Hemophilia : इंजेक्शन की आस में बढ़ रहीं हीमोफीलिया मरीजों की मुश्किलें

करोड़ों का बजट बेनतीजा, बागपत में 15 साल के किशोर की मौत, प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों में किल्लत

Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: हीमोफीलिया देखभाल कार्यक्रम के तहत करोड़ों का बजट होने के बावजूद मरीजों के लिए बेहद जरुरी फैक्टर इंजेक्शन का मानो प्रदेश भर में अकाल पड़ गया है। नतीजतन पीड़ित मरीजों की जान खतरे में है।

मेरठ में हीमोफीलिया से पीडि़त 15 साल के किशोर की इंजेक्शन (फैक्टर आठ) नहीं मिलने से मौत ने स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। हीमोफीलिया से पीडि़त बागपत के 15 वर्षीय आर्यन यादव को मेरठ के एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज से इंजेक्शन (फैक्टर 8) लगता था। 26 अगस्त की रात में तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर परिजन मेरठ में मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचे। वहां हीमोफीलिया का फैक्टर 8 उपलब्ध नहीं था। यूपी से दिल्ली तक दौड़ लगाने के बावजूद इंजेक्शन नहीं मिलने से आर्यन ने दम तोड़ दिया। ये पहला किस्सा नहीं है।

प्रदेश में सात हजार से ज्यादा हीमोफीलिया के मरीज

हीमोफीलिया से प्रदेश में हजारों लोग पीड़ित हैं। लेकिन एंटीहीमोफिलिक फैक्टर की कमी प्रदेश भर के अस्पतालों में कई महीनों से पूरी नहीं हो पा रही है। इसके लिए बजट एनएचएम से जारी होता है। कुछ दिनों पहले केजीएमयू जैसे बड़े चिकित्सा संस्थान में भी फैक्टर इंजेक्शन की कमी के चलते कई मरीजों को निराश होना पड़ा था। प्रदेश में सात हजार से ज्यादा हीमोफीलिया से पीडि़त मरीज हैं।

एक डॉक्टर के मुताबिक पिछले साल तक एसजीपीजीआई एंटीहीमोफिलिक फैक्टर खरीदता था और इसे हीमोफीलिया उपचार केंद्र को वितरित करता था। सरकार ने लगभग 18 करोड़ आवंटित किए और एनएचएम ने 39 करोड़ दिये थे। इस साल जबकि सरकार के 18 करोड़ प्राप्त हुए, एनएचएम द्वारा चार महीने बाद भी 39 करोड़ जारी नहीं करने से हालात पिछले दिनों काफी खराब हो गये थे। हालांकि अफसर अब व्यवस्था दुरुस्त होने के दावे कर रहे हैं। खुद पीजीआई में भी उम्मीद के मुताबिक इंजेक्शन मरीजों को नहीं मिलने की बात सामने आ रही। फिलहाल कड़वा सच यही है कि प्रदेश भर में हीमोफीलिया मरीजों की मुश्किलें फैक्टर इंजेक्शन न मिलने से बढ़ती जा रही हैं।

हीमोफीलिया जेनेटिक बीमारी, ब्लड से निकालते हैं फैक्टर

हीमोफीलिया रक्त से संबंधित एक जेनेटिक बीमारी है। इसमें रक्त का थक्का नहीं बनता। हीमोफीलिया के मरीजों को चढ़ाने के लिए ब्लड से फैक्टर निकाला जाता है। हीमोफीलिया ए के मरीज को फैक्टर सात, हीमोफीलिया बी के मरीज को फैक्टर आठ और हीमोफीलिया सी के मरीज को फैक्टर नौ चढ़ाया जाता है। एक बार फैक्टर चढ़वाने का खर्चा करीब 10 से 12 हजार रुपये आता है।

अफसर बोले, नियमों में बदलाव ने बढ़ाईं मुश्किलें

एनएचएम अफसरों के मुताबिक केंद्र ने बजट को चिकित्सा शिक्षण संस्थानों से जिला स्वास्थ्य प्राधिकरणों में स्थानांतरित करने का फैसला किया है। एनएचएम के एक अफसर ने कहा, जब तक नई प्रणाली पूरी तरह से चालू नहीं हो जाती, तब तक पुरानी प्रणाली प्रभावी रहेगी। केंद्र ने नियमों में बदलाव किया है। एनएचएम फंडिंग एक अस्थायी समाधान के रूप में है, जिसमें चिकित्सा संस्थानों को राज्य सरकार से अपना बजट प्राप्त करने की उम्मीद है।

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