UP: अरबों की गाढ़ी कमाई फंसी, लाखों निवेशकों के आशियाने के सपने पर ग्रहण

यूपी में निजी डेवलपर्स की लखनऊ व एनसीआर समेत कई शहरों में करीब 400 आवासीय परियोजनाएं लम्बे समय से अटकीं

Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी में आवास विभाग और रेरा की जिम्मेदारी बिल्डरों पर शिकंजा कसने के साथ निवेशकों की गाढ़ी कमाई डूबने से बचाना भी है। इसके बावजूद बड़े बिल्डरों के कुप्रबंधन से जहां लाखों निवेशकों के आशियानों के सपने पर ग्रहण लगा हुआ है।

वहीं लखनऊ समेत प्रदेश के कई शहरों में सैकड़ों आवासीय परियोजनाएं लम्बे समय से अटकी पड़ी हैं। नतीजतन निवेशकों की अरबों की गाढ़ी कमाई भी फंस गयी है। सबसे पहले बात यूपी की राजधानी लखनऊ की होनी चाहिए। जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाक के नीचे भी बिल्डरों को अपने निवेशकों को तय समय पर आशियाने की सौगात देने से कोई सरोकार नहीं है। तभी लखनऊ में भी 13024 फ्लैट वाली 48 आवासीय परियोजनाएं लम्बे समय से अटकी हुई हैं। सैकड़ों करोड़ रूपए निवेशकों ने इन हाऊसिंग प्रोजेक्टों में आशियाने के लिए खपाएं हैं।

 

प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी तैयार लेने को नहीं कोई विभाग

इसके बावजूद समय से इन प्रोजेक्टों को पूरा कराने की जिम्मेदारी लेने को कोई भी विभाग तैयार नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ और आगरा में 145880 फ्लैट वाली 378 आवासीय परियोजनाएं लम्बे समय से रुकी हुई हैं। ग्रेटर नोएडा में 74645 इकाइयों वाली 167 अवरुद्ध परियोजनाएं हैं। नोएडा में 41438 इकाइयों वाली 103 अटकी आवासीय परियोजनाएं हैं, जबकि गाजियाबाद में 15278 इकाइयों वाली 50 अवरुद्ध परियोजनाएं हैं।

नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद दिल्ली-एनसीआर में महत्वपूर्ण संपत्ति बाजार हैं। जिसमें निवेशकों के हजारों करोड़ रुपए फंसे हैं। आगरा में 10 परियोजनाएं अवरुद्ध हैं, जिनमें 1495 इकाइयां शामिल हैं। यह जानकारी  रियल एस्टेट आंकड़ा विश्लेषण कंपनी प्रॉपइक्विटी ने जारी की है। उत्तर प्रदेश के निजी डेवलपर्स में लखनऊ से लेकर एनसीआर तक कई बड़े नाम शामिल हैं।

बिल्डरों का दबाव, इमारतों के सेफ्टी ऑडिट पर शासन की चुप्पी

यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने कुछ समय पहले साफ़ कहा था कि अफसर बिल्डरों से रिश्तेदारी नहीं निभाएं। इसके बावजूद अफसरों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। तभी ट्रांसपोर्टनगर हादसे के बाद अफसरों की नींद टूटी है। लखनऊ में बहुमंजिला इमारतों के सेफ्टी ऑडिट की तनिक भी फिक़्र शासन को नहीं है। तभी एलडीए बोर्ड के निर्णय के बावजूद लखनऊ में नई और पुरानी इमारतों की सेफ्टी ऑडिट को बिल्डिंग बाइलाज में आवास विभाग ने संशोधन करके अभी तक नहीं जोड़ा है।

स्ट्रक्चरल ऑडिट पॉलिसी के तहत जहां बिल्डरों को स्ट्रक्चरल मजबूती का प्रमाण पत्र देना पड़ता, वहीं पुरानी का सेफ्टी ऑडिट कराया जाना जरुरी होता। अलाया अपार्टमेंट ढहने के बाद सेफ्टी ऑडिट की पालिसी बनायी गयी थी। अभी बिल्डरों को इमारत का नक्शा पास कराते समय केवल फायर सेफ्टी से जुड़े दस्तावेज तथा एनओसी देनी पड़ती है।

प्रॉपइक्विटी के सीईओ समीर जसूजा

डेवलपर्स में क्षमता की कमी व नकदी का कुप्रबंधन : समीर

रियल एस्टेट आंकड़ा विश्लेषण कंपनी प्रॉपइक्विटी के सीईओ समीर जसूजा ने कहा कि अवरुद्ध परियोजनाओं की समस्या डेवलपर में परियोजनाओं को पूरा करने की क्षमता की कमी, नकदी प्रवाह के कुप्रबंधन और नयी जमीन खरीदने या अन्य ऋणों को चुकाने के लिए धन का इस्तेमाल करने के चलते है। कुल 42 शहरों में 1981 आवासीय परियोजनाएं अटकी हैं, जिनमें कुल 5.08 लाख फ्लैट हैं।

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