संपादक की कलम से: ट्रेन हादसे से उठते सवाल
हकीकत यह है कि आज भी कई राज्यों में जर्जर हो चुकी ट्रेन पटरियों को बदला नहीं जा सका है। कई रेलवे पुल अपनी मियाद पूरी कर चुके हैं लेकिन इनके पुनर्निर्माण का काम नहीं किया गया है। सिग्नल सिस्टम के कारण भी कई हादसे हो चुके हैं।
Sandesh Wahak Digital Desk: ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण ट्रेन हादसे में अब तक 288 यात्रियों को मौत हो चुकी है जबकि 800 से अधिक घायल हो गए हैं। पीएम ने घटनास्थल का दौरा किया और मामले की जानकारी ली। केंद्र व रेलवे ने मृतकों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजे का ऐलान किया है लेकिन एक ही स्थान पर तीन ट्रेनों कोरोमंडल व हावड़ा एक्सप्रेस और मालगाड़ी का दुर्घटनाग्रस्त होना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है।
सवाल यह है कि…
- इतनी बड़ी दुर्घटना कैसे हुई?
- क्या ट्रेन की पटरियों से कोई छेड़छाड़ की गई?
- क्या ट्रेनों मेें एंटी कॉलिजन सिस्टम लगा था, यदि हां, फिर टक्कर क्यों हुई? क्या पटरियों में कोई क्रैक था या फिश प्लेट ढीली थी?
- क्या ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम फेल हो गया?
- स्टेशन के पास ट्रेन इतनी रफ्तार से क्यों गुजरी?
- सवाल और भी हैं और इसके जवाब खोजने जरूरी हैं।
आधुनिकता के साथ सुरक्षा का भी रखना होगा ख्याल
दुनिया में रेल नेटवर्क के मामले में भारत चौथे नंबर पर है। भारत का रेल नेटवर्क 70,225 किमी है और ट्रैक की लम्बाई 1,26,366 किलोमीटर है। करीब 71 फीसदी रूट्स इलेक्ट्रिफाइड हैं। यहां ट्रेनों के जरिए लाखों लोग रोजाना एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्राएं करते हैं। मालगाडिय़ां सामान की ढुलाई कर रही हैं। ऐसे में रेलयात्रा को सुरक्षित बनाना सरकार का बड़ा दायित्व है। ट्रेनों को स्मार्ट बनाया जा रहा है। इसके संचालन सिस्टम को भी बेहतर बनाने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
एंटी ट्रेन कॉलिजन सिस्टम को करना होगा बेहतर
पिछले साल ही रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने एंटी कॉलिजन सिस्टम का परीक्षण किया था और इससे ट्रेनों को लैस किया गया था। एंटी ट्रेन कॉलिजन सिस्टम के कारण एक ट्रैक पर दो ट्रेनें एक दूसरे की ओर आने के बावजूद टकराती नहीं है बल्कि सिस्टम के कारण उन दोनों ट्रेनों में खुद-ब-खुद ब्रेक लग जाते हैं। इस तकनीक से ट्रेन दुर्घटनाओं को कम किया जा सकेगा। दक्षिण मध्य रेलवे की जारी परियोजनाओं में अब तक इस सिस्टम को 1098 किलोमीटर मार्ग पर लगाया जा चुका है। इसके अलावा अन्य परियोजनाओं में भी इसका प्रयोग किया जा रहा।
जाहिर है, अभी तक पूरे रेलवे ट्रैक को इस सिस्टम से लैस नहीं किया गया है। हकीकत यह है कि आज भी कई राज्यों में जर्जर हो चुकी ट्रेन पटरियों को बदला नहीं जा सका है। कई रेलवे पुल अपनी मियाद पूरी कर चुके हैं लेकिन इनके पुनर्निर्माण का काम नहीं किया गया है। सिग्नल सिस्टम के कारण भी कई हादसे हो चुके हैं।
सतर्कता के बावजूद ट्रेन हादसों का शिकार, क्यों?
हैरानी की बात यह है कि स्टेशन के करीब पहुंचने के बावजूद ट्रेन की रफ्तार कम नहीं हुई और वह पलट गयी और अन्य ट्रेनों से जा टकराईं। रेल पटरियों की नियमित निगरानी और सतर्कता के बावजूद यदि ट्रेन हादसे का शिकार हो रही हैं तो यह गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि हादसा क्यों हुआ इसका पता जांच रिपोर्ट आने के बाद भी चलेगा लेकिन सरकार को न केवल रेलवे ट्रैक पर गंभीरता से काम करना होगा बल्कि रेलवे की यात्रा को सुरक्षित बनाना होगा अन्यथा स्थितियां बिगड़ सकती हैं।
Also Read: संपादक की कलम से: बदलते परिवेश में भारत-नेपाल रिश्ते