सियासत: भाजपा की अगली रणनीति, पहले पी-डी-ए तोड़ो, फिर हिंदू जोड़ो
2027 के विधानसभा आम चुनाव के लिए पार्टी का थिंक टैंक कर सकता है करिश्मा
Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी में उपचुनाव से उत्साहित भाजपा आम चुनाव में बहुमत हासिल करने की राह पर चलने की तैयारी अभी से करने जा रही है। संगठन को बूथ स्तर पर मजबूत करने के बाद भाजपा का अगला लक्ष्य बिखरते मतों को सहेजना व विपक्ष के वोट बैंक में सेंध मारना है।
गत लोकसभा चुनाव से पीडीए अर्थात पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक की दुहाई देने वाली सपा के वोट बैंक को छिन्न-भिन्न करने की जुगत भाजपा लगा रही है। इस दिशा में भाजपा चमत्कारिक अंदाज में इन मतों को लुभा सकती है। बहुसंख्यक मतों में पिछड़े व दलित के साथ अल्पसंख्यक सिख व पसमांदा मुसलमान भी शामिल हैं। भाजपा को खतरा भी इंडिया गठबंधन के घटक दल सपा से है। वह भी खासकर तब जब कांग्रेस चुनावी हवन में घी की आहुति देकर ज्वाला को धधका रही हो।
सपा के साथ बसपा भी दावा करती आई
पिछड़े व अति पिछड़े मतों पर सपा दम भरती आई है। अल्पसंख्यक मतों पर सपा के साथ बसपा भी दावा करती आई है। यह अलग बात है कि बसपा अल्पसंख्यक अर्थात मुसलमानों पर डोरे डालने में इधर तमाम प्रयासों के बाद भी असफल रही है।
इसी का नतीजा है कि विकल्पहीनता में इनका मत या तो सपा या फिर कांग्रेस को जाता है। देखा जाए तो दलित व मुस्लिम कांग्रेस का वोट बैंक रहा है, लेकिन हिंदुत्व का टैग लगाए भाजपा को हराने की कुव्वत देखकर वह समय-समय पर पंजा और साइकिल चलाने लगता है। फिलहाल एंटी भाजपा मुस्लिम इंडिया गठबंधन की ओर ताक रहा है।
वहीं भाजपा अस्पसंख्यक मतों में फाड़ कर बड़ा हिस्सा अपने पाले में करने की कोशिश में पहले से है। मुसलमानों में एक वर्ग पसमांदा पर भाजपा दांव पर दांव पहले भी चल चुकी है और फिर चलने की तैयारी में है। हालांकि इस बात को खुलकर कहने से भाजपाई डरते हैं कि कहीं उनका वोट बैंक न भडक़ जाए। भाजपा आगामी विधानसभा के आम चुनाव में इस पर फिर से धार रख सकती है।
दलितों को पाले में लाने की जुगत में भाजपा
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक सपा पर वाई (यादव)-एम (मुस्लिम) का ठप्पा लगा हुआ है। भाजपा पहले चरण में वाई फैक्टर से परे पिछड़े व अति पिछड़े मतों को अपनाने की जुगत लगाएगी। वहीं कुंभ में पीएम मोदी स्वच्छकारों के पांव पखारकर दलितों को भाजपा के पाले में लाने की कोशिश पहले कर चुके हैं।
भाजपा ने दलितों को पाले में लाने के लिए एक और जुगत भिड़ाई कि स्थानीय स्तर पर भाजपा के जनप्रतिनिधियों को उनके घरों पर भोजन के लिए भेजा। रात बिताने के लिए भी कहा। ताकि आपसी संवाद से उनको साथ लाया जा सके। दलितों का हितैषी बताने में भाजपा काफी कुछ कामयाब भी हुई। हालांकि कई लंबरदारों व ब्राह्मणों ने मुंह-नाक सिकोडक़र दलितों के घर भोजन व रात्रि विश्राम किया। इसके अलावा हिंदुओं में आपसी उठापटक भी भाजपा के लिए चिंता का सबब बनी है। खासकर ब्राह्मण-ठाकुर के आमने-सामने होने से भाजपा को कई स्थानों पर कड़ा संघर्ष तो कहीं मुंह की खाने की भी नौबत आई और फिर आ सकती है।
उपचुनाव में भाजपा ने किया शानदार प्रदर्शन
पिछले लोकसभा व विधानसभा के उपचुनाव पर गौर करें तो भाजपा व सपा के बीच कड़ी टक्कर रही। यह टकराव लोकसभा में अधिक रहा, जबकि उपचुनाव में सरकार भी जानती है कि काफी मशक्कत के बाद सफलता हाथ आई है। नौ में छह सीटें जीतने के बाद भी करहल (मैनपुरी) व सीसामऊ (कानपुर) ने दांव दे दिया। एक सीट भाजपा की सहयोगी दल रालोद ने जीत ली।
इस तरह गठबंधन के खाते में सीटों की संख्या सत्ता दलों की सात हो गई। गठबंधन विपक्ष ने भी कर रखा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभावी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) कब तक भाजपा के साथ रहेगा और कब अलग हो जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसीलिए आज की राजनीति में कब कौन किसका दोस्त और कब दुश्मन, यह मजबूती से कह पाना टेढ़ी खीर है।
इंडिया गठबंधन बढ़ा सकता है भाजपा की मुश्किलें
विपक्षी एकजुटता में हाथी की चाल तो पहले ही भाजपा को ताकत दे रही है। इसके बाद भी पिछले विधानसभा आम चुनाव 2024 के आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा को 41.29 प्रतिशत वोट मिले। लोकसभा 2024 के आम चुनाव में भाजपा का वोट 4.73 प्रतिशत गिरा। भाजपा को 36.56 प्रतिशत वोट ही मिले। जबकि कांग्रेस को 1.52 प्रतिशत वोट बढक़र मिला। सपा को 32.03 व बसपा को 12.88 प्रतिशत वोट मिले। जनता के बीच थोड़ी या ज्यादा पैठ रखने वाले दो दलों का इंडिया गठबंधन में एक होना भाजपा को सत्ता की राह का रोड़ा नजर आता है।
गठबंधन का असर इस बार विधानसभा के आम चुनाव में भी नजर आ सकता है। राजधानी में सत्ता के गलियारे में इसकी चर्चा दबी जुबान हो भी रही है। भाजपा के कद्दावर नेता भी इस चुनौती को बखूबी समझ रहे हैं, लेकिन वह खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे है।
वह विपक्षी मतों को छिन्न-भिन्न कर पुराने वोट बैंक को बचाने के लिए एक फुल प्रूफ फॉर्मूला तैयार करने में लगे हुए है। अभी तक पार्टी कोई रणनीति तय नहीं कर पाई है कि कैसे पिछड़े-दलित व अल्पसंख्यकों का एक धड़ा अपने माफिक कर सकते हैं। जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मतों के ग्राफ गिरावट साफ नजर आ रही है।
भाजपा थिंक टैंक विपक्ष के तेवरों से निपटने की भी तोड़ तलाश रहा है। भाजपा के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भाजपा येन-केन प्रकारेण सत्ता पाने के लिए कूटनीति का भी सहारा लेने से परहेज नहीं करेगी। इस उपचुनाव में में भाजपा की सफलता इसी रणनीति का हिस्सा है।
जो राष्ट्रवादी हैं वह साथ चलेंगे
भाजपा सभी को समेटकर चलने की पक्षधर है। जो राष्ट्रभक्त हैं उनका साथ चाहिए। जो देशद्रोही हैं उनके लिए भाजपा में कोई जगह नहीं है। फिर वह किसी जाति व धर्म के हों। पिछड़े-दलित के साथ मुसलमान को भी भाजपा जोडक़र चलती है। भाजपा का यह उदारवादी चरित्र है कि वह सबको साथ लेकर आगे बढऩे व उनको बढ़ाने की नीति पर चल रही है। जाति-धर्म से परे योजनाओं का लाभ उन्होंने भी लिया है जो साथ नहीं हैं।
सलिल विश्नोई
भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष व एमएलसी
2022 में मिले मतों का प्रतिशत
भाजपा-41.29
सपा- 32.03
बसपा- 12.88
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