UP में सालों तक लटकाई जाती हैं CAG की सिफारिशें, फिर विभागों की गड़बड़ियां उजागर
पूर्व की अरबों की धांधलियों पर कार्रवाई नहीं, सिर्फ बैठकों का दौर जारी
Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी में एक बार फिर भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। बीते दो दशकों में कई सरकारों के दौरान हुई गड़बडिय़ों के दोषी अफसरों पर कार्रवाई नहीं हुई।
इन घोटालों में शामिल अफसरों को प्रमोशन से लेकर अहम पदों से भी नवाजा गया। नियमों के मुताबिक तीन माह में पेश रिपोर्ट पर सरकार सीएजी को त्वरित कार्रवाई रिपोर्ट भेजती है। लेकिन अधिकांश मामलों में ऐसा करने से परहेज किया जाता है। करीब 25 वर्षों तक मामलों को लटकाकर रखा जाता है।
गड़बड़ियों के जिम्मेदार आराम से हो रहे रिटायर
वसूली के आरोपी अफसर आराम से रिटायर हो जाते हैं। हाल ही में सदन में पेश रिपोर्ट ने कई विभागों को बेनकाब किया है। इस बार पेश रिपोर्ट में 21 पीएसयू को 15856 करोड़ का नुकसान बताया गया है। स्वास्थ्य से लेकर यूपीडा और यीडा समेत कई विभागों में करोड़ों की गड़बडिय़ां सामने आयीं हैं। इससे पहले सीएजी ने पाया था कि 27 निगमों को कुल नुकसान 32429 करोड़ का हुआ था।
बीते वर्षों में सीएजी ने अरबों के पोषाहार घोटाले की बखिया उधेड़ी थी। लेकिन घोटाले में शामिल फर्मों का ही बोलबाला यूपी में लम्बे समय तक नजर आया। सीएजी ने इससे पहले लखनऊ की सरोजनीनगर तहसील में हुई करीब 500 रजिस्ट्रियों के परीक्षण के बाद पाया था कि 40 संपत्तियों की रजिस्ट्री में बेची भूमि को मुख्य सडक़ और आबादी से दूर दिखा दिया गया।
इस अंदाज में कमोवेश प्रदेश भर में निबंधन विभाग के अफसर लंबे समय से बड़ी आर्थिक चोट यूपी सरकार को पहुंचा रहे हैं। जिसकी जांच की बात करना बेमानी है। पूर्व में अखिलेश सरकार के दौरान 97 हजार करोड़ कहां पर खर्च किये गये, इसका हिसाब सीएजी को नहीं दिया गया। अखिलेश सरकार ने 2014 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए करीब ढाई लाख से ज्यादा कार्यों के उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराये थे। इस तरह का खेल हर सरकार में अफसर खेलते हैं।
लोक लेखा समिति के पास विलंब से पहुंचता है ऑडिट पैरा का जवाब
सदन में कैग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद विधानसभा की लोक लेखा समिति (पीएसी) के पास ऑडिट आपत्तियों से जुड़े पैरे भेजे जाते हैं। यहीं इन पर निर्णय होता है। सदन में पीएसी के अनुभाग में वर्षों पुरानी ऑडिट रिपोर्ट कार्रवाई के इन्तजार में है। कई बार संबंधित विभागों के स्तर से इन ऑडिट पैरों का जवाब आने में काफी विलम्ब होता है। नतीजतन लोक लेखा समिति की बैठकों में समय से हजारों करोड़ की वित्तीय अनियमितताओं का निस्तारण नहीं हो पाता है।
सिर्फ आश्वासन और चेतावनी देकर मुद्दे हो रहे ड्राप, सालों बाद आई रिपोर्ट औचित्यहीन
एक रिटायर्ड मुख्य सचिव के मुताबिक लोक लेखा समिति के सामने मामले पेश करने में देरी से निर्णय नहीं हो पाते हैं। देरी होने से विभिन्न मामलों में आश्वासन और चेतावनी देकर ही मुद्दे ड्रॉप कर दिए जाते हैं। इसलिए जल्दी ऑडिट कराकर अधिकतम एक साल बाद रिपोर्ट दे दी जाए। सालों साल बाद रिपोर्ट आने से कोई औचित्य नहीं रह जाता।
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