Lucknow Crime : AK 47 और पिस्टल से चार पर मौत बरसाने वाले कौन ? 25 साल में भी नहीं पता
कोऑपरेटिव बैंक प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष उपेंद्र विक्रम सिंह, उनके गनर समेत चार की हत्या का मामला
Sandesh Wahak Digital Desk/Abhishek Srivastava: कैंट स्थित शिवनारायण पेट्रोल पंप के पास लाल बत्ती लगाई सरकारी एंबेसडर कार सवार कोऑपरेटिव बैंक प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष उपेंद्र विक्रम सिंह, उनके गनर, चालक और ठेकेदार की हत्या किसने और क्यों की? इसका सवाल आज भी यूपी पुलिस के तेजतर्रार अफसरों (अब रिटायर) के पास भी नहीं है।
हालांकि पुलिस ने 90 के दशक के खूंखार माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला को आरोपी बनाया। बृजेश सिंह, हरिहर उर्फ पांचू सिंह, नागेंद्र सिंह समेत पूर्वांचल के कई अपराधियों की कुंडली खंगाली गई। लेकिन श्रीप्रकाश के एनकाउंटर के बाद ही कैंट पुलिस ने फाइल को बंद कर दिया। करीब 25 साल बाद भी पुलिस घटना का मोटिव नहीं खोज पाई।
18 जनवरी 1998 को कोऑपरेटिव बैंक प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष उपेंद्र विक्रम सिंह हजरतगंज स्थित कार्यालय एक बैठक में शामिल होने आए थे। बैठक के बाद दोपहर में वे, सरकारी चालक, गनर और ठेकेदार सुधीर शुक्ला के साथ एंबेसडर (यूपी 32 एम 4500) से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जाने के लिए निकले थे। जैसे ही गाड़ी कटाई वाला पुल क्रॉस कर शिव नारायण पेट्रोल पंप के पास पहुंची।
तभी दो बदमाशों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। हमले में कार सवार उपेंद्र समेत चारों की मौत हो गई। सूचना मिलते ही पुलिस और उपेंद्र के भाई रवींद्र विक्रम सिंह उर्फ खोखा भी रिश्तेदारों के साथ मौके पर पहुंच गए थे।
श्रीप्रकाश के एनकाउंटर के बाद कई रहस्य के साथ केस हुआ बंद
सनसनीखेज हत्याकांड के बाद केस पर लगी कई टीमों ने महीनों तक पूर्वांचल में पड़ताल की। लगभग सभी गैंग की कुंडली खंगाली लेकिन कोई भी सुराग नहीं मिला। उधर पुलिस व एसटीएफ नामजद श्रीप्रकाश शुक्ला की जोरों से तलाश कर रही थी। 22 सितबर 1998 को गाजियाबाद में एसटीएफ ने श्रीप्रकाश शुक्ला को मुठभेड़ में ढेर किया।
उसके मारे जाने के बाद कैंट पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस को भी बंद कर दिया। केस बंद होते ही कई सवाल जैसे हत्या की वजह क्या थी? अगर श्रीप्रकाश ने हत्या की तो दो अन्य कौन थे? वारदात में प्रयुक्त पिस्टल और एके 47 कहां गई? का राज भी दफन हो गया।
अपनी तरफ निशाना देख परिचित ने मोड़ ली टाटा सूमो
पुलिस ने पड़ताल शुरू की तो पता चला कि उपेंद्र की कार के पीछे परिचित रत्नाकर और राधे भी टाटा सूमो से आ रहे थे। उनके पास एक राइफल भी थी। पुलिस ने दोनों से पूछताछ की। सामने आया कि जैसे ही उनकी गाड़ी कटाई पुल से रायबरेली रोड की तरफ मुड़ी, गोलियों की आवाज आने लगी। देखा तो दो युवक उपेंद्र की कार पर अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे।
आगे वाले के हाथ में एके 47 राइफल, जबकि पीछे वाला दोनों हाथों में पिस्टल लिए फायर झोंक रहा था। सूमो देख कर एके 47 लिए बदमाश ने उनकी तरफ निशाना साधा। यह देख वे अपनी जान बचाने के लिए गाड़ी मोडक़र भाग निकले। फायरिंग करने वाले कौन थे? इसका जवाब दोनों नहीं दे सके।
एके 47 और तीन पिस्टल से बरसाईं थीं गोलियां
छावनी होने के चलते आसपास कोई दुकान नहीं थी। पेट्रोल पंप से घटनास्थल कुछ दूरी पर था। क्रॉसिंग की दूसरी तरफ पान की दो गुमटियां थीं। एक उम्मीद में पुलिस की अलग अलग टीमों ने पेट्रोल पंप और पान की गुमटियों पर खड़े लोगों ने बात करनी शुरू की।
गुमटी पर खड़े एक प्रत्यक्षदर्शी ने पुलिस को बताया कि घटना से कुछ देर पहले एक सफेद रंग की मारुति कार (यूपी 35 सी 7288) क्रॉसिंग के पास आकर रुकी थी। कुछ देर बाद उससे दो युवक उतरे। आगे वाला एके 47 और पीछे वाले ने कमर से दो पिस्टल निकाली। यह देख उसके होश उड़ गए। दोनों बदमाश असलहे लेकर सड़क की तरफ बढ़े।
मोड़ पर जैसे ही एंबेसडर कार धीमी हुई एके 47 लिए युवक ने ड्राइवर और गनर पर फायरिंग शुरू कर दी। जबकि, दूसरे ने पिस्टल से पीछे बैठे लोगों को निशाना बनाया। फायरिंग के बाद एके 47 वाला युवक मारुति के पास लौटा और खाली हो चुकी राइफल रखकर पिस्टल निकाली। एक बार फिर पिस्टल लेकर एम्बेसडर के पास पहुंचा और पीछे बैठे लोगों के सिर पर गोली मारी। वारदात के बाद दोनों मारुति में बैठकर सोमनाथ द्वार की तरफ चले गए।
नौ माह पहले लूटी गई कार का हुआ था इस्तेमाल
पुलिस अफसरों को मौके से एके 47 और .45 बोर पिस्टल के खोखे मिले थे। वारदात के तरीके से साफ था कि हत्यारे प्रोफेशनल किलर थे। जांच में पता चला कि सुलतानपुर रोड पर चक गजरिया फॉर्म के पास तीन युवक एक कार छोड़कर भागे हैं। मौके पर पहुंचे अधिकारियों को सफेद रंग की मारुति कार के अंदर असली नंबर प्लेट और कुछ अखबार मिले। आस-पास के लोगों से पूछताछ में पता चला कि कार से उतरे युवकों की उम्र लगभग 25-30 साल थी। दो के पास एयरबैग था। छानबीन के दौरान पता चला कि जिस मारुति कार का इस्तेमाल हत्याकांड में हुआ था, वह मार्च 1997 में एलडीए दफ्तर के पास से लूटी गई थी।
श्रीप्रकाश पर मुकदमा, जेल में बंद पांचू सिंह पर शक
मॉड्स ऑपरेंडिस उस वक्त के हार्डकोर अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला की तरफ इशारा कर रही थी। बिना देर किए कैंट पुलिस ने मृतक उपेंद्र विक्रम सिंह के भाई रवींद्र प्रताप सिंह की तहरीर पर श्रीप्रकाश और उसके दो साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। वहीं, शक की सुई अन्य गिरोह की तरफ भी थी। वजह, उपेंद्र की आपराधिक प्रवृत्ति और पूर्वांचल के कई गिरोह से चल रही खूनी रंजिश थी।
श्रीप्रकाश के अलावा जांच में पहला नाम आया बृजेश सिंह का। पुलिस ने बातें खंगाली तो पता चला कि बृजेश के भाई चुलबुल सिंह के चुनाव प्रचार के काफिले पर हुए हमले में नामी शूटर हरिहर उर्फ पांचू का नाम आया था। बृजेश को शक था कि उपेंद्र ने पांचू से हमला करवाया था। शक के घेरे में आया दूसरा नाम आया मुन्ना बजरंगी का। दोनों की दुश्मनी जगजाहिर थी।
शक की सुई पूर्वांचल के ठेकेदार नागेंद्र सिंह पर भी थी। पहले उपेंद्र और नागेंद्र मिलकर रेलवे की ठेकेदारी करते थे। लेकिन, बाद में नागेंद्र ने मुख्तार अंसारी के शूटर हरिहर उर्फ पांचू से हाथ मिला लिया था। पांचू का साथ पाने के बाद नागेंद्र तेजी से कारोबार फैला रहा था। लेकिन, पांचू की गिरफ्तारी के बाद उपेंद्र फिर नागेंद्र पर भारी पड़ने लगा था। शक था कि कहीं जेल में रहकर पांचू ने सामूहिक हत्याकांड की पटकथा तो नहीं लिखी।
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