Special Report : मझधार में अटकी जिनकी कश्ती, वे खेवनहार बनने को तैयार
Sandesh Wahak Digital Desk: झारखंड के पूर्व सीएम चंपई सोरेन की अमित शाह से मुलाकात के बाद भाजपा में एक बार फिर बाहरी का मुद्दा गरमाने लगा है। चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने की अटकलों के बीच प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ता उन नेताओं के प्रदर्शन का विश्लेषण कर रहे हैं जो चुनाव के दौरान दूसरे दलों से आकर टिकट हासिल करने में कामयाब रहे। हालांकि दल बदलू नेताओं से फायदा-नुकसान का मुद्दा केवल भाजपा ही नहीं अन्य दलों के कार्यकर्ताओं के लिए भी अहम हो चुका है।
लोक सभा चुनाव में भाजपा को नहीं मिला अपेक्षित परिणाम
प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव और कुछ माह पूर्व हुए लोकसभा चुनाव में दल-बदलू नेताओं को लेकर भाजपा कार्यकर्ता अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। माना जा रहा है कि कार्यकताओं की नाराजगी के चलते ही लोक सभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सका।
गत विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की लहर देख कई दिग्गजों ने पार्टी का दामन थामा। कई नेताओं ने अपना टिकट कटता देख दूसरे दलों का साथ पकड़ लिया था। चुनाव के नतीजे बताते हैं कि जनता के बीच उनका कोई जादू नहीं चला। वे खुद की सीट भी नहीं निकाल पाए। वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा का कहना है कि ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद जैसे कुछ ही नेता अपनी बिरादरी का एक सीमित क्षेत्र में प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके इधर-उधर होने से उस क्षेत्र की कुछ सीटें प्रभावित होती हैं।
दल-बदलू नेताओं से नहीं मिलता राजनीतिक फायदा
लेकिन ज्यादातर दल-बदलू नेता केवल विधायक या सांसद होते हैं। किसी क्षेत्र या जाति विशेष पर इनका प्रभाव नहीं होता इसलिए इन्हें मौका देने वाली पार्टियों को कोई राजनीतिक फायदा तो नहीं मिलता उल्टा पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के रोष से चुनाव में वोटों का नुकसान उठाना पड़ता है। गत लोकसभा चुनाव में भाजपा को हुआ नुकसान इसी का नतीजा माना जा रहा है।
प्रदेश के दल बदलुओं की फेहरिस्त में पहला नाम स्वामी प्रसाद मौर्य का आता है। विधानसभा चुनाव से पहले वे भाजपा को छोडक़र सपा के साथ हो गए। सपा के टिकट फाजिलनगर सीट से चुनाव लड़ा। भाजपा के सुरेन्द्र कुशवाहा ने स्वामी प्रसाद को भारी मतों के अंतर से पटकनी दी। इसी तरह चुनाव में ठीक पहले धर्म सिंह सैनी ने भाजपा का साथ छोड़ दिया। योगी मंत्रीमंडल में जगह मिलने के बावजूद टिकट के लिए सपा के साथ हो लिए। सपा ने उन्हें नकुड़ सीट से मौका दिया, लेकिन भाजपा प्रत्याशी मुकेश चौधरी से उन्हें पराजय मिली।
नरेश सिंह सैनी ने 2022 में थामा था भाजपा का दामन
मुलायम सिंह के करीबी कहे जाने वाले हरिओम यादव भी चुनाव के वक्त भाजपा के साथ चले गए थे। भाजपा ने उन्हें सिरसागंज से टिकट दिया, लेकिन सपा के सर्वेश सिंह के सामने टिक नहीं पाए। यह सीट सपा के खाते में चली गई। कांग्रेस के टिकट पर 2017 में विधायक चुने गए नरेश सिंह सैनी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का दामन थामा था। पार्टी ने भरोसा जताते हुए उन्हें बेहट सीट पर लड़ाया लेकिन नरेश सिंह सपा के उमर अली खान से चुनाव हार गए। बरेली की कद्दावर नेता सुप्रिया ऐरन ने भी कांग्रेस का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थामा था।
बरेली कैंट से टिकट भी मिला लेकिन भाजपा के संजीव अग्रवाल से चुनाव हार गईं। जाटलैंड में खासी पकड़ रखने वाले अवतार सिंह भड़ाना चुनाव से पहले भाजपा छोडक़र राष्ट्रीय लोक दल का दामन थामा। जेवर सीट से चुनाव लड़े और भाजपा उम्मीदवार धीरेंद्र सिंह से हार गए। पुराने कांग्रेसी और अमेठी राजघराने से ताल्लुक रखने वाले संजय सिंह चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए। पाला बदलने की उनकी कोशिश को अमेठी की जनता ने स्वीकार नहीं किया और संजय सिंह सपा की महराजी देवी से हार गए।
‘झामुमो में सेकेंड लाइन के नेता है चंपई सोरेन’
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार रतींद्र नाथ का कहना है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में चंपई सोरेन ने झामुमो को 14 सीटों का फायदा पहुंचाया था। चंपई की वजह से कोल्हान क्षेत्र में एक भी सीट किसी अन्य दल को नहीं मिली। लेकिन इस बार चंपई भाजपा के साथ आते हैं तो पार्टी को कोई खास लाभ पहुंचाने की स्थिति में नहीं होंगे। रतींंद्र का कहना है कि चंपई झामुमो में सेकेंड लाइन के नेता हैं।
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उन्हें सीएम की कुर्सी मिली थी। झारखंड की जनता इसे हेमंत के कृपा पात्र की नजर से देख रही है। हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद उन्हें जनता की भारी सहानभुति मिल रही है। इसलिए चंपई सोरेन भाजपा के सहारे अपने लिए एक सीट तो सुरक्षित कर सकते हैं, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा को नुकसान पहुंचा पाना उनके लिए संभव नहीं होगा।
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