Lucknow: कंगाली के आगे चुनावी वादों का पहाड़ बनेगा चुनौती, नगर निगम का होगा बुरा हाल!
राजधानी लखनऊ (Lucknow) में नगर निकाय चुनाव में पार्षद पद से लेकर मेयर पद के लिए मतदान की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
Sandesh Wahak Digital Desk: राजधानी लखनऊ (Lucknow) में नगर निकाय चुनाव में पार्षद पद से लेकर मेयर पद के लिए मतदान की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। 13 मेयर व 807 पार्षद प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम (EVM) में कैद हो गई। प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 13 मई को होगा। लेकिन चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों के लिए जनता से किए गए वादे पूरे करना भी आसान नहीं होगा। इसके पीछे कारण यह है कि लखनऊ नगर निगम (Lucknow Municipal Corporation) आर्थिक तंगी से जूझ रहा है और उस पर करीब 300 करोड़ का कर्ज है। विकास कार्यों के लिए रकम नहीं है।
नगर निगम शहर के अंदर सही तरीके से विकास व अन्य कार्य नहीं करवा पा रहा है। ऐसे में वर्ष 2019 में नगर निगम की सीमा में शामिल किए गए 88 नए गांव के विकास कार्यों का भी जिम्मा अब उसके हवाले है। अकेले इन 88 गावों के विकास के लिए नगर निगम को 5000 करोड़ करोड़ की आवश्यकता है। इस निकाय चुनाव में उक्त 88 गावों की जनता ने भी मतदान किया है। ऐसे में जीतने वाले पार्षद के लिए विकास कार्यों के लिए किया गया वादा पूरा करना बड़ा मुद्दा होगा।
विकास पर खर्च होता है महज 40 फीसदी बजट
बता दें कि नगर निगम का सालाना बजट (Budget of LMC) महज 2000 करोड़ का है। नगर निगम के इस मौजूदा बजट में लगभग 60 फीसदी बजट कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में खर्च हो जाता है और महज 40 फीसदी बजट ही विकास सहित अन्य मदों में खर्च के लिए बचता है। ऐसे में अगर नगर निगम अपनी कमाई का एक भी पैसा पांच साल तक खर्च न करे तो नगर निगम सीमा में शामिल 88 नए गांवों में जनसुविधा मिल पाएगी।
प्रत्याशियों ने किये अनोखे वादे
नगर निगम की आय का मुख्य स्रोत हाउस टैक्स है लेकिन कुछ प्रत्याशियों ने हाउस टैक्स हाफ और वाटर टैक्स माफ का नारा देकर मतदाताओं का आकर्षित करने का प्रयास किया है। अगर ऐसे प्रत्याशी जीते तो कहीं न कहीं सदन में हाउस टैक्स व वाटर टैक्स को माफ करने या कम करने को लेकर घमासान होना तय है।
राजनैतिक लाभ के आगे भूले नगर निगम का हित
पार्षदों ने अपने राजनैतिक हितों के चलते नगर निगम की आमदनी (municipal income) बढाने के लिए ठोस मुद्दे सदन में नहीं रखे है। यही कारण है कि नगर निगम आज करोड़ों का कर्जदार है। जानकारों का कहना है कि पिछले 13 सालों से हाउस टैक्स में बढ़ोत्तरी न होना भी नगर निगम को आर्थिक रूप से कमजोर बना रहा है।
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