श्रावस्ती के सैकड़ों गांवों के लिए अभिशाप बनी राप्ती, कटान में दफन हुए सपने

अब तक मिट चुका है कई गांवों का नामोनिशान, सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर पीड़ित, प्रशासन भी नहीं ले रहा सुध

Sandesh Wahak Digital Desk/Mata Prasad Verma: श्रावस्ती जिले में राप्ती नदी के किनारे बसे सैकड़ों गांवों के ग्रामीणों के सपने कटान के कारण दफन राप्ती की कटान में दफन हो चुके हैं। यह नदी इन गांवों के लिए अभिशाप बन चुकी है। लगातार हो रहे कटान के कारण यहां के कई गांवों का नामोनिशान मिट चुका है।  प्रभावित लोग सडक़ों के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने पर मजबूर हैं। वहीं न तो जनप्रतिनिधि और न ही प्रशासन इनकी कोई सुध ले रहा है।

बारिश में कछार में बसे ग्रामीणों की धडक़नें तेज हो जाती है। बाढ़ से जहां किसानों की फसलें बर्बाद हो रही है, वहीं कटान से ग्रामीण बेघर व भूमिहीन हो रहे हैं। हर साल कहीं से उजाडऩा और कहीं बस जाना इनकी नियत बन चुकी है। नदी के किनारे बसे ग्रामीण यह तक नहीं जानते कि कब तक उनकी फसलें और उनका आशियाना व वे सुरक्षित हैं। उनकी खून पसीने से लगाई गई फसल कब बाढ़ में बह जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में किसान बैंकों सूदखोरों के ब्याज तले दबते जा रहे हैं।

जहरीले जीवों के काटने से अब तक कई लोगों की मौतें

यहां भारी संख्या में किसान अपनी जमीनों को औने पौने दामों पर बेच कर पलायन कर चुके हैं, जो बचे हैं वे संघर्षरत हैं। जिले में राप्ती नदी के कटान से कई गांव नक्शे से गायब हो चुके हैं। राप्ती नदी का कहर इतना है कि कभी सैकड़ों बीघे जमीन के मालिक रहे किसानों के पास आज खुद का घर बनाने के लिए जमीन तक नहीं है और वे सडक़ किनारे पटरियों पर झोपड़ी बनाकर जीवनयापन करने को मजबूर हैं। इन झोपडिय़ों पर विषैले जीव व इनके आसपास हिंसक जानवर आये दिन देखने को मिल जाते हैं। जहरीले जीवों के काटने से अब तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।

इकौना तहसील क्षेत्र अंतर्गत कोटवा गांव को राप्ती नदी तीन बार निगल चुकी है। पहली बार करीब तीन दशक कोटवा गांव का नामोनिशान खत्म हुआ। जिसके बाद लोग अपने अपने खेतों में घर बनाकर रहने लगे। एक दशक बाद राप्ती नदी खेत में बने घरों को भी निगल गई जिससे ज्यादातर ग्रामीण गांव से  पलायन कर गए, बचे लोग जहां-तहां झोपड़ी बनाकर रहने लगे। राप्ती नदी उसे भी अपने आगोश में ले लिया।

इसके बाद कुछ ग्रामीण दहावर कलां व महरौली गांव के निकट कोटवा गांव की सीमा में घर बनाकर रहने लगे। इन ग्रामीणों की संख्या काफी कम बचने के कारण कोटवा ग्राम पंचायत का विलय दहावर कलां ग्राम पंचायत में कर दिया गया। जो अब दहावर कलां ग्राम पंचायत का एक मजरा मात्र है, जिसे राप्ती नदी एक बार फिर काटने लगी है। इमलिया के कटान पीड़ितों ने ‘संदेश वाहक’ से कहा कि क्या करें?

हम भी अच्छे घरों में रहने, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने, खुद अच्छा व्यवसाय करने तथा बच्चों को अच्छी नौकरी दिलाने का सपना देखते थे। मगर राप्ती के कटान में हमारे सारे सपने दफन हो गये। जो कुछ बचा था वह नेताओं वादों और अधिकारियों की अनदेखी के कारण खत्म हो चुका है। अब हम बूढ़े हो चले हैं, बच्चों के पढ़ने-लिखने की उम्र भी निकल चुकी है।

बाढ़ की दृष्टि से अति संवेदनशील गांव

बगहा, फत्तूपुर तनाजा, मुस्काबाद, जीवनारायणपुर, बिराहिमपुर, मझौवा सुमाल, मलौना खासियारी, भुतहा, मोहम्मदपुर राजा, मानिकाकोट, बनियन पुरवा, कल्याणपुर, कोडऱी, मनकौरा, नारायणजोत, लयबुड़वा, तिवारी पुरवा, मानकोट, मनोहरापुर, बंदरहा, अंधरपुरवा, इमलिया, कोटवा, महरौली, दहावर कला, हजरिया, केशवापुर, कोडऱी दीगर, कुम्हरगढ़ी, जगरावल गढ़ी, टेड़वा, रामपुर कटेल, इटवरिया, मुजेहना, रमनगरा, मध्य नगर, खर्च वीरान, गौहनिया, केरवनिया, रामपुर त्रिभवना, विशुनापुर, कसियापुर, अमवा, मजगंवा, होलिया, बेलरी, खजुहा झुनझुनिया, लखाही खास, रघुनाथपुर, नीबाभारी, दुर्गापुर, खपरिहा, लक्ष्मनपुर सेमरहना, जोगिया, हरिहरपुर महाराजनगर, वीरपुर, घुमनी, पटना, शिकारी चौड़ा, लक्ष्मनपुर कोठी, उदलहवा, सेहरिया, महादेवा, धूमबोझी, भवानी नगर, मनकापुर, नारायणपुर, लालपुर लोहरतारा, कथरा माफी, भरथा, गजोबरी, लक्ष्मनपुर भगवानपुर, दयाली, ककरदरी, बांसगढ़ी, रामपुर भागड़, शाओपुर भागड़, घोलिया, जमदन, कुंदवा, परसा डेहरिया, कोडऱी केवट समेत सैकड़ों गांव बाढ़ के दृष्टिगत अति संवेदनशील हैं।

दीपक मीणा, आईएएस

एक दशक से अधिक समय से सड़क की पटरियों पर जीवनयापन कर रहे इमलिया के ग्रामीणों ने बताया कि सात वर्ष पूर्व तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक मीणा ने जमीन चिन्हित कर आवास बनाकर कटान पीडि़तों को बसाने का आदेश दिया था मगर जिम्मेदारों ने बाढ़ के पानी के मुख्य निकास में पडऩे वाले जमीन को ही आवास बनाने के लिए चिन्हित कर दिया। पीड़ितों ने इसका विरोध करते हुए ऊंचे स्थान पर बसाने की मांग की थी। जिसपर प्रशासन ने जमीन को कैंसिल कर दिया और दूसरी कोई जमीन भी चिन्हित नहीं की।

कटान प्रभावित गांव

ककरदरी, परसा डेहरिया, गिरंट, लक्ष्मनपुर कोठी, मधवापुर घाट, जोगिया, कसियापुर, रमनगरा, मुजेहना, इटवरिया, टेड़वा, जगरावल गढ़ी, कोटवा, कल्यानपुर, बनियन पुरवा, भुतहा, मनिकाकोट, बिराहिमपुर, जीव नारायनपुर, मुस्काबाद, बगहा आदि।

तटबंधों को भी निगल रही राप्ती नदी

राप्ती नदी के किनारे बनाए गए तटबंध पर भी कई जगह तेजी से कटान हो रही है। जिससे दर्जनों गांवों के घरों व खेतों पर भी खतरा मंडराने लगा है। जिससे आसपास के ग्रामीण सहमे हुए हैं। जानकारी के अनुसार दोंदरा गांव, परसा डेहरिया, दहावर कला, कोटवा सहित अन्य स्थानों पर राप्ती नदी तटबंध को तेजी से काट रही है। जिससे ग्रामीणों की धडक़नें बढ़ी हुई है। तटबंध कटने के बाद यदि बाढ़ आती है तो इन गांवों में बाढ़ से तबाही का खतरा भी बढ़ जायेगा। हालांकि जिला प्रशासन ने कड़ी मशक्कत कर तटबंधों के कटान पर अकुंश पा लिया है।

राप्ती नदी के कटान पीडि़त 14 परिवारों को 16.80 लाख रुपये की राहत सहायता प्रदान की जा चुकी है। जरूरतमंद पात्र चार परिवारों को आवासीय पट्टा भी दिया जा चुका है। कटान के कारण हुई भूमि/फसल क्षति का टीम बनाकर आकलन कराते हुए नियमानुसार सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया जारी है।

-अजय कुमार द्विवेदी, जिलाधिकारी, श्रावस्ती

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