गवाही रोकी तो वकीलों पर चलेगा अवमानना का केस, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए सख्त आदेश

Sandesh Wahak Digital Desk : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आपराधिक मुकदमों संबंधी कार्यवाही में देरी, खासकर गवाहों के बयान दर्ज नहीं कराने को गंभीरता से लेते हुए शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि हड़ताल के आह्वान के चलते गवाहों को बयान देने से रोकना या बयान दर्ज कराने से मना करना पेशेवर कदाचार है और इससे अदालत की अवमानना का मामला बनता है।

न्यायमूर्ति अजय भनोट ने नूर आलम नाम के एक आरोपी की तीसरी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस मामले में निचली अदालत को मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का निर्देश मिलने के बावजूद सुनवाई पूरी नहीं हो सकी।

इस संबंध में निचली अदालत द्वारा भेजी गई स्थिति रिपोर्ट में कहा गया कि वकीलों के बार-बार हड़ताल करने से सुनवाई बाधित हुई। इसमें कहा गया कि हड़ताल करने वाले वकीलों ने तय तिथि पर अदालत में हाजिर हुए गवाहों को बयान देने से रोका जिससे अदालती प्रक्रिया बाधित हुई और सुनवाई में देरी हुई।

उच्च न्यायालय ने इस स्थिति पर गौर करने के बाद निर्देश दिया कि ‘यदि हड़ताल कर रहे वकीलों द्वारा गवाहों को बयान देने से रोका जाता है या वे गवाहों का बयान दर्ज कराने से मना करते हैं तो निचली अदालत इस संबंध में उन वकीलों के नाम दर्ज करेगी और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए इसकी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को भेजेगी और ऐसे वकीलों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही के लिए यह रिपोर्ट इस अदालत के महानिबंधक को भेजेगी’।

वकीलों पर होगी कार्रवाई

अदालत ने कहा कोर्ट में मौजूद गवाहों को बयान देने से रोकने या बयान दर्ज कराने से मना करने वाले एवं हड़ताल करने वाले वकील पेशेवर कदाचार करते हैं और बार काउंसिल अधिवक्ता अधिनियम की धारा 35 के तहत उचित कार्रवाई करने के लिए विधिवत सशक्त है।

अदालत ने याचिकाकर्ता की जमानत याचिका यह कहते हुए मंजूर कर ली कि वह 2017 से जेल में महज इसलिए निरुद्ध है क्योंकि जानबूझकर देरी की वजह से सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए कुछ शर्तें भी लगाईं।

न्यायालय ने कहा कि  याचिकाकर्ता साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा और ना ही किसी गवाह को प्रभावित करेगा। साथ ही यदि उसे व्यक्तिगत पेशी से छूट ना मिली हो तो वह निर्धारित तिथि पर अदालत में पेश होगा।

अदालत ने यह निर्देश भी दिया कि इस आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश की सभी अदालतों को भेजी जाए और इसे उत्तर प्रदेश बार काउंसिल और जिला अदालतों के सभी बार एसोसिएशन को भेजा जाए।

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