UP News: राजकीय निर्माण निगम के इंजीनियरों को खूब लुभाती है ठेकेदारी
परदे के पीछे से चला रहे कई फर्में, दबा दिया गया ई-प्रोक्योरमेंट के बजाय मैनुअल खरीद का फर्जीवाड़ा
Sandesh Wahak Digital Desk: राजकीय निर्माण निगम में धनकुबेर इंजीनियरों की लम्बी फेहरिस्त है। हाल ही में अपर परियोजना प्रबंधक (एपीएम) राजवीर सिंह की तकरीबन सौ करोड़ की अकूत सम्पत्तियों का खुलासा विजिलेंस के छापों से हुआ है। काली कमाई को खपाने के इरादे से तीन कंपनियों को भी खड़ा किया गया था। राजवीर पहले से स्मारक घोटाले में फंसे हैं।
निर्माण निगम में ऐसे दागी इंजीनियरों की भरमार है। जो न सिर्फ खुद ठेकेदारी में लिप्त हैं बल्कि कई फर्में भी परदे के पीछे से चला रहे हैं। पूर्व एमडी सीपी सिंह की कारगुजारियां भी सामने आ चुकी हैं। शासन में मजबूत पकड़ होने के चलते ऐसे दागियों का सिक्का हर सरकार में चलता है। जांचें भी रसूख के दम पर दफन करा दी जाती हैं।
छह साल पहले लिया गया था गोपनीय जांच कराने का निर्णय
योगी सरकार के पहले कार्यकाल में शासन को निर्माण निगम के उन इंजीनियरों का कच्चा चिट्ठा भेजा गया था। जो करोड़ों के ठेके खुद ही ले रहे थे। इन इंजीनियरों ने बड़े पैमाने पर ई-प्रोक्योरमेंट के बजाय मैनुअल खरीद को अंजाम दिया है। छह साल पहले इस गड़बड़झाले की शिकायत पर शासन ने गोपनीय जांच कराने का निर्णय लिया। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में भेज दिया गया। बाकायदा निर्माण सामग्री मंहगी दरों पर खरीदकर बड़े खेल को अंजाम दिया गया था। निर्माण निगम की 110 यूनिटों में 88 सिविल और 22 इलेक्ट्रिकल से जुड़ी थीं, जिनमें पांच हजार करोड़ के निर्माण कार्यों में ऐसे फर्जीवाड़े की शिकायत हुई थी।
मोटे कमीशन के फेर में इंजीनियरों ने काम देने वाली संस्थाओं, एजेंसियों व विभागों से सीधे सेटिंग करके भुगतान सीधे यूनिटों को कराया, जबकि नियमों के मुताबिक भुगतान मुख्यालय के जरिये होना था। करीब 25 यूनिटों में तैनात इंजीनियरों ने दूसरे के नाम से कंस्ट्रक्शन फर्मों का पंजीकरण कराकर करोड़ों के ठेकों से खुद को ही नवाजा था। शासन से इन फर्मों की जांच शुरू तो हुई, लेकिन समय बीतने के साथ ही ठप भी हो गयी। ऐसे दागी इंजीनियरों को बाकायदा बाध्य सेवानिवृत्ति तक देने का निर्णय शासन के तत्कालीन अफसरों ने किया था। इसके बावजूद कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी।
पिछली सरकारों में सीएम आवास तक में मिले थे ठेके
निर्माण निगम के अधिकांश इंजीनियरों की आर्थिक सेहत सौ करोड़ से कहीं आगे है। इनमें से अधिकांश कई कन्स्ट्रक्शन फर्मों के मालिक हैं। निर्माण निगम में एक प्रमुख संघ के बड़े पदाधिकारी की पत्नी के नाम पर आरएमसी प्लांट की फर्म है। इस फर्म को पूर्ववर्ती सरकारों के दौरान सीएम आवास समेत कई प्रमुख जगहों पर खूब ठेके मिले थे। ऐसे इंजीनियरों की सूची लम्बी है।
हाईकोर्ट की स्पेशल विजिलेंस सेल ने की थी जांच
नए हाईकोर्ट के निर्माण में स्मारक घोटाले की दोषी कंपनियों को करोड़ों के ठेके बांटे गए। निर्माण का मुखिया भी घोटाले के आरोपी रहे जीएम अरविंद त्रिवेदी को बनाया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ के आदेश पर विजिलेंस सेल ने जांच की थी। लेकिन रिपोर्ट के आधार पर इंजीनियरों पर क्या कार्रवाई हुई, इसका खुलासा आजतक नहीं हुआ।
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