UP Politics: मंच पर बृजभूषण के रोने के पीछे दर्द, भावुकता या सियासत!

अयोध्या आंदोलन में चर्चा में आए बृजभूषण शरण सिंह ने तय की सियासत की बुलंदियां

Sandesh Wahak Digital Desk/A.R.Usmani: महिला खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह का दर्द आए दिन छलक पड़ता है। वह खुद को बेगुनाह बताने के साथ ही कांग्रेस को इस स्क्रिप्ट का राइटर (साजिशकर्ता) करार देते हैं। गुरुवार को एक कार्यक्रम में बृजभूषण सिंह इस कदर भावुक हुए कि उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। उन्हें मंच पर फूट-फूटकर रोता देख हर कोई स्तब्ध रह गया।

दरअसल, अयोध्या आंदोलन से उपजे इस बाहुबली नेता ने सियासत में अर्श से फर्श तक का सफर तय किया। देवीपाटन मंडल तथा आसपास के जिलों में उनकी धाक ऐसी जमी कि वे नेताजी के नाम से मशहूर हुए। बृजभूषण ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1987 में गन्ना समिति के डायरेक्टर का चुनाव लडक़र की थी। वह यह चुनाव जीत गए, लेकिन 1988 में चुनाव हार गए। इस हार के बाद बृजभूषण ने 1989-1990 में एमएलसी चुनाव लडऩे की ठानी और बीजेपी ज्वॉइन कर ली।

आडवाणी जब जेल से छूटे तो उन्होंने पहली यात्रा अयोध्या से शुरू की

बीजेपी ने टिकट दिया, लेकिन 14 वोटों से चुनाव हार गए। 1990 में ही बृजभूषण शरण अयोध्या आंदोलन से जुड़ गए। जब लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा निकली और उन्हें बिहार में गिरफ्तार किया गया तो उस समय फैजाबाद प्रशासन ने बृजभूषण शरण सिंह को एक महीने के लिए जेल में बंद कर दिया था। आडवाणी जब जेल से छूटे तो उन्होंने पहली यात्रा अयोध्या से शुरू की।

इस दौरान बृजभूषण गोण्डा से फैजाबाद, फैजाबाद से अयोध्या घाट और अयोध्या से लखनऊ तक लालकृष्ण आडवाणी की गाड़ी में सारथी बनकर साथ रहे। अयोध्या आंदोलन से जुड़ते ही बृजभूषण शरण सिंह की किस्मत पलट गई और बीजेपी ने उन्हें सीधे गोण्डा सीट से लोकसभा का टिकट दे दिया। अपने पहले संसदीय चुनाव में ही बृजभूषण शरण सिंह ने एक लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की। इसके बाद 1992 में बाबरी विध्वंस हुआ तो बृजभूषण का भी नाम आरोपियों की लिस्ट में आया। बाबरी विध्वंस केस में सीबीआई ने सबसे पहले बृजभूषण को गिरफ्तार किया। इस गिरफ्तारी के बाद बृजभूषण शरण सिंह बड़ा नाम बन चुके थे।

अयोध्या आंदोलन के गर्भ से उपजे नेता बृजभूषण शरण सिंह हर चुनाव में बुलंदी हासिल करते गए। बृजभूषण सिंह गोण्डा, बलरामपुर और कैसरगंज सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और तीनों सीटों से जीत का परचम लहरा चुके हैं। वे छह बार सांसद निर्वाचित हुए। कवि हृदय, कठोर इरादा और दृढ़ संकल्प वाले बृजभूषण शरण सिंह जब 5 सितंबर को एक कार्यक्रम में महिला पहलवानों के आरोपों को लेकर फूट-फूटकर रोने लगे तो वहां मौजूद हर व्यक्ति स्तब्ध, अवाक रह गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि बृजभूषण शरण सिंह को कभी किसी ने इस कदर रोते हुए नहीं देखा था। कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान भी उनका दर्द छलक पड़ा और वह फिर भावुक हुए।

बृजभूषण के रोने पर चर्चाएं तेज

कांग्रेस को महिला पहलवानों के आंदोलन का साजिशकर्ता और विलेन बताया। पहलवानों को कांग्रेस, दीपेंद्र हुड्डा व भूपेंद्र हुड्डा का मोहरा कहकर खुद को बेगुनाह करार दिया। हालांकि, बृजभूषण सिंह जैसे लीडर के फूट-फूटकर रोने के बाद राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कोई इसके पीछे लोगों की सहानुभूति हासिल करने की मंशा बता रहा है, तो कोई सीने में छुपा दर्द। वैसे, राजनीति के मंझे खिलाड़ी बृजभूषण के मंच पर रोने के पीछे भावुकता और सियासत साफ नजर आ रही है। दर्द इसका भी है कि पहलवान प्रकरण के चलते उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया गया। मलाल इसका भी है कि पार्टी ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया है।

विनेश व बजरंग को कांग्रेस ने मोहरे की तरह इस्तेमाल किया- बृजभूषण

भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने डब्ल्यूएफआई पर नियंत्रण और भाजपा पर हमले की अपनी साजिश में पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया। ओलंपियन पहलवान फोगाट और पुनिया के कांग्रेस में शामिल होने के एक दिन बाद भाजपा नेता बृजभूषण ने कहा कि उन्होंने 2012 के डब्ल्यूएफआई चुनाव में कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा को हराया था, इसलिए वे उनसे रंजिश रखते हैं। यौन उत्पीडऩ के आरोपों को लेकर सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दो प्रमुख चेहरे फोगाट और पुनिया के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि वे चेहरे थे… वे मोहरे थे।

भूपेंद्र हुड्डा (हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री), कांग्रेस और कांग्रेस परिवार ने उन्हें मोहरों की तरह इस्तेमाल किया। यह सब भारतीय कुश्ती महासंघ पर नियंत्रण पाने और भाजपा तथा उसकी विचारधारा पर हमला करने के लिए रची गई साजिश थी। राहुल की यह टीम, कांग्रेस इस तरह का काम करती रहती है। हुड्डा के साथ कड़े मुकाबले के बाद 2012 में सिंह को पहली बार डब्ल्यूएफआई का नियंत्रण मिला था। पिछले साल महिला पहलवानों का यौन उत्पीडऩ करने और उन्हें डराने-धमकाने के आरोप में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू होने से पहले तक उनका इस संस्था पर नियंत्रण था।

कैसरगंज क्षेत्र से छह बार लोकसभा सदस्य रहे सिंह को डब्ल्यूएफआई प्रमुख के पद से हटना पड़ा और वह अदालत में आपराधिक आरोपों का भी सामना कर रहे हैं।

उनको पद से हटाए जाने के बाद उनके करीबी संजय सिंह को डब्ल्यूएफआई का प्रमुख चुना गया, लेकिन इस संस्था को अभी तक खेल मंत्रालय से मान्यता नहीं मिली है, जबकि कुश्ती की विश्व नियामक संस्था यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने इसका समर्थन किया है।

बृजभूषण सिंह के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे फोगाट और पूनिया

शुक्रवार को फोगाट और पूनिया ने कहा कि वे सिंह के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। फोगाट ने बयान दिया था कि किसी भी महिला को वह सब न सहना पड़े, जो उन्हें सहना पड़ा है। कांग्रेस ने फोगाट को हरियाणा विधानसभा की जुलाना सीट से चुनाव मैदान में उतारा है।

इस बयान के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा, “उनके (फोगाट के) साथ क्या हुआ? जिस घटना का वह आरोप लगा रही हैं वह उस समय हुई जब मैं लखनऊ में था। समय ही सच्चाई बताएगा।” पूनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इसके विपरीत, मलिक ने राजनीति में शामिल होने से इनकार करते हुए कहा कि वह किसी भी संगठन से जुड़े बिना आंदोलन जारी रखेंगी।

रियो खेलों की स्टार खिलाड़ी ने डब्ल्यूएफआई प्रमुख के रूप में संजय सिंह के चुनाव के बाद खेल को अलविदा कह दिया था और उन्होंने दोनों पहलवानों को शुभकामनाएं देते हुए उनके फैसले को निजी पसंद बताया है।

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