सम्पादक की कलम से : चीतों की मौत पर सवाल
Sandesh Wahak Digital Desk: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में एक और चीते की मौत हो गई। इसके साथ ही मरने वाले चीतों की संख्या आठ हो गयी है। यह चीता निरीक्षण दल को कूनो के जंगल में घायल अवस्था में मिला था।
भारत से लुप्त हो चुके चीतों को संरक्षण देने और इसकी आबादी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार इन्हें नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से यहां लाई है। इन चीतों को यहां की आबोहवा में समायोजित करने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। पहली बार जब चीते कूनो पार्क में लाए गए थे तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उनको बाड़े में छोड़ा था। बावजूद इसके बाड़े में रखे और जंगल में छोड़े गए चीतों की मौतें चिंताजनक हैं।
सवाल यह है कि :-
- चीतों की मौत की वजह क्या है?
- क्या इनके संरक्षण और निगरानी में घोर लापरवाही बरती जा रही है?
- क्या आधी-अधूरी तैयारी के साथ चीतों को जंगलों में छोड़ा जा रहा है?
- इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है?
- चीतों की मौतों पर सरकार गंभीर क्यों नहीं है?
- क्या ऐसे ही चीतों का संरक्षण संभव होगा?
भारत में चीतों को बसाने और इनकी आबादी बढ़ाने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पहल परवान चढ़ती नहीं दिख रही है। बाहर से लाए गए चीतों और उनके शावकों की मौतों को सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है। सच यह है कि आज तक इनकी मौतों की वजह पूरी तरह साफ नहीं हो सकी है। ऐसे में संरक्षण के तरीकों और कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग रहे हैं।
नामीबिया से आठ और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते भारत मंगवाए थे
दरअसल, केंद्र ने नामीबिया से आठ और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते भारत मंगवाए थे। इसमें से एक मादा चीता ने चार शावकों को जन्म भी दिया था। इसमें तीन की मौत हो गई। इस समय 11 चीते खुले जंगल व चार चीते व एक शावक को बाड़े में रखा गया है। खुले जंगल में चीते की मौत की यह पहली घटना है। इसने साफ कर दिया है कि कहीं न कहीं कोई बड़ी खामी है, जिसके कारण चीतों की जान पर बन आई है।
जंगल में चीते की मौत से साफ है कि रफ्तार के राजा को आधी-अधूरी तैयारी के साथ यहां छोड़ा गया। वह बाड़े में ठीक ढंग से प्रशिक्षित नहीं हो सका। ऐसे में किसी दूसरे जानवर के हमले में वह मारा गया। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि वह शिकारियों के हाथों मारा गया हो। यह सब तब हुआ जब निगरानी तंत्र को इस पर नजर रखने को कहा गया था।
यही नहीं बाड़े में होने वाली चीतों की मौत से भी लापरवाही उजागर होती है। आखिर क्या वजह है कि बीमार शावकों को तत्काल इलाज नहीं उपलब्ध कराया जा सका। सरकार को चाहिए कि वह चीतों की लगातार होती मौतों की गहन जांच-पड़ताल कराए और कारणों को तत्काल प्रभाव से दूर करें। यही नहीं उसे लापरवाह कर्मियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी करनी चाहिए। इसके अलावा चीतों के संरक्षण और सुरक्षा की जवाबदेही तय की जानी चाहिए अन्यथा स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।
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