UP: अफसरों ने एसआईटी का नाम बदला, जांचों की तस्वीर नहीं

नये एक्ट के जरिये सीबीआई की तर्ज पर मुख्यमंत्री योगी बनाना चाहते थे प्रदेश की सबसे तेजतर्रार एजेंसी

Sandesh Wahak Digital Desk: सीएम योगी की मंशा एसआईटी को यूपी में सीबीआई की तर्ज पर तेज तर्रार एजेंसी बनाना था। तभी दो साल पहले खुद सीएम ने सीबीआई की तर्ज पर प्रदेश में यूपी स्पेशल पुलिस स्टेबिलिशमेंट एक्ट तैयार कराने के निर्देश दिए थे।

अफसरों ने भी गजब तेजी दिखाते हुए एसआईटी का नाम बदलकर स्टेट स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसएसआईटी) रख दिया। सीबीआई जैसा ऐक्ट अभी तक नहीं तैयार नहीं हो पाया। वहीं एसआईटी में वर्षों से जारी जांचों की तस्वीर भी नहीं बदली।

दिल्ली-सहारनपुर-यमुनोत्री फोर लेन मार्ग घोटाला

सबसे पहला नाम आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे घोटाले की तर्ज पर 17 अरब से ज्यादा के उप्र स्टेट हाईवे अथॉरिटी (उपशा) के दिल्ली-सहारनपुर-यमुनोत्री फोर लेन मार्ग घोटाले की जांच का है। घोटाले को 14 बैंकों से 1700 करोड़ का ऋण लेने का अनुबंध लेकर अंजाम दिया गया था। बड़े ठेकेदारों ने काम सिर्फ 13 प्रतिशत किया, लेकिन अफसरों और सीए की मदद से भुगतान छह अरब से ज्यादा का करा लिया गया था।

उपशा के परियोजना महाप्रबंधक शिव कुमार अवधिया ने 14 बैंक अफसरों, कंपनी व प्रमोटर डायरेक्टर के खिलाफ 455 करोड़ के गबन का आरोप लगाते हुए 20 फरवरी 2017 को विभूतिखंड थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। इस घोटाले में एक कद्दावर आईएएस के ऊपर आंच आते ही एसआईटी में जांच की रफ्तार भी मानो थम सी गयी। इसी तरह दूसरा मामला अरबों के ओवरलोडिंग घोटाले का है। जिसमें कई जिलों के एआरटीओ, आरटीओ और प्रवर्तन दस्ता समेत कई परिवहन अफसरों की गर्दन फंसी हुई है।

एसआईटी की रिपोर्ट पर अभी तक कोई कार्रवाई शासन स्तर से नहीं हुई है। सूत्रों के मुताबिक एसआईटी की रिपोर्ट से परिवहन मुख्यालय में बैठे जिम्मेदार अफसरों के नाम गायब हैं। ऐसी कई अहम जांचें एसआईटी की फाइलों में कैद हैं। जिसमें कई अफसरों और नेताओं के भ्रष्टाचार के कारनामे कैद हैं।

सेवामंडल भर्ती घोटाले के बड़े आरोपियों पर मेहरबानी

सहकारिता विभाग व अधीनस्थ संस्थाओं में एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 के मध्य हुई नियुक्तियों की जांच में एसआईटी ने घोटाला बेनकाब करके सात मुकदमें दर्ज किये। संस्थागत सेवामंडल के पूर्व अध्यक्ष राम जतन यादव के खिलाफ एसआईटी ने आय से अधिक सम्पत्ति की जांच कराने के लिए गृह विभाग को पत्र भी भेजा। लेकिन इससे कई गुना अधिक सम्पत्तियां खड़ी करने वाले सेवामंडल के दूसरे पूर्व अध्यक्ष ओंकार सिंह यादव के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की सिफारिश एसआईटी ने गृह विभाग को नहीं भेजी। ओंकार यादव की लखनऊ में करोड़ों की बेहिसाब सम्पत्तियां हैं।

आगरा एक्सप्रेस-वे घोटाले की जांच रिपोर्ट दफन

सपा सरकार में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के भूमि अधिग्रहण में अरबों की हेराफेरी जमीनों के खेल से हुई थी। ईओडब्ल्यू की कानपुर इकाई ने दस जिलों में घोटाले की जांच शुरू की। तमाम जिलों के डीएम ने लम्बे समय तक जांच से जुड़े दस्तावेज ही ईओडब्ल्यू को मुहैया नहीं कराये। तत्कालीन एसपी बाबू राम ने घोटाले की रिपोर्ट में कई आईएएस को जिम्मेदार ठहराया है। जिसमें से एक अपर मुख्य सचिव रिटायर भी हो चुके हैं। इस रिपोर्ट को शासन में दफन कराकर घोटाले के दोषियों को लंबे समय से बचाया जा रहा है।

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