संपादक की कलम से: क्षेत्रीय दलों के प्रति उमड़ता प्रेम
लोकसभा चुनाव 2024 में फतह हासिल करने के लिए सियासी दलों ने कवायद तेज कर दी है। एक ओर जहां कर्नाटक फतह से उत्साहित कांग्रेस विपक्षी एकता में अपना अहम रोल ढूंढ रही है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा भी अपनी रणनीति पर काम कर रही है।
Sandesh Wahak Digital Desk: लोकसभा चुनाव 2024 में फतह हासिल करने के लिए सियासी दलों ने कवायद तेज कर दी है। एक ओर जहां कर्नाटक फतह से उत्साहित कांग्रेस विपक्षी एकता में अपना अहम रोल ढूंढ रही है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा भी अपनी रणनीति पर काम कर रही है। संप्रग और राजग लोकसभा चुनाव को देखते हुए अपने-अपने खेमों में क्षेत्रीय दलों को जगह देने की कवायद कर रहें हैं।
एक तरफ विपक्षी दलों में एकजुटता के प्रयास हो रहे हैं तो दूसरी ओर राजग ने भी नए साथियों की तलाश तेज कर दी है। केंद्रीय गृहमंत्री और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की हाल में हुई तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की यात्रा से इसके संकेत मिले। बीजेपी लंबे समय से दक्षिण भारत में अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रही है। 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भी उसने इस सिलसिले में तैयारियां शुरू कर दी हैं।
दक्षिण में नए दोस्त की तलाश में जुटी भाजपा
वैसे भी उत्तर भारत में वह पिछले लोकसभा चुनाव में इतना तगड़ा प्रदर्शन कर चुकी है कि इस बार उसे दोहराना मुश्किल लग रहा है। इसलिए अगर उसे फिर से बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आना है तो दक्षिण में सीटें बढ़ानी होंगी। इससे उत्तर भारत में सीटों की संख्या में संभावित कमी की भरपाई हो जाएगी। बीजेपी इस योजना पर विश्वास के साथ बढ़ भी रही थी, लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनावों से उसे झटका लगा। इसके बाद से कहा जा रहा है कि बीजेपी पहले जितनी ताकतवर नहीं रही। खैर, जो बात बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत साबित हुई है, वह यह कि हार हो या जीत, इससे निकले सबक को समझने और अपनाने में पार्टी देर नहीं करती। कर्नाटक में मिली हार के बाद भी बीजेपी यही कर रही है। वह दक्षिण में नए दोस्त बनाने की पहल कर रही है।
चंद्र बाबू नायडू काफी समय से बीजेपी के करीब आना चाहते थे, लेकिन पार्टी नेतृत्व उन्हें घास नहीं डाल रहा था। वजह शायद यह थी कि पिछले लोकसभा चुनावों में पहले नायडू ने न केवल राजग को बाय-बाय कह दिया था बल्कि उसके बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर तीखे हमले भी किए थे। मगर बदले हालात में बीजेपी न सिर्फ उनके संकेतों पर पॉजिटिव रेस्पॉन्स देने लगी बल्कि अमित शाह और नायडू की बैठक भी हो गई।
भाजपा से जुड़ सकते हैं ओपी राजभर
यही नहीं, यूपी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर के बेटे की शादी के मौके पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पत्र लिखकर नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया। इसके बाद यह चर्चा शुरू हो गई कि अगले लोकसभा चुनाव में सुभासपा फिर से भाजपा से जुड़ सकती है। माना जा रहा है कि दूसरे राज्यों में भी बीजेपी सहयोगियों की तलाश तेज कर सकती है। वह पहले इस तरह के कामयाब प्रयोग कर भी चुकी है।
हालांकि ये कोशिशें क्या रंग लाएंगी, इस बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन इधर बीजेपी जो संकेत दे रही है, उससे इतना तो पता चल ही रहा है कि पार्टी नए दोस्तों का स्वागत करने के मूड में है।
Also Read: संपादक की कलम से: बाघों की सुरक्षा और लापरवाह तंत्र