Kashi की प्यास बुझाने के लिए भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गया 600 करोड़, नहीं सुधरे हालात!
2019 में जल निगम पेयजल प्रखंड में 600 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था।
Sandesh Wahak Digital Desk। स्वतंत्रता के अमृतकाल में काशी नव्य हो चली है मगर एक गंभीर चिंता उसकी विकास यात्रा के साथ एक दाग चिपटी हुई है। शहर की जरूरतों का लगभग 50 पानी धरती से निकाला जा रहा है। आजादी के पहले से लगते गए नलकूप कई बार रिबोर हुए, पुराने की जगह नए लग गए लेकिन भूजल के कोश पर निर्भरता कम भी नहीं हुई, खत्म होने की बात दूर की है। आजादी के 75 वर्षों के दौरान भूजल का विकल्प नहीं ढूंढ़ा जा सका।
इधर, लगभग डेढ़ दशक पहले जब नगर निगम जलापूर्ति के लिए सीधे जिम्मेदार व जवाबदेह बनाया गया, तब भी एक प्रस्ताव तक मिनी सदन में नहीं आया। शासन ने कुछ वर्ष पहले नलकूपों से जलापूर्ति बंद करने का आदेश जारी किया। चूंकि उन नलकूपों का कोई विकल्प था नहीं, इसलिए शासनादेश भी ठंडे बस्ते में चला गया। शहर में 170 एमएलडी जल गंगा से लिया जाता है, 100 एमएलडी पानी 111 नलकूपों से मिलता है। शहर की सामान्य जरूरत 423 एमएलडी की है।
दो साल पहले वरुणापार के क्षेत्रों में ट्यूबवेलों से सप्लाई बंद करके सारनाथ डब्ल्यूटीपी से आपूर्ति शुरू हुई थी। केवल इमरजेंसी में ट्यूबवेलों के इस्तेमाल का निर्णय हुआ था। कुछ दिन बाद ही सभी नलकूप चालू करने पड़े क्योंकि तब बड़े इलाके में पाइप लाइन नहीं बिछी थी। अब सारनाथ से शिवपुर के बीच 150 किमी की लंबी पाइप लाइन बिछ चुकी है लेकिन नलकूप भी चलाने पड़ते हैं। जल निगम अभी भदैनी में 110 करोड़ से नया पंप लगा रहा है, जिससे दिसंबर 2023 तक 250 एमएलडी पेयजल आपूर्ति गंगाजल से करने का लक्ष्य है।
वर्ष 2019 में 600 करोड़ का घोटाला
2019 में जल निगम पेयजल प्रखंड में 600 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। उसमें तीन आला अफसरों समेत 26 लोगों पर कार्रवाई हुई थी। जल निगम के अधिकारियों ने ठेकेदारों से मिलकर कागज पर पेयजल पाइप लाइन बिछाकर फंड की बंदरबांट कर ली।
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