विडंबना : लखनऊ में 155 इंस्पेक्टर, फिर भी कार्यवाहक चला रहे कोतवाली

सूबे की राजधानी में आधा दर्जन से अधिक कोतवाली व थाने पर प्रभारी की तलाश

Sandesh Wahak Digital Desk/Ganesh Ji Verma : पुलिस कमिश्ररेट लखनऊ में आये दिन देखने को मिल रहा है कि कार्यवाहक के बदौलत ही थाने और कोतवाली चल रहे है। जबकि कमिश्नरेट में आवश्यकता से अधिक इंस्पेक्टर भी मौजूद हैं। ऐसे में सोचनीय बात यह है कि क्या पुलिस कमिश्नर को सक्षम इंस्पेक्टर नहीं मिल पा रहे हैं या इनकी नजरों में कोई खरा नहीं उतर रहा है या फिर इसके पीछे की कहानी कुछ और है।

पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद पहली बाद ऐसा देखा गया है कि पुलिस कमिश्रर एसबी शिरोडकर ने गलती पाये जाने पर प्रभारी निरीक्षकों को हटाया है। लेकिन इंस्पेक्टर की तैनाती को लेकर काफी लम्बा समय लिया है। हालांकि यह पहली बार ऐसा हो रहा है कि कई दिनों, सप्ताह व माह तक इंस्पेक्टरों के बिना राजधानी में कोतवाली और थाने चल रहे हैं इनके स्थान पर अतिरिक्त इंस्पेक्टरों को कार्यवाहक का चार्ज दे दिया जा रहा है।

ऐसे में कार्यवाहक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि उनको क्या करना है। सवाल यह है कि आखिरकार सीपी को थाने और कोतवाली चलाने लायक इंस्पेक्टर नहीं मिल रहे हैं या फिर कोई और बात है। जबकि पुलिस कमिश्नरेट में इंस्पेक्टरों की नियत संख्या 139 है लेकिन इसके बाद भी 16 इंस्पेक्टर अधिक मौजूद हैं। वर्तमान में कुल 155 इंस्पेक्टर लखनऊ में मौजूद हैं। इन सबके बावजूद प्रदेश की राजधानी लखनऊ जैसी जगह पर कोतवाली व थानों पर प्रभारी नहीं मिल पा रहे हैं।

गलतियों पर नहीं छोड़ते हैं सीपी

सीपी को लेकर पुलिस महकमें में एक बात साफ है कि यदि उनके सामने किसी भी अधिकारी की गलती मिल जाये तो वह किसी को छोड़ते भी नहीं है।

ये थाने और कोतवाली चला रहे कार्यवाहक

हजरतगंज, हुसैनगंज, आशियाना, आलमबाग, मदेयगंज, रहीमाबाद, जानकीपुरम, हसनगंज आदि।

नहीं ले पाते हैं कोई निर्णय

नाम नहीं छापने की शर्त पर कई इंस्पेक्टरों ने बताया कि कार्यवाहक का चार्ज लेना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन ऐसे में कार्यवाहक के पद पर मौजूद इंस्पेक्टर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाता है। उसके सामने कई प्रकार की दुविधा होती है। ऐसे में बस किसी तरह से वह यह सोचकर कार्य करता है कि दो-चार दिन की बात है फिर इसके बाद कोई न कोई प्रभारी तो आ ही जायेगा। ऐसे में वह कार्य को ठीक तरीके से नहीं कर पाता है।

कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना

अक्सर यह देखा जाता है कि पुलिस कमिश्नरेट हो या किसी जिले का मामला हो। सीपी या एसपी कार्यवाहक बनाकर ऐसे लोगों को चार्ज दे देते हैं जो चार्ज के लिए मानकों पर खर नहीं उतरते हैं लेकिन कहीं से दबाव पडऩे पर उनको थाने का चार्ज देना पड़ता है।

ऐसे में रास्ता यही होता है कि उनको कार्यवाहक बना दिया जाए। सांप भी मर जाये और लाठी भी नहीं टूटने पाये।

 

ऐसा कोई टाइम लिमिट दे रखा है क्या शासन ने…पता कर लीजिएगा। ऐसा कोई टाइम लिमिट होता है क्या पुलिस रेगुलेशन के अनुसार या किसी के अनुसार।

एसबी शिरोडकर, पुलिस कमिश्नर,लखनऊ

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