UP: वर्षों से डिब्बों में बंद हैं करोड़ों के चिकित्सीय उपकरण, निजी अस्पतालों जाने को मजबूर है मरीज

Sandesh Wahak Digital Desk : यूपी के सरकारी अस्पतालों में भले मानव संसाधन न हो, लेकिन उपकरणों और मशीनों को पहले ही खरीदवा लिया जाता है। करोड़ों का सरकारी बजट खर्च होने के बाद इन मशीनों का लाभ भले मरीजों को मिलने से भी अफसरों को कोई सरोकार नहीं है। दरअसल पूरा खेल दवा और उपकरण माफियाओं के इशारे पर अफसर अंजाम देते हैं।

तभी आशियाना स्थित लोकबंधु राजनारायण संयुक्त अस्पताल में एक साल से अधिक समय से फेफड़े की जांच के लिए दी गई नई ब्रांकोस्कोप मशीन डिब्बे में पैक रखी थी। नए विकल्प के तौर पर अब इस मशीन को बलरामपुर अस्पताल भेजने की प्रक्रिया शुरू की गयी है। लेकिन इस तरह के उदाहरण प्रदेश भर में फैले हैं। उपकरणों को चलाने के लिए अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है। नई मशीन का संचालन लोकबंधु अस्पताल प्रशासन मानव संसाधन न होने से नहीं कर सका था।

साल भर से लोकबंधु में रखी नई ब्रांकोस्कोप मशीन भेजी जाएगी बलरामपुर अस्पताल

अब मशीन को कबाड़ में तब्दील होने से खौफजदा स्वास्थ्य महानिदेशालय के अफसरों ने इस मशीन को बलरामपुर अस्पताल में लगाने का निर्देश दिया है। अब लोकबंधु अस्पताल में रखी ब्रांकोस्कोप मशीन जल्द बलरामपुर पहुंचा दी जाएगी। मशीन के आने के बाद कमीशनखोरी में बलरामपुर अस्पताल में अब मरीजों की फेफड़े की जांच की जा सकेगी।

स्वास्थ्य विभाग से बलरामपुर अस्पताल को नई ब्रांकोस्कोप मशीन दी जा रही है। अस्पताल के टीबी एंड चेस्ट विभाग की ओपीडी में रोजाना 200 से अधिक मरीज आते हैं। फेफड़े की जांच की सुविधा न होने से मरीज पीजीआई, केजीएमयू, लोहिया संस्थान या दूसरे निजी अस्पताल, सेंटरों पर फेफड़े की जांच करवाते हैं। बलरामपुर अस्पताल प्रशासन की ओर से काफी समय से ब्रांकोस्कोप मशीन की मांग की जा रही थी। इसे देखते हुए डीजी हेल्थ डॉ. दीपा त्यागी ने बलरामपुर अस्पताल में यह मशीन लगाने के निर्देश दिए हैं।

पैकिंग खुली नहीं, कूड़ा बन गयीं करोड़ों की किटें

यूपी मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन के भ्रष्ट अफसरों ने यही खेल करोड़ों की एचआईवी और हेपेटाइटिस एलिज़ा किटों की खरीद में किया है। लाखों के बजट के बावजूद सिर्फ कमीशनखोरी के खातिर करोड़ों की किटें खरीद ली गयी। वहीं जिलों में मनमाने तरीके से बिना मांग एक्सपायरी होने के करीब वाली किटें भेज भी दी गयीं। तमाम अस्पतालों ने इन्हे लेने से भी मना कर दिया था। डिब्बों में पड़े पड़े करोड़ों की ये किटें अब एक्सपायरी में तब्दील होकर सिर्फ मेडिकल कचरा बनकर रह गयी है।

उपकरण माफिया का खेल 

सिर्फ लखनऊ का लोकबंधु ही नहीं, सूबे के कई अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों को खरीद कर रखा गया है। एक मेडिकल कॉलेज तो ऐसा भी है, जहां कई वर्षों से चिकित्सीय उपकरण डिब्बे में पैक रखें हैं। उसकी वारंटी भी खत्म हो चुकी होगी। इन नए उपकरणों को डिब्बे से निकालने सिर्फ इसलिए नहीं दिया, ताकि उपकरण माफिया को करोड़ों के ठेके इन्ही उपकरणों के लिए मंहगी दरों पर यूपी मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन से जारी किये जा सके। इसके पीछे कार्पोरेशन में बैठे एक स्थानीय ग्रुप के बेहद करीबी अफसर का हाथ है।

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