संपादक की कलम से: मानसून के भरोसे महंगाई
महंगाई में वृद्धि का बड़ा कारण बढ़ती बेरोजगारी है। इससे लोगों की क्रय शक्ति घटी है। लिहाजा बाजार में पूंजी का प्रवाह पर्याप्त गति से नहीं हो रहा है।
Sandesh Wahak Digital Desk: भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी नयी मौद्रिक नीति की घोषणा कर दी है। बैंक ने रेपो दर को बरकरार रखा। यह दर 6.5 फीसदी रही है। हालांकि महंगाई को लेकर बैंक अभी भी चिंतित है और इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है। रेपो दर के स्थिर रहने से फिलहाल कर्ज पर ब्याज की दरें बढ़ेंगी नहीं। बावजूद इसके महंगाई को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक की चिंता कहीं अधिक गंभीर है क्योंकि इससे आम आदमी जुड़ा है और महंगाई हमेशा से सत्ता परिवर्तन का बड़ा कारण बनती रही है।
सवाल यह है कि…
- महंगाई पर लगाम क्यों नहीं लग पा रही है?
- रिजर्व बैंक की कोशिशें पूरी तरह सफल क्यों नहीं हो पा रही हैं?
- सरकार इस मामले पर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही है?
- क्या दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के कारण हालात संभल नहीं रहे हैं?
- क्या महंगाई पर नियंत्रण के लिए सामान्य मानसून ही एकमात्र रास्ता है?
यूरोपीय देशों की हालात भी है बदतर
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया है। आर्थिक महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका, जापान और चीन की हालत खस्ता है। यूरोप के विकसित देश मसलन फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। चीन में बेरोजगारी चरम पर है तो अमेरिका की आर्थिक हालत बदतर हो चुकी है। इस पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय देशों में भी हालात बदतर हो चुके हैं। जर्मनी की अर्थव्यवस्था पूरी तरह डगमगा चुकी है और वे भारत के साथ रक्षा सौदों के लिए लालायित हैं ताकि अपनी गिरती आर्थिक स्थिति को संभाल सकें।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट का एक बड़ा कारण रूस-यूक्रेन युद्ध भी है। इसके कारण तेल और अनाज के दाम आसमान पर पहुंच चुके हैं। यूरोपीय देश की खाद्यान्न आपूर्ति का चालीस फीसदी यूके्रन और रूस पर निर्भर है।
वैश्विक मंदी से प्रभावित है भारत की अर्थव्यवस्था
जहां तक भारत की अर्थव्यवस्था का सवाल है, वह भी वैश्विक मंदी से प्रभावित है। यही वजह है कि यहां महंगाई दर चार फीसदी के नीचे नहीं आ रही है। रिजर्व बैंक ने इसके 5.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है लेकिन यह दर कब तक कायम रहेगी, इसे कहा नहीं जा सकता। महंगाई में वृद्धि का बड़ा कारण बढ़ती बेरोजगारी है। इससे लोगों की क्रय शक्ति घटी है। लिहाजा बाजार में पूंजी का प्रवाह पर्याप्त गति से नहीं हो रहा है। विदेशी निवेश से भी बहुत अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि ये देश खुद अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में रिजर्व बैंक को केवल सामान्य मानसून से उम्मीद है।
यदि सामान्य मानसून रहा तो खाद्यान्न का उत्पादन बेहतर होगा और इससे लोगों की खरीद प्रक्रिया तेज होगी। इससे आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ेगी जो अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर का काम कर सकती है। बावजूद इसके सरकार को चाहिए कि वह रोजगार के साधन बढ़ाए ताकि लोगों की क्रय शक्ति बढ़े अन्यथा केवल मानसून अर्थव्यवस्था को संजीवनी नहीं दे पाएगी।
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