UP Politics: कोर वोट में सेंधमारी या माया से गठबंधन की राह तलाश रहे अखिलेश!
UP Politics: बसपा प्रमुख मायावती ने खुले मंच से ऐलान किया कि वो किसी कीमत पर सपा के साथ नहीं जा सकती हैं। दूसरी तरफ एक विधायक के आपत्तिजनक बयान को लेकर अखिलेश यादव जिस तरह मायावती के पक्ष में मुखर हुए इससे भाजपा सतर्कता बरत रही है। इसकी बड़ी वजह मायावती का अखिलेश को धन्यवाद देना और आभार जताना है।
हालांकि भाजपा के जानकार इसे बसपा के कोर वोट में सेंधमारी के लिए अखिलेश की चाल मान रहे हैं, लेकिन राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है वाले फार्मुले को ध्यान में रखते हुए दोनों पार्टियों की हर गतिविधियों पर भाजपा की पैनी नजर है।
आरक्षण में क्रीमीलेयर बना बड़ा मुद्दा
मालूम हो कि इंडिया गठबंधन में बसपा की दखल का अखिलेश यादव ने कड़ा विरोध किया था। चुनाव परिणाम सामने आने के बाद अखिलेश का अचानक मायावती के प्रति सद्भाव राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है। इस बीच जातीय जनगणना और एससी/एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर बसपा, सपा और कांग्रेस के लिए बड़ा मुद्दा बन गया। सभी दल इसके जरिए आगामी विधानसभा चुनाव से पहले दलित और ओबीसी मतदाताओं के बीच पैठ बनाने में जुटे हैं।
मायावती कुछ ज्यादा ही आक्रामक दिख रही हैं। वो भाजपा के साथ सपा और कांग्रेस पर भी लगातार हमले कर रही हैं। तीनों पार्टियों को दलित विरोध करार देकर सपा और कांग्रेस के हर मुवमेंट को छलावा बता रही हैं। लेकिन सपा प्रमुख अखिेलश यादव मायावती को लेकर कोई ऐसा बयान नहीं दे रहे जो दलित वर्ग को मायावती के बयानों पर भरोसा करने मौका दे सके। उल्टे मायावती के साथ लगातार सद्भावपूर्ण बर्ताव करते नजर आ रहे हैं।
वोटरों को साधने में जुटे विपक्षी दल
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आरक्षण का मुद्दा ही तीनों पार्टियों के लिए वोटरों का साधने का अहम औजार है। विपक्षी दल अपने-अपने तरीके से पूरी कोशिश भी कर रहे हैं। इस नजर से देखा जाए तो मायावती जिस तरह से क्रीमीलेयर के मामले में खुद को केंद्रित कर रही हैं उससे लगता है कि वो हर हाल में सपा और कांग्रेस को इसके इर्द-गिर्द फटकने नहीं देना चाहती हैं। उनके अब तक के बयान और गतिविधियों से सपा के साथ जाने का कोई संकेत नहीं मिल रहा है।
लेकिन अखिलेश यादव जातीय जनगणना के मुवमेंट के बीच जिस तरह मायावती के प्रति नरमी बरत रहे हैं और किसी न किसी बहाने मायावती का समर्थन कर रहे उससे साफ जाहिर हो रहा कि उन्हें बसपा के साथ की दरकार है।
धन्यवाद और आभार का विश्लेषण कर रही भाजपा
मथुरा के विधायक राकेश चौधरी ने मायावती को सबसे भ्रष्ट पूर्व मुख्यमंत्री कहा तो अखिलेश यादव सीधे मायावती के बचाव में उतर आए। उन्होंने विधायक के बयान की आलोचना के साथ उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की। बदले में मायावती ने उनका धन्यवाद किया। बात यहीं नहीं रुकी, मायावती के धन्यवाद पर अखिलेश ने गहरा आभार प्रकट किया। उनके बीच आभार और धन्यवाद का यह सिलसिला दोनों के साथ आने का रास्ता बन रहा है या दलित वोट में सेंधमारी के लिए अखिलेश की गहरी चाल है। भाजपा इसका विश्लेषण कर रही है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों से बन रहे समीकरण
गत लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लडक़र सपा को यूपी में 37 सीटें मिली जो भाजपा के लिए बड़ी चुनौती की तरह है। 2019 में एक सीट पर सिमटी कांग्रेस ने सपा का साथ पकडक़र इस बार 6 सीटें हासिल कर ली। अकेले दम पर 80 सीटों पर चुनाव लडऩे वाली बसपा की झोली में एक भी सीट नहीं आई। वोटों का शेयर 10 फीसदी के आसपास था।
बसपा की स्थिति को देखते हुए विकल्प तलाशने वाले दलित वोटर भाजपा की बजाय इंडिया गठबंधन के पाले में चले गए। ऐसे में विधानसभा चुनाव में अखिलेश के लिए कांग्रेस की बजाय मायावती का साथ ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है। जानकारों का कहना है कि अखिलेश फिलहाल तो मायावती के प्रति सहानुभूति दिखाकर दलित वोटरों में अपनी छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
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