Police Custody और Judicial Custody दोनों का उदेश्य एक, लेकिन नियमों में है काफी अंतर
Police Custody और Judicial Custody दोनों शब्द एक जैसे ही लगते हैं लेकिन बारीकी से अध्ययन करने के बाद इन दोनों शब्दों में अंतर साफ-साफ दिखता है।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। अभिनेत्री आकांक्षा दुबे मौत मामले में अदालत ने समर सिंह 14 दिन की न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) में भेज दिया है। ऐसे ही कई ऐसे मामलों में अक्सर पुलिस कस्टडी और न्यायिक कस्टडी जैसे शब्द सुनने को मिलते है। आज हम आपको बताने जा रहे है कि आखिर पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है।
पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी दोनों शब्द एक जैसे ही लगते हैं लेकिन बारीकी से अध्ययन करने के बाद इन दोनों शब्दों में अंतर साफ-साफ दिखता है। पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी दोनों का उदेश्य एक ही है अर्थात दोनों अपराध नियंत्रण के उपाय हैं लेकिन दोनों के नियमों में काफी अंतर है।
जानिए न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत में क्या है अंतर
पुलिस हिरासत (Police Custody)
जब एक पुलिस अधिकारी एक व्यक्ति को गंभीर अपराध करने के संदेह में गिरफ्तार करता है, तो गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिया गया बताया जाता है। पुलिस हिरासत का उद्देश्य अपराध के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए संदिग्ध से पूछताछ करना, सबूतों को नष्ट करने से रोकना और गवाहों को आरोपी द्वारा डरा-धमकाकर मामले को प्रभावित करने से बचाना है। पुलिस कस्टडी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना 24 घंटे से अधिक नहीं हो सकती। पुलिस द्वारा हिरासत में रखे गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए।
न्यायिक हिरासत (Judicial Custody)
न्यायिक हिरासत में अभियुक्त मजिस्ट्रेट की हिरासत में होगा और उसे जेल भेजा जाएगा। न्यायिक हिरासत में रखे गये आरोपी से पूछताछ के लिए पुलिस को संबंधित मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। न्यायिक हिरासत तब शुरू होती है जब न्यायाधीश आरोपी को पुलिस कस्टडी से जेल भेज देता है। ज्यूडिशियल कस्टडी में रखे गए व्यक्ति को तब तक जेल में रखा जाता है जब तक कि उसके खिलाफ मामला अदालत में चलता है या जब तक अदालत उसे जमानत पर रिहा नहीं कर देती है। पुलिस कस्टडी की अधिकतम अवधि 24 घंटे की होती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में ऐसी कोई अवधि नहीं होती है।
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