UP Politics: आकाश आनंद बिजनौर से तो सतीश चंद्र मिश्रा कानपुर से लड़ सकते हैं चुनाव!
बड़े चेहरों की तलाश में बसपा, मंथन के साथ-साथ तैयारी भी शुरू
Sandesh Wahak Digital Desk : आगामी लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी भी अलग-अलग सीटों पर अपनी रणनीति बनाने में लग गई है। पिछले दिनों ही बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर बनाए गए आकाश आनंद और बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल जैसे बड़े चेहरों के लिए पार्टी नेतृत्व सीटों की तलाश में लग गई है। पार्टी के लोगों का मानना है कि बड़े चेहरों को लड़ाकर पार्टी अपने कैडर में एक मैसेज देना चाहती है।
पार्टी बड़े चेहरों को अलग-अलग सीटों पर लड़ाने की कर रही तैयारी
बसपा के सूत्रों के माने तो पार्टी बड़े चेहरों को अलग-अलग सीटों पर लड़ाने की तैयारी में है। इसमें सबसे पहले मंथन बिजनौर सीट को लेकर के चल रहा है, जहां 1989 में पहली बार मायावती चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंची थी। इसी सीट पर इस बार बसपा आकाश आनंद को लड़ाने का मन बना रही है। समीकरण के मुताबिक सीट पर दलित और मुस्लिम वोटर बहुतायत में है, जिसके सहारे बसपा को यहां जीत की उम्मीद है।
बहुजन समाज पार्टी पिछले लंबे समय तक अपने मजबूत गढ़ रहे अंबेडकरनगर में भी उपयुक्त व्यक्ति को लड़ाना चाहती है। इस सीट पर पुराने मजबूत बसपाई अब भले पार्टी छोडक़र जा चुके हैं, लेकिन बसपा को लगता है कि इस सीट पर वह जीत इस बार फिर से दर्ज कर सकती है। वहीं कानपुर या अकबरपुर सीट पर पार्टी के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्र को लड़ाने का विचार चल रहा है। प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के लिए भी अवध से लेकर पूर्वांचल तक की किसी सीट पर मंथन कर रही है। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती के चुनाव लडऩे या ना लड़ने पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है।
अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान
बहुजन समाज पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद लोकसभा में 10 सीटें जीती थी लेकिन इस बार बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया है। बसपा नेताओं को लगता है कि अपने बड़े नेताओं को लड़ा कर छोटे कार्यकर्ताओं में एक जोश भरने का काम किया जाएगा. यूपी में लंबे समय से बसपा का ग्राफ लगातार गिर रहा है। 2007 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद 2012 में बहुजन समाज पार्टी की सीटें कम हुई, तो वहीं 2014 में बहुजन समाज पार्टी के लोकसभा चुनाव में शून्य सीटों के साथ समझौता करना पड़ा।