UP Politics: सियासी जमीन दरकते देख नए तेवरों संग मिशन 2027 में जुटीं मायावती
Sandesh Wahak Digital Desk: कुछ समय से बसपा प्रमुख मायावती के तेवर लगातार तल्ख होते जा रहे हैं। मायावती लोकसभा चुनाव के बाद एक रणनीति के सहारे अपने परंपरागत वोटरों के साथ ही ओबीसी वर्ग को भी अपने पाले में लाने की कोशिश में लगी हैं।
तभी सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण संबंधी कोटे में कोटे के फैसले से लेकर भारत बंद समेत अन्य मुद्दों पर मायावती बेहद तल्ख नजर आ रही हैं। पुन: बसपा अध्यक्ष बनने के बाद से मायावती सोशल मीडिया पर भी आक्रामक दिखीं। विश्लेषकों की नजर में मायावती अपनी सियासी जमीन को वापस पाने के लिए पूरी तरह जद्दोजहद में जुटी हैं। माना जा रहा है कि मायावती ने मिशन 2027 के लिए इसी सियासी शैली पर आगे बढऩे की योजना बनाई है।
राजनीति से संन्यास की खबरों का मायावती ने किया खंडन
मायावती पिछले महीने फिर से पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं। इस मौके पर मायावती ने न सिर्फ केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी के आरक्षण के उपवर्गीकरण वाले फैसले के बहाने घेरा बल्कि 1995 के गेस्ट हाउस कांड को लेकर कांग्रेस पर चुप रहने का आरोप लगाकर अपने इरादों को भी जताया। राजनीति से संन्यास लेने को लेकर लगने कयासों पर मायावती ने एक्स पर लिखा था कि सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। जबसे पार्टी ने आकाश आनन्द को उत्तराधिकारी के रूप में आगे किया है तबसे जातिवादी मीडिया ऐसी फेक न्यूज प्रचारित कर रहा है जिससे लोग सावधान रहें।
हाल ही में भारत बंद पर पार्टी ने इस मुद्दे के जरिए अपनी राजनीतिक जमीन को फिर हासिल करने की कोशिश की है। मायावती ने कहा कि उनके विरोधी यह अफवाह फैला रहे हैं कि वह राजनीति से रिटायर होने वाली हैं लेकिन ऐसा नहीं है। बहुजन समाज पार्टी को राजनीतिक मजबूती देना उनका मिशन है जिसके लिए पार्टी प्रदेश के सभी उपचुनाव लड़ेगी। इसके अलावा पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वह अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी। पांच बार मायावती बसपा प्रमुख रहते हुए यूपी में सरकार बना चुकी हैं।
2027 के चुनाव की तैयारियों में जुटी बीएसपी
2019 में मायावती ने पुरानी बातों को पीछे छोड़ते हुए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। पार्टी को 10 लोकसभा सीटों पर सफलता भी मिली, लेकिन पिछले चुनावों में वह बिना किसी गठबंधन के चुनावी समर में उतरी और सीटों की संख्या के मामले में 10 से शून्य पर आ गई। फिलहाल 2024 में मायावती के नए तेवर कितना रंग लाएंगे, ये तो मिशन 2027 और हाल ही में होने जा रहा उपचुनाव अपने परिणामों संग बता ही देगा।
फिर से पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद मायावती के तेवर हुए सख्त
पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद की बैठक में मायावती के तेवरों से लगता है कि वो एक बार फिर अपने कोर वोटर बहुजन समाज पर ध्यान देना चाहती हैं। उनकी रणनीति बसपा को ओबीसी समाज यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से जोड़ने की भी है। हालांकि 2007 में जब प्रदेश में पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी, उस वक्त सतीश चंद्र मिश्रा को आगे रखने से पार्टी को ब्राह्मणों का समर्थन हासिल हुआ था। बाद में पार्टी के नेताओं के बिखरने से बसपा कमजोर होती चली गयी।
सपा-कांग्रेस लौटकर बसपा के पास आएगी : विश्वनाथ पाल
बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के मुताबिक सपा-कांग्रेस ने संविधान और आरक्षण के नाम पर जनता को गुमराह किया है। ये दल लौटकर बसपा के पास जरूर आएंगे। पाल कहते हैं कि 2012 में अयोध्या में ही भाजपा के प्रत्याशियों को कहीं पांच तो कहीं आठ हजार वोट मिला था। ये चर्चा नहीं हुई कि भाजपा खत्म हो गयी है। अभी हम कटेहरी में जि़ला पंचायत का उपचुनाव जीते हैं उपचुनाव में भी बसपा को कामयाबी मिलेगी, हमारा वोट वापस लौट रहा है।
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