Lucknow: अतिक्रमण की ‘बीमारी’ से घिरे अस्पताल, मरीजों और डॉक्टरों को हो रही परेशानी

Sandesh Wahak Digital Desk: राजधानी लखनऊ के सरकारी अस्पतालों के बाहर अतिक्रमण और जाम की समस्या मरीजों के लिए आफत बन चुकी है। शहर का शायद ही कोई ऐसा सरकारी अस्पताल हो जिसके आगे अतिक्रमण और जाम की समस्या न हो। इस समस्या से मरीज ही नहीं बल्कि तीमारदार, डॉक्टर व स्टाफ सभी परेशान हैं।

मुख्य चिकित्साधिकारी की ओर से अस्पतालों के बाहर अतिक्रमण हटाए जाने के लिए दर्जनों बार नगर निगम को पत्र लिखा जा चुका है, केजीएमयू प्रशासन भी कई बार पत्र लिखकर अतिक्रमण हटवाने की मांग कर चुका हैं। मगर, अस्पतालों के बाहर अतिक्रमण हटने का नाम ही नहीं ले रहा है।

अस्पताल प्रशासन के पत्र के बाद भी नगर निगम सुस्त

शहर की सड़कों पर जाम के कारण अक्सर एम्बुलेंस फंस जाती है। जिससे कई गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। कई बार ऐसे मामले सुर्खियों में आ चुके है बावजूद इसके अतिक्रमण हटाने का जिम्मेदार विभाग नगर निगम सुस्त है। अतिक्रमण के कारण चौड़ी-चौड़ी सडक़े जाम के झाम से जूझ रहीं हैं। अस्पताल प्रशासन की ओर से समय-समय पर भेजे जाने वाले पत्र का भी नगर निगम संज्ञान नहीं लेता है। पिछले एक साल में नगर निगम ने अस्पतालों के बाहर एक भी अतिक्रमण विरोधी अभियान नहीं चलाया है। रोस्टर प्लान के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है।

लखनऊ के ट्रामा सेंटर में रोजाना गंभीर अवस्था में मरीज पहुंते हैं जिनके जीवन के लिए एक-एक मिनट कीमती होता है। लेकिन ट्रामा सेंटर के बाहर फुटपाथ से लेकर सडक़ तक सैंकड़ों की संख्या में ठेले-खोमचे लगे देखे जा सकते हैं। जिनके कारण वहां अक्सर ट्रैफिक रेंगता रहता है। इस रैंगते हुए ट्रॉफिक में रोजाना एम्बुलेंस फंसती है। दस मिनट का रास्ता एम्बुलेंस को आधे से एक घंटे में तय करना पड़ता है। जिसका सीधा असर मरीज के जीवन पर पड़ता है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल, झलकारी बाई अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल, केजीएमयू, डॉ. राममनोहर लोहिया, वीरांगना अवंती बाई समेत कई अस्पताल अतिक्रमण और उसके कारण लगने वाले जाम से जूझ रहे हैं।

साठगांठ से लग रहा अतिक्रमण

नगर निगम और पुलिस विभाग के निचले स्तर के कर्मचारियों के निजी स्वार्थ के कारण पूरा शहर अतिक्रमण की चपेट में हैं। इसी अतिक्रमण के कारण जाम की समस्या भी पैदा होती है। सूत्र बताते हैं कि नगर निगम के कर्मी ठेला-खोमचा लगाने के एवज में प्रति ठेला 500 रुपए वसूलते हैं। जबकि पुलिस के कुछ सिपाही भी वसूली के इस खेल में शामिल रहते हैं। मेडिकल कॉलेज के बाहर ठेला लगाने वाले राजू ने बताया कि पुलिस वाले बिना रुपए दिए सामान ले जाते हैं। मना करने पर ठेला हटवाने की धमकी भी देते हैं।

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