संपादक की कलम से : अविश्वास प्रस्ताव का हासिल

Sandesh Wahak Digital Desk : संसद के मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को बयान देने के लिए बाध्य करने के लिए कांग्रेस व उसके गठबंधन सहयोगियों ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। हालांकि यह प्रस्ताव लोकसभा में ध्वनि मत से खारिज हो गया लेकिन यह अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गया और विपक्ष की कमजोरी को भी उजागर कर गया।

सवाल यह है कि :-

  1. अविश्वास प्रस्ताव बिना मत विभाजन के विपक्ष ने खारिज क्यों होने दिया?
  2. क्या विपक्षी गठबंधन बिना तैयारी के मणिपुर हिंसा पर चर्चा करने पहुंचा था?
  3. क्यों विपक्ष की ओर से एक भी नेता मणिपुर हिंसा पर सरकार के सामने दमदार तरीके से आवाज नहीं उठा सके?
  4. विपक्ष की ओर से पेश किए गए सबसे प्रमुख वक्ता राहुल गांधी भी सरकार से सवाल करने में चूकते क्यों दिखे?
  5. क्या लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी गठबंधन की अविश्वास प्रस्ताव की चाल उलटी पड़ गयी?
  6. क्या मोदी और भाजपा एक बार फिर विपक्ष की कमजोर रणनीति का फायदा उठाने में सफल रही?

मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में तीन दिन तक चर्चा चली। विपक्षी गठबंधन की ओर से राहुल गांधी समेत कई दलों के नेताओं और सत्ता पक्ष से कई सांसदों ने इसमें भाग लिया। राहुल के संसद में दिए गए विवादित वक्तव्य व आचरण ने विपक्षी गठबंधन की फजीहत करा दी। यदि संसद की कार्यवाही की समीक्षा करें तो साफ है कि विपक्ष की ओर से कोई खास तैयारी नहीं की गई थी।

मणिपुर हिंसा पर सत्ता पक्ष से कोई सवाल नहीं कर सका

विपक्ष के अधिकांश नेता मणिपुर हिंसा पर सत्ता पक्ष से कोई तीखा सवाल नहीं कर सके। कई तो मणिपुर की जगह अन्य मुद्दों में उलझते दिखे। इसका परिणाम यह हुआ कि सत्ता पक्ष हावी होता दिखा और आखिरी दिन जब पीएम मोदी ने मोर्चा संभाला तो कांग्रेस समेत विपक्षी गठबंधन के अधिकांश सदस्य लोकसभा से वाकआउट कर गए। विपक्ष ने यहां सबसे बड़ी गलती की।

इसमें दो राय नहीं कि विपक्ष को अपने और सत्ता पक्ष के संख्या बल का बोध था बावजूद इसके उन्हें मत विभाजन कराना चाहिए था। ऐसा न कर विपक्ष ने न केवल अपनी कमजोरी प्रदर्शित की बल्कि यह संदेश भी गया कि अविश्वास प्रस्ताव केवल सरकार को परेशान करने के लिए लाया गया था। इससे विपक्ष की साख पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा और इसमें दो राय नहीं कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा इसे भुनाने की कोशिश करेगी।

पीएम ने इसे लेकर सदन में विपक्षी गठबंधन की खिंचाई भी की थी। साफ है कि जिस अविश्वास प्रस्ताव के सहारे विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बनाई थी वह पूरी तरह फ्लाप शो बनकर रह गयी। वहीं इसने सत्ता पक्ष और प्रधानमंत्री को भरपूर बोलने का मौका दिया। लिहाजा विपक्ष को सरकार को घेरने के लिए अपनी रणनीति और मुददों दोनों पर गहन चिंतन करने की जरूरत है।

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