UP Police: यूपी के पुलिसकर्मियों में बढ़ता मानसिक तनाव बन रहा सेहत का दुश्मन

काम का दबाव, परिवार से दूरी व जरूरी मौकों पर अवकाश न मिलने के चलते आम आदमी के रक्षक हो रहे अवसाद का शिकार

Sandesh Wahak Digital Desk/ Shobhit Shukla: परिजनों से मिलने के लिए अवकाश लेने में कड़ी मशक्कत तो कभी बड़े अफसरों के चक्कर पर चक्कर, देर रात तक ड्यूटी के मद्देनजर नींद भी पूरी नहीं होना, ये दर्द यूपी पुलिस के उन जवानों का है। जिनके कंधों पर आम आदमी की सुरक्षा की अहम जिम्मेदारी है।

बढ़ते तनाव के चलते आत्मघाती कदम उठा रहे पुलिसकर्मी

पुलिसकर्मियों का दर्द अब इनकी सेहत का दुश्मन बनता जा रहा है। पुलिस का लगभग हर दसवां कर्मी डिप्रेशन (तनाव) का शिकार बताया जा रहा है। चंद पुलिसकर्मी तो  अवसाद के चलते आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाने से भी नहीं चूकते। काम का दबाव, परिवार से दूरी व अवकाश न मिलना डिप्रेशन का बड़ा कारण बन रहा है। राजधानी में सिविल पुलिस के अलावा पुलिस लाइन, पीटीसी, पीटीएस और पीएसी में भी आठ हजार से ज्यादा पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों की तैनाती है।

डिप्रेशन के इलाज के लिए रोजाना दर्जनों पुलिसकर्मी सरकारी और निजी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। डॉक्टर इन्हें दिनचर्या में बदलाव की सलाह भी देते हैं। पुलिसकर्मियों की माने तो विषम परिस्थितियों में काम करने के साथ ही हमें छोटी-छोटी गलतियों पर अफसरों की डांट भी मिलती है। परिवार को भी समय नहीं देने से दिक्कतें बढ़ रही हैं। भागदौड़ करके परिवार के लिए आवास की व्यवस्था होती हैं तो ट्रांसफर दूसरे जिले में हो जाता है। फिर वहां महीनों तक आरआई और अफसरों से आवास की गुहार लगानी पड़ती है।

इन घटनाओं से भी पुलिस अफसरों ने नहीं लिया सबक

उन्नाव में एसओ ने फांसी लगाकर आत्महत्या की। अयोध्या में पीएसी सिपाही ने जन्मभूमि परिसर में गोली मारकर आत्महत्या की। लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग में जज के आवास पर सिपाही ने छुट्टी न मिलने पर फांसी लगाकर आत्महत्या की। जिम्मेदार अफसरों ने इन घटनाओं से भी सबक नहीं सीखा।

साप्ताहिक अवकाश की योजना 2013 से दफन

राजधानी के पुलिसकर्मियों के लिए वर्ष 2013 साप्ताहिक अवकाश की सौगात लेकर आया था। गोमतीनगर और चिनहट से इसकी शुरुआत हुई। तत्कालीन डीआईजी नवनीत सिकेरा के हटते ही योजना फाइलों में कैद हो गई। वर्तमान में पुलिसकर्मियों को सालभर में सिर्फ 30 सीएल और 30 ईएल दी जाती है।

पड़ोसी राज्यों में नजदीक के जनपदों में होती है तैनाती

पड़ोसी राज्य उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में पुलिसकर्मियों को गृह जनपद के पड़ोसी जिले में नियुक्ति दी जाती है। जिससे जरूरत या छुट्टियां पडऩे पर जल्द वे अपने घर पहुंच सके। यूपी में पुलिसकर्मी को गृह जनपद से दो सौ किलोमीटर दूरी पर तैनाती दी जाती है। पुलिसकर्मियों को अवकाश देने का मुद्दा नगीना से सांसद और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद रावण भी संसद में उठा चुके हैं।

इस समस्या को लेकर अलर्ट होने की आवश्यकता है। काम का दबाव, छुट्टी न मिलने के कारण पुलिसकर्मी परिवार को समय नहीं दे पाते हैं। ड्यूटी के दबाव के चलते नींद पूरी न होने के कारण चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। छोटी-छोटी गलतियों पर गुस्सा जल्दी करने लगते हैं। तनाव से दूर रहने के लिए पुलिसकर्मियों को अपने व परिवार के लिए समय निकालना चाहिए। साथ ही यह भी समझना होगा कि व्यक्ति रोबोट नहीं है।

-डॉ. देवाशीष शुक्ला, वरिष्ठ मनोचिकित्सक

पुलिसकर्मियों के मानसिक तनाव को दूर करने के लिए समय-समय पर  काउंसिलिंग की जाती है। इस समस्या पर प्रभावी कार्य करने के लिए प्रत्येक थाने पर उपनिरीक्षक आंतरिक प्रशासन  की नियुक्ति की गई है। जिनसे मिलकर पुलिसकर्मी अपनी समस्याओं को रख सकते हैं। पुलिस लाइन में जिम व योगाभ्यास की भी व्यवस्था की गई है, जिससे वह तनाव मुक्त रह सके।

-रवीना त्यागी, डीसीपी सेंट्रल, लखनऊ कमिश्नरेट

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