सम्पादक की कलम से : खेलों के विकास को चाहिए मजबूत बुनियाद
Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर प्रदेश के वाराणसी में तीसरे खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का आयोजन पूरे धूमधाम से संपन्न हो गया। विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में सैकड़ों प्रतिभागियों ने भाग लिया। कुछ जीते, कुछ हारे और अपने-अपने गांव और प्रदेश में लौट गए। इस भव्य आयोजन ने जहां खिलाड़यों को अच्छा संदेश दिया तो दूसरी ओर कई सवाल भी अपने पीछे छोड़ गया।
सवाल यह है कि :-
- खेलो इंडिया के तहत कुछ चुनिंदा खेल आयोजनों भर से क्या देश और प्रदेश में खेलों का विकास हो सकेगा?
- क्या गांवों तक खेल की बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने का सरकार का दावा जमीन पर उतर रहा है?
- प्राइमरी स्कूल के स्तर पर खेलों के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ा है?
- क्या सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया करायी जा सकी हैं?
- इन स्कूलों में खेल प्रशिक्षकों का पर्याप्त इंतजाम किया जा सका है?
- क्या गांवों से खेल प्रतिभाओं को खोजने और निखारने के लिए कोई काम हो रहा है?
मोदी सरकार ने खेलों को आगे बढ़ाने के लिए न केवल खेलो इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए बल्कि इसके लिए जरूरी नीति भी बनायी है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में भी खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का आयोजन किया गया है लेकिन खेलों का विकास केवल चुनिंदा खेल आयोजनों से संभव नहीं है। आज भी अधिकांश प्राथमिक स्कूलों व कॉलेजों में खेल की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यहां खेल मैदानों और खेलकूद के सामानों का अभाव है। अधिकांश स्कूलों में खेल प्रशिक्षक नहीं है। स्कूल-कॉलेज स्तर पर प्रतियोगिता कराने और प्रतिभाओं को निखारने के लिए पर्याप्त बजट नहीं है।
हालांकि प्रदेश सरकार ने गांव पंचायत स्तर पर खेल मैदान, ब्लॉक स्तर पर मिनी स्टेडियम व जिला स्तर पर स्टेडियम बनवाने का वादा किया है। कई जगह इस पर काम भी हो रहा है। स्पोट्र्स को बढ़ावा देने के लिए मंगल दलों को स्पोट्र्स किट भी बांटे गए हैं। बावजूद इसके गांवों से खेल प्रतिभाओं को निखारने का काम नहीं हो पा रहा है। खेलों के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ाने के प्रति भी कोई खास काम न तो स्कूल और न ही कॉलेज प्रबंधन के स्तर पर किए जा रहे हैं।
जहां खेल की कुछ सुविधाएं हैं भी वहां प्रशिक्षकों का अभाव है।
लिहाजा छात्रों को ठीक प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में खेल के विकास का सपना शायद ही कभी साकार हो सकेगा। सरकार को यह समझना चाहिए कि केवल वादों और कुछ खेल आयोजनों भर से खेलो इंडिया का लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए उसे ठोस कदम उठाने होंगे। हर स्कूल और कॉलेज में खेलों की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। खेल आयोजनों के लिए पर्याप्त बजट की व्यवस्था करनी होगी और खेल प्रशिक्षकों की नियुक्ति करनी होगी। बिना ठोस रणनीति के खेलो इंडिया महज एक औपचारिक कार्यक्रम बनकर रह जाएगा और यह अपने उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर पाएगा।
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