मोहनलालगंज लोकसभा सीट: बीजेपी और इंडिया गठबंधन प्रत्याशियों के मध्य है टक्कर

Sandesh Wahak Digital Desk/Arvind Singh Chauhan: लोकसभा चुनाव को लेकर अब सियासी पारा चढऩे लगा है। अभी तक ग्रामीण किसान खेती के काम में पूरी तरीके से लगे हुए थे। किसान  गेहूं फसल की कटाई और मड़ाई का काम करके अब फुर्सत में हो गए हैं। ग्रामीण इलाकों के गांवों में जगह-जगह पर काफी तादाद में लोग एकत्रित होकर चुनावी चर्चा कर रहे हैं। इन लोगों के बीच में गांवों के राजनीतिक व्यक्ति पहुंचकर इनकी नब्ज टटोल कर मत लेने का प्रयास करने लगे हैं।

मतदाताओं का मत लेने के लिए नब्ज टटोल रहे कार्यकर्ता

इन गरीब ग्रामीण लोगों को कैसे बरगला कर अपने पाले में करके वादा किए गए प्रत्याशी को वोट दिलाकर अपनी मतदाताओं में पहुंच कितनी है इसका एहसास कराने के लिए लग गए हैं। जबकि इनका असली चरित्र यह है दिन में एक प्रत्याशी का समर्थन करके रात के अंधेरे में दूसरे प्रत्याशी के पास जाकर उसके समर्थन का दावा किया जाता है।

इस तरीके के भीतर घाती नेता एक दल में नहीं बल्कि सभी दलों में है। जो जीते हुए उम्मीदवार के गले में माला डालकर पांच साल के लिए उसी के पास जाकर गैरकानूनी और अनैतिक धंधों में मदद लेकर इन मतदाताओं का ही शोषण एवं दोहन करते हैं। जिसका खामियाजा चुनाव आने पर पार्टी के चुने हुए जनप्रतिनिधि को भोगना पड़ता है। मोहनलालगंज लोकसभा क्षेत्र में चुनावी हलचल तेज होने लगी है।

सपा प्रत्याशी आरके चौधरी बनाम कौशल किशोर

इस बीच भाजपा और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों ने भाग दौड़ की रफ्तार तेज होती हुईं दिखाई देने लगी है। अन्य दलों के उम्मीदवार कहां है उनकी अभी तक जनता के बीच में उपस्थित दिखाई नहीं पड़ रही है। इसलिए यह पूरी लड़ाई इन दोनों दलों के उम्मीदवारों के बीच सिमट कर रह गई है। दोनों दलों के उम्मीदवार अपने समर्थकों के साथ जनता के बीच में अपने-अपने दावे कर रहे हैं।

दो मुंहे लोग दिन में किसी की जीत का करते हैं दावा, रात के अंधेरे में दूसरे को जिताने की बनाते हैं रणनीति

चुनाव मैदान में उतरा हुआ हर एक उम्मीदवार अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मतदाताओं से अनेक वादे करते हैं। इसमें कोई शक और संदेह किसी को नहीं होना चाहिए। परंतु सबसे खराब स्थिति दलों में जुड़े दो मुंहे कार्यकर्ताओं को लेकर होती है। जो मौका परस्त कहलाते हैं। इस समय चुनाव में आगे कैसे अपनी दुकान चलती रहे इस जुगाड़ को लेकर दिन में जहां एक उम्मीदवार के पास जाकर उसे जीताने का दम भरते हुए देखें जाते हैं, वही रात के समय अंधेरे में दूसरे प्रत्याशी के पास जाकर उसे जीतने के लिए पुरी रणनीति बताते हैं। ऐसे कार्यकर्ता किसके अपने हो सकते हैं सोच जा सकता है। ऐसा नहीं है यह स्थिति किसी एक जगह पर बनी हुई है।

राजनीति में अपनी जगह बनाने की कवायद

ऐसे लोगों की संख्या सभी के पास है, लेकिन इस तरीके के धोखेबाज मौका परस्त लोगों को ज्यादा तवज्जो देने के बाद में नुकसान उसी का करते हैं जो उनकी मदद करता है। मोहनलालगंज लोकसभा क्षेत्र में इसी चरित्र के बदनाम सुदा लोग यही कार्य करके उम्मीदवारों का वोट बढ़ा नहीं रहे हैं, बल्कि अगले पांच सालों के लिए अपनी जगह बनाने में लगे हुए हैं।

जो जीत जाए उसी की चौखट पर जाकर उनकी मदद के बल पर अवैध, गलत, अनैतिक कार्यों को करके बल्कि और किसी को नहीं मतदाताओं को ही छलने और लूट-खसोट करने का काम करतें हैं और करेंगे जिससे इनके कारनामें भी जग जाहिर है। ऐसे कार्यकर्ताओं का संतुलन अभी बन नहीं पा रहा है। फिर भी संतुलन बनाने के लिए पूरे जोर-शोर से लगे हुए हैं।

इस तरह के कार्यकर्ताओं की घिनौनी राजनीति की वजह से जनप्रतिनिधियों को चुनाव के समय काफी नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि यह चुने हुए जनप्रतिनिधियों से गलत कार्यों में मदद लेकर गरीब मतदाताओं और जनता का ही शोषण करते हैं। जनप्रतिनिधियों से मदद लेने के बाद उनकी मदद चुनाव के समय करेंगे इसकी भी कोई गारंटी नहीं रहती। चुनाव कौन जीत रहा है उसी के पीछे लग जायेंगे।

जनप्रतिनिधियों को बदनाम करने की कोशिश

ऐसे नेताओं कार्यकर्ताओं से सभी जनप्रतिनिधियों को सर्तक रहने की जरूरत है। क्योंकि यह अनैतिक गलत कार्यों में मदद लेने के बावजूद आपके साथ आगे चुनाव में रहेंगे। इसका कोई भरोसा नहीं, दूसरी ओर मतदाताओं को ही नाना प्रकार से परेशान करके जनप्रतिनिधियों को बदनाम करने का काम करते हैं।

जिससे ना तो जनप्रतिनिधियों के पास मतदाता रहे जाते हैं और ना ही इनका कोई समर्थन जनप्रतिनिधियों को प्राप्त होगा इसकी हकीकत अक्सर चुनावों के समय दिखाई पड़ती है। इस चुनाव में भी कुछ ऐसा दिखाई दे रहा हैं जिसकी चर्चाएं भी क्षेत्र में हो रही है।

 

इस बार नहीं सुनाई देती कानफोड़ू लाउडस्पीकरों की आवाज

इससे पूर्व संपन्न होने वाले लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में कानफोडू़ लाउडस्पीकरों की जो आवाज सुबह से लेकर देर-रात तक आम जनता के लिए सिर दर्द बनी रहती थी इस बार सुनाई नहीं दे रही हैं। जिसको लेकर आम जनमानस ने राहत महसूस की है तथा चुनावी खर्च भी जनप्रतिनिधियों का काम हुआ है। लोकसभा व विधानसभा चुनाव के समय वाहनों में लाउडस्पीकरों को बांधकर प्रचार-प्रसार किए जाने का कार्य होता था। जिसके चलते गांवों, कस्बों में लोगों को सुकून से सोना भी मुश्किल हो जाता था, क्योंकि सुबह होते ही इन वाहनों से प्रचार किया जाता था।

खास तौर पर इन चुनावों में सबसे अच्छा तरीका वाहनों में लाउडस्पीकरों को बांधकर तेज आवाज में बजाकर दलों के प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार किए जाने यही माध्यम था। इस लोकसभा चुनाव में यदा-कदा हल्की आवाज में वाहनों में लाउडस्पीकरों को बांधकर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। जिसकी आवाज कभी कभार कुछ क्षणों के लिए भले लोगों कहीं कभी सुनाई देती है। लेकिन कानफोड़ू आवाज से राहत आम जनता को मिली है। जिसको लेकर लोगों ने राहत महसूस की है।

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