स्मृति शेष: मिला था राष्ट्रपति पुरस्कार, बेबाकी थी मौलाना राबे की पहचान
मौलाना राबे हसनी नदवी की पहचान उनके शांतिपूर्ण तरीकों और मुस्लिमों को समाज सुधार के प्रति जागरूक करना भी थी।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। मौलाना राबे हसनी नदवी की पहचान उनके शांतिपूर्ण तरीकों और मुस्लिमों को समाज सुधार के प्रति जागरूक करना भी थी। वे मुस्लिम वल्र्ड लीग के संस्थापक सदस्य आलमी रबिता अदब-ए-इस्लामी, रियाद (केएसए) के उपाध्यक्ष भी थे। उन्हें नियमित रूप से दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली मुसलमानों में सूचीबद्ध किया गया था।
मौलाना राबे मुस्लिमों को महंगी शादियों से बचने, तालीम की अहमियत और सांप्रदायिक सौहार्द पर संदेश देने के लिए जाने जाते थे। देश-विदेश में साम्प्रदायिक तनाव (communal tension) की बात पर सबसे पहले मौलाना राबे साहब अमन की मुहिम चलाते थे। मौलाना नदवी को उनकी बेबाकी के लिए जाना जाता था। मजहबी मामलों में वे समाज के लोगों को अक्सर नसीहत देते रहे। अपनी एक बैठक के दौरान उन्होंने इस्लाम धर्म को लेकर दुख जताया कि मुसलमानों ने इस्लाम धर्म को सिर्फ नमाज तक सीमित करके सामाजिक मामलों की उपेक्षा की जा रही है।
सियासी हस्तियों के बीच भी अलग शख्सियत थे मौलाना राबे
अपनी इस्लामिक नसीहतों में मौलाना राबे कहते थे कि इस्लाम धर्म जीवन के सभी क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन करता है। सियासी हस्तियों के बीच भी मौलाना साहब की अलग शख्सियत थी। इंदिरा गांधी, वीपी सिंह, मुलायम सिंह से लेकर राजनाथ सिंह समेत कई सियासी दिग्गज नदवा कालेज (Nadwa College) जाकर उनसे राय मशविरा भी करते थे।
साल 2002 में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बने थे अध्यक्ष
मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी को अरबी भाषा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 1993 में उन्हें दारूल उलूम नदवतुल उलेमा (नदवा कालेज) का मुहतमिम यानी कुलपति नियुक्त किया गया था। जून 2002 में हैदराबाद में हजरत मौलाना काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी की मृत्यु के बाद उन्हें सर्व सम्मति से आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया।
मौलाना राबे हसनी नदवी के मामू मौलाना अली मियां नदवी भी बड़े इस्लामिक विद्वान थे। सऊदी अरब सरकार ने उन्हें सबसे बड़े इस्लामिक विद्वान के सम्मान से नवाजा था। मौलाना राबे हसनी नदवी की लिखी अरबी में 15 और उर्दू में 12 किताबें भी हैं।
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