UP: जेलों में माफिया की खातिरदारी के आरोपी अफसरों को ऐसे मिलती है बहाली
Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: यूपी की जेलों के जिन गड़बड़ अफसरों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निलंबित करते हैं। उन्हें शासन में बैठे बड़े अफसर मनचाही जांच रिपोर्ट के आधार पर बहाली देने से तनिक भी गुरेज नहीं करते।
तभी जेलों में हत्याओं से लेकर गंभीर अपराधों की साजिशें तैयार करने वाले माफियाओं और अपराधियों को बढ़ावा मिलता है। शासन के आदेश पर अतीक और अशरफ जैसे बड़े माफियाओं के करीबी होने के आरोपी उन जेल अफसरों को भी बहाली दे दी गई। जिन्हे खुद सीएम योगी के आदेश पर निलंबित किया गया था। ऐसे कई कारनामों को सुप्रीम कोर्ट में गलतबयानी करके यूपी सरकार की फजीहत कराने वाले तत्कालीन प्रमुख सचिव कारागार राजेश कुमार सिंह के कार्यकाल में अंजाम दिया गया है।
इस फेहरिस्त में उस बरेली जेल के अफसरों का नाम सबसे ऊपर है। जहां प्रयागराज के चर्चित उमेश पाल हत्याकांड की साजिश तैयार हुई थी। जेल विभाग में यूपी सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी पैरों तले रौंदा जाना आम है। दागी अफसरों को बहाली देकर फिर मलाईदार जेलों की कमान थमाई जा रही है।
बरेली जेल के वरिष्ठ अधीक्षक रहे राजीव शुक्ला को सिर्फ परिनिंदा का दंड
बरेली जेल में बंद रहे माफिया अतीक अहमद के भाई अशरफ को वीआईपी ट्रीटमेंट देने से लेकर नौ शूटरों की अवैध मुलाक़ात के आरोप में मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर शासन ने तीन अप्रैल 2023 को यहां के वरिष्ठ अधीक्षक राजीव कुमार शुक्ला को निलंबित किया था। डीआईजी जेल आरएन पांडेय की रिपोर्ट पर इससे पहले कई और दागी जेल अफसरों-कर्मियों पर न सिर्फ गाज गिरी थी बल्कि मुकदमें तक दर्ज हुए थे। अतीक का बड़ा बेटा उमर भी यहीं बंद था।
पाल की हत्या के बाद एसआईटी ने बरेली जेल के नौ से ज्यादा लोगों को जेल भी भेजा था। एक ही आधारकार्ड पर कई लोगों की मुलाकातें कराई गयी थी। इसके बाद शासन ने अनुशासनिक कार्यवाही में उक्त आरोपों की जांच का जिम्मा नौ मई 2023 को डीआईजी कारागार मुख्यालय अरविन्द कुमार सिंह को सौंपा। ऐसा लगता है खुद को बचाने के लिए जेल अफसरों ने पहले ही सुनियोजित रणनीति का खाका खींच लिया था। तभी बरेली जेल में शूटरों ने जिस दिन उमेश पाल हत्याकांड की साजिश रचने के लिए अशरफ से मुलाक़ात की थी।
उस दिन 11 फरवरी को वरिष्ठ जेल अधीक्षक राजीव कुमार शुक्ला पांच दिनों के लिए अवकाश पर चले गए थे। हालांकि डीआईजी जेल बरेली की जांच में साफ़ था कि 11 फरवरी से पहले भी बंदी खालिद अजीम उर्फ अशरफ की अनाधिकृत मुलाकात का कोई संज्ञान शुक्ला द्वारा नहीं लिया जा रहा था। छुट्टी पर जाते ही शुक्ला ने वरिष्ठ अधीक्षक का चार्ज अपूर्वव्रत पाठक को दिया था। ऐसे में शुक्ल को जांच अधिकारी की रिपोर्ट में जेल मैनुअल प्रस्तर 1035 के उल्लंघन का दोषी नहीं करार दिया गया। इससे पहले भी बरेली जेल में लगातार अतीक के बेटे और भाई को वीआईपी ट्रीटमेंट देने में कोई कोताही नहीं बरती गयी थी।
जांच अधिकारी के ऊपर भी खड़े हो रहे सवाल
जांच में जेल मैनुअल प्रस्तर 1039 (1) का उल्लंघन आशिंक रूप से सिद्ध पाया गया। आरोपी जेल अधीक्षक शुक्ला ने जांच अधिकारी पर ही विस्तृत विवेचना सही से नहीं किये जाने का आरोप अपने जवाब में लगाया है। साथ ही कहा गया है कि जांच अधिकारी ने एक प्रस्तर के संबंध में दो भिन्न-भिन्न मत जाहिर किये गए हैं। ऐसे में जांच अधिकारी के ऊपर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। जांच अधिकारी ने आठ जनवरी 2024 को रिपोर्ट शासन को सौंपी।
निलंबित जेल अधीक्षक राजीव शुक्ला की बहाली की शासन को इतनी जल्दी थी कि बजाय किसी दूसरे अधिकारी से विस्तृत विवेचना कराने के, उसे 30 मई को तत्कालीन प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह के हवाले से कारागार प्रशासन एवं सुधार अनुभाग एक ने आदेश जारी करके बहाल कर दिया। उक्त आदेश में साफ़ तौर पर दिया है कि जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किसी भी साक्ष्य से राजीव शुक्ला पर आरोप साबित नहीं हो हो पाए हैं। सिर्फ अधीनस्थों पर शिथिल नियंत्रण के लिए अपचारी अधिकारी अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है।
इसलिए राजीव कुमार शुक्ला तत्कालीन वरिष्ठ जेल अधीक्षक केंद्रीय कारागार बरेली-2 को परिनिन्दा का दंड देते हुए निलंबन खत्म करके बहाली दी जाती है। जिस जेल से इतने बड़े माफियाओं द्वारा चर्चित हत्याकांड की साजिश रची गई। उसके सबसे बड़े अफसर को सिर्फ परिनिंदा प्रविष्टि दिया जाना हास्यापद प्रतीत हो रहा है। वकील उमेश पाल बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह थे।
जिनका रिटायरमेंट करीब उन्हीं को जांच अधिकारी बनाकर की खानापूर्ति
दागी जेल अफसरों की विस्तृत जांचों से खिलवाड़ कैसे होता है, इसका प्रमाण भी इसी मामले से मिलता है। राजीव शुक्ला की विस्तृत जांच कारागार मुख्यालय के जिस डीआईजी मुख्यालय अरविन्द कुमार सिंह को शासन ने सौंपी थी। उनका रिटायरमेंट भी बेहद करीब था। ऐसे में पहले से जांच मटियामेट होना तय मानी जा रही थी।
सीसीटीवी तक हटवा दिए, फिर भी मिली क्लीनचिट
स्थानीय स्तर पर तत्कालीन सीओ आशीष प्रताप सिंह की एसआईटी की रिपोर्ट में साफ़ दिया था कि बरेली जेल के जिस हिस्से में अशरफ घूमता था। वहां से जेल अफसरों ने सीसीटीवी हटवा दिए थे। जेल में अशरफ ने गुर्गों का पूरा नेटवर्क तैयार किया था। मंडलीय डीआईजी जेल आरएन पांडेय की रिपोर्ट में भी इसका जिक्र था। ऐसे में वरिष्ठ जेल अधीक्षक राजीव शुक्ला इन सबसे पूरी तरह से अनजान थे, ये तथ्य किसी के भी गले नहीं उतर सकता।
इटावा सेंट्रल जेल का वरिष्ठ अधीक्षक बनाकर किया उपकृत
पिछले दो वर्षों में कारागार महकमें ने कई दागी जेल अफसरों का निलंबन खत्म करके उन्हें बहाली दी है। बरेली जेल के वरिष्ठ अधीक्षक रहे राजीव कुमार शुक्ला को भी बहाली देने के चंद दिनों के भीतर ही इटावा सेंट्रल जेल का वरिष्ठ अधीक्षक बनाकर मलाईदार तैनाती से उपकृत कर दिया गया। ऐसे में जेल से माफिया गंभीर अपराधों की साजिशें क्यों नहीं तैयार करेंगे।
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