स्वास्थ्य विभाग में पुराने दवा-उपकरण माफिया का सिंडिकेट फिर सक्रिय

अभी सिर्फ शाहजहांपुर में सामने आया है 100 करोड़ का घोटाला, अधिकांश जिलों में सीएमओ स्तर पर सेटिंग करके हो रहा खेल

Sandesh Wahak Digital Desk: दस रूपए का पेन 95 रूपए में, एक-एक चार्ट पेपर 116 रुपए का, शाहजहांपुर के स्वास्थ्य विभाग में ऐसे ही 100 करोड़ के घोटाले की नींव रखी गयी।

जिसमें तत्कालीन सीएमओ, एसीएमओ समेत कई अफसर-कर्मी दोषी पाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग में सैकड़ों करोड़ के बजट की बंदरबांट कुछ इसी तर्ज पर अधिकांश जिलों में लम्बे समय से रफ्तार पकड़ रही है। जिसके पीछे दवा और उपकरण माफिया का पुराना सिंडिकेट है। माना जा रहा है कि सिंडिकेट पहले यूपी में अपने करीबी सीएमओ की तैनातियां कराता है, उसके बाद खरीद फरोख्त में स्थानीय बजट के जरिये फर्जीवाड़े की कलंक कथा लिखी जाती है।

महंगी दरों पर हो रही खरीद फरोख्त

शाहजहांपुर में सिर्फ पेंसिल, रबर और शार्पनर की खरीद में 19 लाख फूंक दिए गए थे। इसी तरह मेरठ के भाजपा नेता ने सीएमओ-डिप्टी सीएमओ पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाए थे। सीएम योगी को लिखे पत्र में कहा गया कि एनआरएचएम घोटाले के मुख्य आरोपी पूर्व विधायक मुकेश श्रीवास्तव लखनऊ स्थित अपने दफ्तर से जेम आईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं। आरोपों के मुताबिक उनकी फर्म से मेरठ में सामग्री की खरीद-फरोख्त हो रही है। जबकि इसे सीबीआई द्वारा ब्लैकलिस्ट किया जा चुका है।

टेंडर प्रक्रिया में भी अनियमितता करते हुए करीब तीन करोड़ की पुरानी नोटशीट पर क्रय आदेश जारी किए गए हैं। यहां भी कटघरे में सीएमओ और डिप्टी सीएमओ हैं। श्रीवास्तव के ऊपर तमाम जिलों में मनचाहे सीएमओ की तैनाती के संगीन आरोप भी लग चुके हैं। अगला नंबर बस्ती का है।

पूर्व भाजपा विधायक संजय प्रताप जायसवाल

जहां तत्कालीन डीएम आंद्रा वामसी की जांच में सीएमओ रहे आरएस दुबे करोड़ों के गबन के दोषी मिले। सख्त कार्रवाई की जगह मार्च में सीएमओ को हटा दिया गया था। शिकायत बस्ती के पूर्व भाजपा विधायक संजय प्रताप जायसवाल ने की थी। जिलों में ऐसा खेल प्रदेश भर में बड़े पैमाने पर जारी है। गहराई से जांच में दवा व उपकरण माफिया का पुराना सिंडिकेट उजागर होगा।

बसपा राज से जारी हेराफेरी के जरिये बन चुके हैं सैकड़ों करोड़ की सम्पत्तियों के मालिक
यूपी में दवा-उपकरण माफियाओं की फर्मों को लगातार ठेके मिल रहे हैं। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा का बेहद करीबी एक उपकरण माफिया व चश्मा व्यापारी लखनऊ में तमाम कीमती सम्पत्तियों का मालिक बन चुका है। फिलहाल इसकी हैसियत सैकड़ों करोड़ हो चुकी है। इसके पारिवारिक कार्यक्रम में स्वास्थ्य विभाग के कद्दावर आईएएस और सत्ताधारी बड़े नेता शिरकत करते हैं। इसकी तीन कंपनियां टेंडर डालती हैं और एक को हमेशा ठेका मिल ही जाता है। कई जांचों के बावजूद कार्रवाई नहीं होती। ये माफिया येन केन प्रकारेण बजट लाने में उस्ताद माना जाता है। इसी तरह स्वास्थ्य विभाग में एक चर्चित पुराने रसूखदार दवा-उपकरण माफिया की पुन: वापसी हो चुकी है। जिसे शीर्ष स्तर पर आशीर्वाद प्राप्त है।

एक-एक महिला के दर्जनों प्रसव और नसबंदी का खेल
एनएचएम के बजट से संचालित जननी सुरक्षा योजना को भी जिलों में फर्जीवाड़ों का अड्डा बना दिया गया है। आगरा में एक महिला की 25 बार डिलीवरी दिखाई गयी। पांच बार नसबंदी का रिकॉर्ड भी मिला है। वहीं फतेहाबाद में जननी सुरक्षा और नसबंदी में दो गांवों की तीन और महिलाओं के 52 बार प्रसव और 9 बार नसबंदी दिखाकर सरकारी पैसा हड़पा गया। प्रदेश भर के जिलों में जननी सुरक्षा योजना की व्यापक जांच होनी चाहिए।

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