। लेकिन सीएम के मिस्टर भरोसेमंद होने के चलते ही देवराज को नियुक्ति विभाग की जिम्मेदारी भी मिली हुई है। इसलिए सुनवाई नहीं हो पा रही है।

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