Lucknow: कभी डॉ. एके सचान देते थे सात रुपये की दवा, मनी लॉन्ड्रिंग से चमकी किस्मत
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Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: केजीएमयू के फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख और शेखर अस्पताल से लेकर कई शहरों में हिन्द इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज संस्थान खड़ा करने वाले डॉक्टर आमोद कुमार सचान एक दशक पहले जहां आयकर छापों में बेनामी साम्राज्य पर बेनकाब हुए तो वर्तमान दौर में आय से अधिक सम्पत्ति मामले में ईडी और सीबीआई के शिकंजे में फंसते नजर आ रहे हैं। लखनऊ से लेकर कई बड़े शहरों में अकूत सम्पत्तियां अर्जित कर रखी हैं।
सरकारी तंत्र हमेशा केजीएमयू से लाखों रूपए वेतन पा रहे सचान के आगे घुटने टेकता नजर आया। कभी सात रूपए में दवा देने वाले डॉक्टर सचान की किस्मत मनी लॉन्ड्रिंग ने चमका कर इन्हें रातों रात धनकुबेर बनाया। नेताओं, अफसरों और बड़े डॉक्टरों ने सचान के सहारे काली कमाई को सफ़ेद करने का खेल वर्षों पहले शुरू कर दिया था। सचान के भाजपा नेताओं से भी करीबी संबंध हैं।
1987 में इंदिरानगर में सात रुपये की दवा देेते थे सचान
एनआरएचएम घोटाले की मछलियों का भी कालाधन निवेश होने की बात सामने आ रही है। 1987 में इंदिरानगर में दो कमरे के साधारण दवाखाने के जरिये डॉक्टर सचान मरीजों को सात रुपए में दवा देते थे। बाद में इसी दवाखाने में टीन शेड डालकर छोटा सा नर्सिंग होम खोला। जो आज करोड़ों का शेखर अस्पताल है। सचान के करीबियों की माने तो केजीएमयू से 90 के दशक में रिटायर डॉ.हरीश चंद्रा (यूरोसर्जन) का भारी पैसा शेखर अस्पताल में तब लगा था।
डॉ. चंद्रा ही शेखर अस्पताल में अपने पैसे से इंपोर्ट कराकर लिथोट्रिप्सी की मशीन 95-96 के आस-पास खरीद कर लाए थे। यह लखनऊ की पहली मशीन थी। 2002 में डॉ. सचान बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर केजीएमयू के फार्माकोलॉजी विभाग में भर्ती हुए। बसपा सरकार के दौरान मंत्री रहे संग्राम सिंह की काली कमायी भी खपाये जाने के संकेत हैं। केजीएमयू के पूर्व रजिस्ट्रार वीपी सिंह को भी अपने कालेज के ट्रस्टियों के पैनल में सचान ने शामिल किया था। इस अफसर के ऊपर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप थे।
एनआरएचएम घोटाले में आरोपी सीएंडडीएस के प्रोजेक्ट मैनेजर सुनील वर्मा ने शेखर हार्ट एंड लंग सेंटर खड़े होकर अपनी निगरानी में बनवाया है। वर्मा ने सीबीआई के डर से गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी । सचान के संस्थानों में इसकी काली कमाई खपाये जाने की जांच नहीं हुई। तत्समय एक वरिष्ठ न्यायाधीश व नामी वकील के भी बेहद करीबी संबध डॉ. सचान से थे। सफेदपोश नेताओं और अफसरों समेत ऐसे कई बड़े नाम हैं। जिनके कनेक्शन की एजेंसियों ने जांच करना जरुरी नहीं समझा। एजेंसियों से बचने के लिए डॉ. एके सचान ने अरबों की मिल्कियत पत्नी रिचा मिश्रा के नाम करके उसे डायरेक्टर बना दिया।
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दस साल पहले खातों में आये थे दस करोड़, अफसरों को किया उपकृत, जांच अधूरी
2013 में आयकर विभाग की जांच में डॉ सचान और रिचा मिश्रा के पांच बैंक खातों ने कई राज खोले। खातों में दस करोड़ जमा हुए थे। बसपा सरकार के दौरान निजी बैंक के खाते में 78 लाख 90 हजार, दूसरे बचत खाते में 2008 से 2011 के बीच तीन करोड़ 57 लाख 92 हजार, तीसरे खाते में 2012 में एक करोड़ 77 लाख 85 हजार 165 व चौथे में तीन करोड़ 33 लाख 94 हजार 800 रुपये जमा हुए। एक अन्य खाते में 53 लाख रुपये जमा किए गए। आयकर विभाग ने तत्कालीन लोकायुक्त से जांच की सिफारिश की।
लोकायुक्त ने मामला मुख्यमंत्री सचिवालय भेजा। जहां से जांच के आदेश तो हुए, लेकिन वो मुकाम तक केजीएमयू के किसी भी वीसी ने पहुंचने नहीं दी। केजीएमयू के पूर्व वीसी रविकांत की पत्नी को सचान ने अपने कॉलेज में प्रिंसिपल बनवा दिया था। इसी तरह हमेशा केजीएमयू के अफसरों को उपकृत किया जाता रहा। अब ईडी ने सचान के खातों में 50 करोड़ का लेनदेन पकड़ा है। हिंद चैरिटेबल और बालाजी चैरिटेबल ट्रस्ट की गहराई से जांच जरुरी है। जिसके बाद कई बड़ों के असली चेहरे सामने आएंगे।
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