बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, कहा- दोषी होने पर भी नहीं गिराया जाना चाहिए घर
Supreme Court On Bulldozer Action: उच्चतम न्यायालय ने बुलडोजर एक्शन के मामलों की सुनवाई करते हुए कहा कि यदि शख्स किसी भी मामले में दोषी पाया भी जाता है। तब भी उसका घर गिराया जाना उचित नहीं।
बता दें कि न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं। मेहता ने कहा कि जो कार्रवाई की गई है। वह नगरपालिका कानून के मुताबिक ही की गई है। उन्होंने बताया कि अवैध कब्जे के मामलों में म्युनिसिपल संस्थाओं द्वारा नोटिस देने के बाद ही कार्रवाई की गई है। न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन ने सरकार से डिटेल में जवाब मांगा है। न्यायालय ने नोटिस, कार्रवाई और अन्य आरोपों पर सरकार को जवाब तलब किया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने बुलडोजर कार्रवाई पर उठाए सवाल
उच्चतम न्यायालय ने बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है। न्यायालय ने शासन और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी है। फिर भी उसके घर को गिराया नहीं जा सकता। तुषार मेहता ने इस बात को स्वीकार किया और कहा कि अपराध में दोषी साबित होने पर भी घर नहीं गिराया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिनके खिलाफ कार्रवाई हुई है। वे अवैध कब्जे या निर्माण के कारण निशाने पर हैं। न कि अपराध के आरोप की वजह से।
मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने पर रोक की मांग
जमीयत उलेमा ए हिन्द ने अपील दाखिल कर सरकारों द्वारा आरोपियों के घरों पर मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने पर रोक लगाने की मांग की है। अपील में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हाल में हुई बुलडोजर कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है। याचिका में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय से शीघ्र सुनवाई की अपील की गई थी।
याचिका पर की गई थी जल्द सुनवाई की मांग
वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने इस याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की थी। याचिका जहांगीरपुरी मामले में वकील फरूख रशीद द्वारा दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकारें हाशिए पर मौजूद लोगों, खासकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमन चक्र चलाकर उनके घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने को बढ़ावा दे रही हैं। जिससे पीड़ितों को कानूनी उपाय करने का मौका नहीं मिलता।
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