Gonda: पंडरी कृपाल रेंज बना वन माफियाओं का महफूज ठिकाना!
क्षेत्र में खुलेआम काटे जा रहे हरे-भरे प्रतिबंधित पेड़, शिकायत के बाद भी नहीं की जाती है कार्रवाई
Sandesh Wahak Digital Desk/A.R. Usmani: पिछले दिनों जिले के सांसद व केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन एवं विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ राजा भैया टिकरी रेंज पहुंचे तो जंगल से बेशकीमती पेड़ों की अवैध कटान पर उनकी भौंहें तन गयीं। उन्होंने चिन्हित वन माफियाओं की सूची मांगी तो महकमे में हड़कंप मच गया। मंत्री के एक्शन में आने के बाद गुरूवार को टिकरी के रेंजर विनोद कुमार नायक को शासन द्वारा निलंबित तो कर दिया गया, लेकिन दूसरी तरफ पंडरी कृपाल रेंज क्षेत्र में अंधाधुंध हो रही वृक्षों की कटान के जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई न होना, सवालों को जन्म देता है।
पुलिस और वन विभाग की साठगांठ से किया जा रहा वृक्षों का सफाया
वैसे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे में वृक्षारोपण महाभियान चलाकर पर्यावरण संरक्षण के लिए अरबों रूपये खर्च कर चुके हैं और पिछले महीने से फिर पर्यावरण संरक्षण को लेकर वृहद वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन पुलिस और वन महकमा मोटी कमाई के लिए वन माफियाओं से साठगांठ कर प्रतिबंधित वृक्षों का सफाया करा रहा है।
जिले के पंडरी कृपाल रेंज में तो वन विभाग के जिम्मेदार लोग सरकार के मंसूबे पर पानी फेर रहे हैं। क्षेत्र में बेखौफ वन माफियाओं, लकड़ी ठेकेदारों द्वारा हरे-भरे प्रतिबंधित वृक्षों का सफाया कराया जा रहा है। पिछले दिनों क्षेत्र के बनकसिया शिवरतन सिंह गांव में बगैर परमिट के सागौन के पेड़ों को धराशाई कर दिया गया। इसकी शिकायत रेंजर सुशांत शुक्ला से की गई। उन्होंने कार्रवाई की बात भी कही लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई और ठेकेदार लकड़ी लादकर आराम से चला गया। जुलाई महीने में इसी गांव में सागौन के 25 पेड़ों की परमिट पर करीब 50 पेड़ काट डाले गए।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर सरकार की मंशा पर पानी फेर रहे जिम्मेदार
इसकी भी शिकायत रेंजर व फारेस्ट गार्ड समीर रंजन चौधरी से की गई लेकिन कोई मौके पर झांकने तक नहीं गया। रामनगर में आम का पेड़ बिना परमिट के धराशाई कर दिया गया। इसकी भी शिकायत स्थानीय पुलिस व वन विभाग से की गई लेकिन इस मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसी क्षेत्र के जोलहटी में भी सागौन व आम के पेड़ काट डाले गए और वन विभाग कार्रवाई करने की बात कहकर लीपापोती करने में जुटा रहा। बगैर परमिट के प्रतिबंधित पेड़ों की कटान के ये मामले तो महज बानगी हैं। सच तो यह है कि पंडरी कृपाल रेंज वन माफियाओं का महफूज ठिकाना बन चुका है।
यही वजह है कि इस क्षेत्र में पेड़ों की अंधाधुंध कटान पर रोक नहीं लग पा रही है। सूत्र बताते हैं कि पंडरी कृपाल रेंज के ही पड़ैनिया, छजवा गांव में नहर के पास पेड़ों को काटे जाने की सूचना फारेस्ट गार्ड समीर रंजन चौधरी को दी गई। जब वह हरकत में नहीं आए तब रेंजर को जानकारी देकर कार्रवाई की अपेक्षा की गई लेकिन रेंजर ने भी चुप्पी साधे रखी और ठेकेदार बहुत ही इत्मीनान से पेड़ों को कटाकर लकड़ियां लेकर चला गया। राजापुर में भी पिछले महीने पेड़ काटे जाने की शिकायत फारेस्ट गार्ड व रेंजर से की गई लेकिन कोई मौके पर नहीं पहुंचा। फारेस्ट गार्ड दूसरे दिन वहां लकीर पीटने पहुंचा और मौका देखकर बिना कोई कार्रवाई किए बैरंग वापस हो लिया।
पेड़ों की अवैध कटान में टिकरी रेंजर के खिलाफ कार्रवाई तो पंडरी पर मेहरबानी क्यों ?
इलाके में गत माह कई जगह पेड़ों को काटने की शिकायत ग्रामीणों द्वारा की गई तो वन विभाग ने जुर्माने की रसीद थमा दी। इसी तरह गत माह मोतीगंज थाना क्षेत्र के चहबचवा गांव में आम के पेड़ को बगैर परमिट के ही काट लिया गया। इसमें भी वन विभाग की साठगांठ उजागर हुई। दरअसल, मामला जब उलझता है, तब वन विभाग जुर्माने की रशीद काटकर ठेकेदार को थमा देता है, जिससे वह पुलिस की कार्रवाई से बच जाता है और उसकी लकड़ी भी आसानी से चली जाती है। अब सवाल यह उठता है कि क्या पेड़ काटकर गिराने से पहले जुर्माना काटने की व्यवस्था है?
विभागीय सूत्र बताते हैं कि पेड़ कटकर गिर जाने के बाद ही जुर्माना वसूलने की व्यवस्था है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा है। बताया जाता है कि पेड़ कटने से पहले ही वन विभाग द्वारा ठेकेदारों को जुर्माने की रशीद दे दी जाती है, क्योंकि अवैध कटान के इस धंधे में जिम्मेदारों की भी संलिप्तता रहती है। वहीं दूसरी तरफ, वन विभाग के अधिकारी सब कुछ जानकर अंजान बने रहते हैं और बेखौफ ठेकेदार खुलेआम पेड़ों का सफाया कर रहे हैं।
परमिट के नाम पर भी होता है ‘खेल’
बता दें कि वन माफिया परमिट की आड़ में लाखों रूपए का खेल खेलने का काम करते हैं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि वन माफिया कुछ पेड़ों का परमिट बनवा कर पूरी बाग को उजाड़ने का काम करते हैं। इसमें विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की भी संलिप्तता रहती है। बताया जाता है कि परमिट वन माफियाओं अथवा ठेकेदारों के नाम न बनवाकर किसानों के नाम बनवाया जाता है। विभाग द्वारा हरे-भरे पेड़ों को रोगग्रस्त दिखाकर वन माफियाओं को परमिट देने का काम किया जाता है।
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