Lucknow: 26 साल से राज बना इंजीनियर हत्याकांड, नहीं मिला कातिल का सुराग
हत्या क्यों और किस वजह से हुई, अभी तक नहीं मिला जवाब
Sandesh Wahak Digital Desk/Abhishek Srivastava: यूपी राज्य निर्माण निगम के सहायक अभियंता गोपाल शरण श्रीवास्तव हत्याकांड का राज 26 साल भी राज बना हुआ है। 1997 में हुए सनसनीखेज हत्याकांड में धनंजय सिंह का नाम आया। वांटेड हुआ, इनाम घोषित हुआ, फिर धनंजय ने सरेंडर किया। साक्ष्यों के अभाव में उसे बरी कर दिया गया। तत्कालीन मायावती सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम कर रहे गोपाल शरण की हत्या किसने और क्यों की? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। श्रीप्रकाश शुक्ला से लेकर कई माफिया गिरोह का नाम आया, लेकिन नतीजा नहीं निकला।
बाइक सवार दो बदमाशों ने कार धीमी करा बरसाईं थीं गोलियां
19 जुलाई 1997 की सुबह करीब साढ़े दस बजे इंदिरानगर सी-ब्लॉक चौराहे के पास बाइक सवार दो बदमाशों ने एक कार को धीमा कराया। फिर बराबर में आकर ड्राइविंग सीट पर बैठे गोपाल शरण श्रीवास्तव निवासी सी-ब्लॉक पर गोलियां बरसा दी थीं। गोली लगने से गोपाल स्टेयरिंग पर गिरे और अनियंत्रित कार ने सामने से आ रहे दो बच्चों संचित सिंह और सुधींद्र को कुचल दिया था। इस दर्दनाक हादसे में दरोगा पुत्र संचित की मौत हो गई थी। गाजीपुर पुलिस ने आनन-फानन में गोपाल शरण को अस्पताल पहुंचाया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था।
कई बिंदुओं पर शुरू हुई थी जांच
वारदात के दौरान सहायक अभियंता गोपाल शरण श्रीवास्तव की तैनाती तत्कालीन मायावती सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट अंबेडकर उद्यान पर थी। लिहाजा पुलिस ने रंजिश, ठेकेदारों से विवाद व माफिया को वसूली न देने के परिणाम जैसे तीन बिंदुओं पर जांच शुरू की। वहीं, घटनास्थल पर पुलिस को 7.63 बोर का खोखा मिला था। अधिकारियों ने आशंका जताई कि वारदात में 30 की पिस्टल का इस्तेमाल किया गया है। पुलिस ने ठेकेदार सचान समेत अन्य ठेकेदारों से पूछताछ की, लेकिन नतीजा सिफर रहा। परिजनों ने कोई निजी रंजिश भी नहीं बताई।
माफिया पर टिकी शक की सुई
पुलिस ने जांच का दायरा बढ़ाया तो पता चला कि गोपाल शरण ने किसी माफिया गिरोह को रुपए दिए थे। उक्त गिरोह का प्रतिद्वंद्वी गैंग भी वसूली का दबाव बना रहा था। मामले में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम भी उछला लेकिन पुलिस के पास कोई साक्ष्य नहीं थे। जांच की सुई धनंजय सिंह पर टिकी तो पुलिस ने तलाश शुरू की। पुलिस की छापेमारी देख धनंजय फरार हो गया। लगातार फरार होने के चलते गाजीपुर पुलिस ने उसपर 50 हजार का इनाम घोषित किया।
एनकाउंटर की कहानी चार माह बाद निकली झूठी
फरार धनंजय सिंह की तलाश में लखनऊ पुलिस की टॉप टीम छापेमारी कर रही थी। इसी बीच 17 अक्टूबर 1998 में भदोही पुलिस की एक पेट्रोल पंप पर बदमाशों से मुठभेड़ हुई। एनकाउंटर में चार बदमाश मारे गए। कहा गया था कि मारे गए बदमाशों में धनंजय सिंह और उसके साथी थे, जो पेट्रोल पंप लूटने आए थे। हालांकि महज चार माह बाद ही पुलिस की कहानी झूठी साबित हुई।
अचानक धनंजय सिंह ने किया सरेंडर
फरवरी 1999 में धनंजय सिंह ने गोपाल शरण हत्याकांड में सरेंडर कर दिया। लंबी सुनवाई और साक्ष्य के अभाव में धनंजय सिंह बरी हो गया। धनंजय के बरी होते ही सहायक अभियंता गोपाल शरण श्रीवास्तव हत्याकांड हमेशा के लिए एक रहस्य बन गया। वहीं भदोही पुलिस ने जो एनकाउंटर किया था वह सपा कार्यकर्ता ओम प्रकाश यादव और उसके साथी थे। मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच कराई और फिर तीन दर्जन पुलिसकर्मियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई।
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