लखनऊ विश्वविद्यालय: छात्रावासों में कमरे खाली पर छात्रों को नहीं हो रहा आवंटन
मरम्मत तो कहीं जांच की बात कहकर झाड़ा जा रहा पल्ला
Sandesh Wahak Digital Desk/Ajay Kumar Srivastava : ऐसा नहीं है कि लखनऊ विश्वविद्यालय में केवल शिक्षक ही आवास के लिए परेशान घूम रहे हैं, बल्कि यहां के छात्र भी छात्रावासों में कमरा आवंटित कराने के लिए मारे मारे घूम रहा है। यह हालात तब है, जबकि कई छात्रावासों में कमरे सालों से खाली पड़े हैं। कई एक छात्रावास में तो एक भी छात्र नहीं रहता है। कहीं मरम्मत, तो कहीं जांच और कहीं हस्तांतरित नहीं होने की वजह बता कर आवंटन नहीं किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय में जहां एक ओर शिक्षकों के आवास खाली पड़े हैं, तो वहीं दूसरी ओर छात्रों (बालक)के छात्रावास भी खाली पड़े हैं। इसके लिए छात्र आवेदन कर रहा है। वह परिसर में रहने के लिए कमरे के आवंटन को लेकर चीफ प्रोवोस्ट और छात्र कल्याण अधिष्ठाता तक के चक्कर लगाते लगाते थक कर चूर हो रहा है, लेकिन उसे छात्रावास नसीब नहीं हो रहा है। इस मामले पर कुलपति से लेकर विश्वविद्यालय के चीफ प्रोवोस्ट और छात्र कल्याण अधिष्ठाता तक चुप्पी साधे हैं। कोई बोलने को तैयार नहीं है कि छात्रों की इस समस्या का समाधान कब तक हो जाएगा।
दो वर्ष से सुभाष छात्रावास में खाली हैं करीब 40 कमरे
वर्तमान समय में लविवि के मुख्य परिसर के अंदर लड़कों के 6 छात्रावास हैं। इसमें बड़े छात्रावास में आचार्य नरेन्द्र देव और सुभाष छात्रावास हैं। इस छात्रावास की दो वर्ष पहले मरम्मत कर दुरुस्त किया गया है। इसके बावजूद यहां पर 40 कमरें खाली पड़े हैं। कमरे बंद क्यों है? कोई बोलने को तैयार नहीं है? करीब दो वर्ष से अधिक समय से कमरे खाली पड़े हैं। छात्रों का कहना है कि भुगतान नहीं होने से कमरों का काम अधूरा पड़ा है।
नरेंद्र देव में मुट्ठी भर रह रहे विदेशी छात्र
एक ओर हजारों छात्र आवंटन के लिए भटक रहा है,तो वहीं क्षमता के लिहाज से सबसे बड़े नरेन्द्र देव छात्रावास में विदेशी छात्रों को सौंप दिया गया है। यहां पर मुठ्ठी भर विदेशी छात्र रहे रहे हैं, जबकि इसकी क्षमता करीब तीन सौ छात्र रहने की है। छात्रों का कहना है कि विदेशी छात्रों को कोई और छात्रावास दिया जा सकता था, लेकिन कुलपति ने सुनियोजित तरीके से आम छात्रों को बाहर किराए के महंगे मकान लेने के लिए विवश किया है।
छह साल से बंद पड़ा है बीरबल साहनी छात्रावास
मुख्य परिसर के बीरबल साहनी छात्रावास पीएचडी के छात्रों के लिए आरक्षित है। इसमें केवल शोध छात्र रहते थे। करीब 6 साल से छात्रावास बंद हैं। पूर्व कुलपति के एसपी सिंह के समय इसकी मरम्मत शुरू हुई थी, लेकिन आज तक इसे लविवि को हस्तांतरित नहीं हुआ है। सूत्रों का कहना है कि सारा विवाद पैसे की बंदरबाट का है। परेशान ठेकेदार छोडक़र जा चुका है। अभी छात्रावास में थोड़ा काम बिजली का बाकी है। छात्रावास के पीछे की दीवाल भी बनाई जानी है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसके लिए विवि प्रशासन धनराशि जारी नहीं कर रहा है। यहां पर करीब 96 शोध छात्रों के रहने की व्यवस्था है। इसके बावजूद शोध छात्र परिसर से बाहर रहने के लिए मजबूर हैं।
इस मामले पर चीफ प्रोवोस्ट प्रो. अनूप कुमार ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिए विवि प्रवक्ता इसके लिए अधिकृत हैं। वहीं विवि प्रवक्ता से व्हाट्सअप पर इसका जवाब मांगा गया, लेकिन उधर से कोई उत्तर नहीं दिया गया। अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो.पूनम टंडन से मोबाइल के जरिए संपर्क किया गया, पर उन्होंने मोबाइल पर बात नहीं की।
छात्रावासों को खत्म कराना लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इसके जरिए छात्रों की ताकत को खत्म किया जा रहा है, ताकि विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी और अनियमितताओं पर कोई बोल नहीं सके। वह जैसा चाहे लविवि को चलाए।
आर्यन मिश्रा, प्रदेश महासचिव, एनएसयूआई
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