भारत-अमेरिका ‘मॉडल’ रणनीतिक साझेदार : यूएसआईएसपीएफ
Sandesh Wahak Digital Desk : भारत-अमेरिका के बीच मजबूत संबंधों के पक्षधर एक जाने-माने अमेरिकी संगठन का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा द्विपक्षीय संबंधों के लिए ‘बड़ा मील का पत्थर है’।
संगठन ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों का मॉडल दर्शाता है कि दो रणनीतिक सहयोगी कैसे सभी क्षेत्रों में एक साथ काम कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन के निमंत्रण पर 21 जून से 24 जून तक अमेरिका की यात्रा पर रहेंगे।
यूएस-इंडिया स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष जॉन चैम्बर्स ने विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘मैं समझता हूं कि यह यात्रा भविष्य के लिए एक बड़ा मील का पत्थर होगी। मैं हमेशा से भारत, उसके भविष्य और वैश्विक मंच पर उसके नेतृत्व से आर्थिक रूप से क्या हासिल किया जा सकता है। इसका बहुत बड़ा समर्थक रहा हूं।’’
सिस्को में चेयरमैन एमेरिटस और जेसी2 वेंचर्स के संस्थापक चैम्बर्स ने भारत और अमेरिका के दुनिया के ‘‘सबसे मजबूत रणनीतिक साझेदार’’ के रूप में उभरने की संभावनाओं को रेखांकित किया।
ये साझेदारी रोजगार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी
उन्होंने कहा कि यह साझेदारी न केवल दोनों देशों के बीच कारोबार, बल्कि भारत के 28 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों और अमेरिका के 50 प्रांतों में रोजगार को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी।
मोदी का 22 जून को वाशिंगटन डीसी में राजकीय अतिथि के रूप में स्वागत किया जाएगा और उसी दिन वह अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे। वह दो बार यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे। उन्होंने पहली बार जून 2016 में अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित किया था।
अमेरिकी राष्ट्रपति और प्रथम महिला 22 जून को राजकीय रात्रिभोज में प्रधानमंत्री मोदी की मेजबानी करेंगे।
चैम्बर्स ने कहा, ‘जब आपके पास दो सबसे बड़े लोकतंत्र हों, जो इस मामले में साझा दृष्टिकोण रखते हैं कि प्रौद्योगिकी दोनों देशों के भविष्य के लिए क्या कर सकती है। यह लोगों के जीवन स्तर, रोजगार सृजन और रक्षा क्षेत्री की मजबूती के लिए क्या कर सकती है, तो ऐसे देशों का एक साथ आना दुर्लभ ही है, जो अब हो रहा है’।
चैम्बर्स ने कहा कि ‘भारत-अमेरिका के रिश्ते में भी चुनौतियां होंगी। लेकिन यह स्वाभाविक है, क्योंकि इस तरह के परिणाम बिना चुनौतियों के हासिल नहीं हो सकते हैं’।
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