सपा पर ‘यादव-मुस्लिम की पार्टी’ का लगा है टैग, कैसे निपटेंगे अखिलेश?
सपा के लिए यादव-मुस्लिम की पार्टी का टैग हटाना भी बड़ी चुनौती है। इसी टैग से बाहर निकलने की छटपटाहट अखिलेश में साफ झलकती भी है।
Sandesh Wahak Digital Desk: कभी ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा का किसी एक जाति-वर्ग से हटकर हर जाति-हर वर्ग में वोट है। भाजपा की इस मजबूत कड़ी की काट के लिए ही अखिलेश यादव पीडीए की बात कर रहे हैं। रामपुर और आजमगढ़ जैसी लोकसभा सीटें उपचुनाव में गंवाने के बाद शायद सपा के थिंक टैंक को ये समझ आ गया है कि भाजपा से पार पाना है तो बस यादव-मुस्लिम वोट बैंक के सहारे नहीं रहा जा सकता।
दरअसल, नॉन यादव ओबीसी के बीच सपा की पकड़ ना के बराबर है। सपा के लिए यादव-मुस्लिम की पार्टी का टैग हटाना भी बड़ी चुनौती है। इसी टैग से बाहर निकलने की छटपटाहट अखिलेश में साफ झलकती भी है।
एक तरफ रामचरितमानस को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य की टिप्पणी के बाद अखिलेश का मौन और दूसरी तरफ नैमिषारण्य से पार्टी के चुनाव अभियान का आगाज करना। सामाजिक न्याय के मुद्दे पर आंदोलन खड़ा करने की कोशिश हो या दलितों को पार्टी से जोडऩे के लिए मान्यवर कांशीराम अभियान, अखिलेश जातीय वोटिंग पैटर्न को बदलने, नया समीकरण गढऩे की कोशिश में हैं लेकिन उनके सामने नॉन यादव ओबीसी और दलित वोटर्स को साथ लाने की कठिन चुनौती है।
पीडीए की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी
पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। किसी भी चुनाव में अगर पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग का वोट किसी एक दल को मिल जाए तो उसका जीतना तय है। ताकत की बात करें तो अनुमानों के मुताबिक यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी करीब 41 फीसदी है जिसमें करीब 10 फीसदी यादव हैं। दलित आबादी करीब 21 फीसदी और अल्पसंख्यक आबादी भी करीब 20 फीसदी होने का अनुमान है। ऐसे में देखें तो यूपी में कुल करीब 82 फीसदी आबादी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों की है।
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