हाईकोर्ट ने पूरी चयन प्रक्रिया को दूषित कहकर किया निरस्त
राज्य होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पदों पर चयन का मामला
Sandesh Wahak Digital Desk : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के दो पदों पर चयन के मामले में करीब 10 साल से चल रही पूरी चयन प्रक्रिया को दूषित करार देकर निरस्त कर दिया। 24अगस्त 2013 के विज्ञापन से यह चयन प्रक्रिया शुरु हुई थी।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल पीठ ने यह फैसला डॉ रामचन्द्र सिंह यादव की याचिका पर दिया। याची, जो खुद इस चयन प्रक्रिया में आवेदक था, ने राज्य सरकार द्वारा 31अगस्त 2018 को जारी प्रशासनिक अनुभव प्रमाणपत्र को चुनौती दी थी। याची ने चयन प्रक्रिया में संबंधित नियमों का पालन न किए जाने का मुद्दा भी उठाया था। 24अगस्त 2013 को राज्य होम्योपैथिक मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल के दो पदों पर चयन का विज्ञापन जारी हुआ। इसमें एक पद अनारक्षित व दूसरा पद महिला के लिए आरक्षित था।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि इस चयन प्रक्रिया में अभ्यर्थियों की योग्यता व अनुभव के प्रमाणपत्र का सत्यापन कराए बगैर साक्षात्कार कराया गया।
योग्यता के सत्यापन के बगैर कोई मेरिट सूची नहीं बन सकी
योग्यता के सत्यापन के बगैर कोई मेरिट सूची नहीं बन सकी। इसके बावजूद नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को नाम भेजे गए। यह दिखाता है कि उप्र लोक सेवा आयोग और राज्य सरकार द्वारा पूरी चयन प्रक्रिया का मजाक बनाया गया। राज्य सरकार ने पहले एक अभ्यर्थी को प्रशासनिक अनुभव प्रमाणपत्र देने से इन्कार किया। बाद में रुख बदलकर इसे जारी भी कर दिया। जबकि योग्यता या अनुभव प्रमाणपत्र जारी करना या न करना, राज्य प्राधिकारियों के विवेक पर नहीं था। वे इसे जारी करने को कर्तव्यबद्ध थे।
कोर्ट ने कहा कि इन हालत ने पूरी चयन प्रक्रिया को दूषित कर दिया। इस अहम टिप्पणी के साथ कोर्ट ने पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द कर याचिका निस्तारित कर दी।
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