Lucknow: नगर निगम के चीफ इंजीनियर कार्यालय में जारी वसूली का खेल
अनुभव की कमी के चलते खेल से अनजान नगर आयुक्त
Sandesh Wahak Digital Desk: भ्रष्टाचार के खिलाफ सीएम योगी की जीरो टालरेंस की नीति है। इस नीति के तहत सीएम योगी ने साफ छवि के आईएएस अफसर इन्द्रजीत सिंह को नगर निगम की कमान सौंपी थी। मगर, नगर आयुक्त की सख्ती के बावजूद नगर निगम में भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो रहा है। कुछ बड़े अफसर नगर आयुक्त की सज्जनता का फायदा उठा रहे हैं। अपने विभाग में घूसखोरी के खेल को छुपाने के लिए अफसर तरह-तरह के दांवपेंच कर रहे हैं।
नगर आयुक्त के तबादला आदेश पर नहीं हुई कार्रवाई
हम बात कर रहे हैं नगर निगम के महाभ्रष्ट चीफ इंजीनियर कार्यालय की। जिसकी कमान एक पूर्व नगर आयुक्त के समधी यानी की महेश चन्द्र वर्मा के हाथों में है। जहां विकास कार्यों की फाइलों पर बड़े पैमाने पर ठेकेदारों से हर महीने लाखों की वसूली होती है। इस वसूली के लिए नगर निगम अफसरों ने नगर आयुक्त के तबादला आदेश को भी दरकिनार कर रखा है।
यही कारण है कि चीफ इंजीनियर कार्यालय में पिछले कई सालों से पुराने चेहरे ही नजर आते हैं। इन चेहरों की चमक बरकरार रहे इसके लिए उनका तबादला हो जाने के बाद भी उन्हें दोबारा किसी न किसी तरह बुला लिया जाता है। वसूली का तमाम हिसाब-किताब सेवानिवृत्त कर्मी भी संभाल रहे हैं। अनुभव की कमी के चलते इस खेल से नगर आयुक्त पूरी तरह अंजान हैं।
चीफ इंजीनियर के चहेते बाबुओं की सूची में कई नाम शामिल
लम्बे समय से चीफ इंजीनियर कार्यालय में तैनात द्वितीय श्रेणी लिपिक पुनीत कुमार की बात करें तो इस बार हुए तबादले में उन्हें अभियंत्रण जोन-सात भेजा गया था। लेकिन चीफ इंजीनियर महेश चन्द्र वर्मा ने उन्हें एक आदेश के जरिए अपने कार्यालय में संबंद्घ कर दिया। वर्तमान में यह बाबू जोन-सात में टेंडर का काम देख रहा है और चीफ इंजीनियर कार्यालय से टेंडर भी प्रकाशित करवाता है।
चीफ इंजीनियर के चहेते बाबुओं की सूची में कई नाम शामिल हैं। जो कि चीफ इंजीनियर के नाम पर बिलों पर एक प्रतिशत की रकम वसूलते हैं। जिसके साक्ष्य हमारे पास मौजूद है। हांलाकि इस तरह की किसी भी वसूली को चीफ इंजीनियर महेश चन्द्र वर्मा ने सिरे से खारिज कर दिया है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर किस अफसर के इशारे पर वसूली का खेल चल रहा हैं।
नगर निगम में वर्ष 2015 में करोड़ों का टेंडर घोटाला उजागर हुआ था। उस समय मामले में सख्ती दिखाते हुए टेंडर बाबू राजेन्द्र यादव को निलंबित भी किया गया था। जिसकी जांच आज भी लम्बित है। बावजूद इसके नगर निगम में टेंडर का कार्य देने में मनमानी की जा रही है। जो बाबू जोन-सात में टेंडर का काम देख रहा है उसी को चीफ इंजीनियर कार्यालय में टेंडर प्रकाशित कराने की जिम्मेदारी दे रखी है। जो अपने आप में हैरानी की बात हैं।
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