संपादक की कलम से: रेल हादसों से सबक कब ?
Sandesh Wahak Digital Desk : मदुरै रेलवे स्टेशन पर खड़े एक यात्री कोच में आग लगने से नौ लोगों की मौत हो गयी और 20 अन्य झुलस गए। यह बोगी लखनऊ से बुक कराई गयी थी और इसके सभी तीर्थयात्री यूपी के विभिन्न जिलों के थे। बोगी में सफर कर रहे यात्री अपने साथ गैस सिलेंडर ले गए थे और चाय-नाश्ता बनाते समय आग लगी। फिलहाल मामले की जांच की जा रही है।
सवाल यह है कि :-
- रेल कोच में गैस सिलेंडर कैसे पहुंचा?
- यात्रा शुरू करने वाले स्थान पर यात्रियों और उनके सामानों की चेकिंग क्यों नहीं की गई?
- क्या इतने लंबे सफर के दौरान कोच में कोई टीटीइ टिकटों की जांच के लिए भी नहीं पहुंचा?
- आखिर आरपीएफ क्या कर रही थी?
- रेलवे हादसों से सबक क्यों नहीं सीख रहा है?
- हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है?
तमिलनाडु के मदुरै रेलवे स्टेशन पर हुआ हादसा यह बताने के लिए काफी है कि रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह लचर हो चुकी है और कोई भी इसमें आसानी से सेंध लगा सकता है। न तो रेलवे और न ही आरपीएफ के पास इस बात का जवाब है कि यात्रियों की बोगी में प्रतिबंधित गैस सिलेंडर कैसे पहुंचा?
सच यह है कि तमाम स्टेशनों पर आज भी सामान को स्कैन करने वाले स्कैनर खराब पड़े हैं। यही नहीं कई स्टेशनों पर लोग छोटे गैस सिलेंडर में खाना बनाते नजर आ जाते हैं लेकिन रेलवे परिसर के अंदर इस तरह की गतिविधियों को देखकर भी आरपीएफ नजरअंदाज कर देती है। कुछ गिनी-चुनी ट्रेनों को छोड़ दे तो टीटीइ भी यात्रा के दौरान नदारद दिखते हैं। इसके अलावा रेल यात्रा के दौरान सुरक्षा में तैनात कर्मी भी कोचों में कभी-कभार ही दिखते हैं।
गनीमत रही की चलती ट्रेन में नहीं हुआ हादसा
ऐसे में लोग आसानी से ज्वलनशील और प्रतिबंधित पदार्थों को लेकर ट्रेन में धड़ल्ले से सफर कर रहे हैं। सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान प्रतिबंधित है। लेकिन रेल कोचों में यात्रा के दौरान तमाम यात्री धूम्रपान करते मिल जाते हैं और अक्सर लोगों की जान-जोखिम में डाल देते हैं। इसमें दो राय नहीं कि मदुरै में हुआ यह हादसा यदि ट्रेन के चलने के दौरान होता तो काफी यात्रियों की जान चली जाती।
हैरानी की बात यह है कि ट्रेन हादसों के बावजूद रेलवे यात्रियों के जान-माल की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। लगता है रेलवे केवल यात्रा का टिकट काटने और रेलों के संचालन तक खुद को सीमित कर चुकी है। यह दीगर है कि जब हादसे हो जाते हैं तब रेलवे का तंत्र जागता है और कुछ दिनों तक सतर्कता दिखती है। मामले के ठंडा पड़ते ही स्थिति ज्यों की त्यों हो जाती है। इससे यह भी साफ है कि आतंकी या अवांछित तत्व ट्रेन के जरिए कुछ भी कहीं भी ले जा सकते हैं।
यही नहीं वे ट्रेनों को आसानी से निशाना भी बना सकते हैं। यह स्थिति तब है जब हाल में उड़ीसा के बालासोर में बड़ा हादसा हो चुका है। यदि रेलवे यात्रियों के जान-माल की सुरक्षा चाहती है तो उसे ट्रेनों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी। साथ ही हमेशा सतर्कता बरतनी होगी वरना स्थितियां इससे भी भयावह हो सकती हैं।
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