संपादक की कलम से: विकास का खाका और सियासत
देश को विकासशील से विकसित देश बनाने का खाका तैयार करने के लिए दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की आठवीं बैठक में विपक्षी दलों के आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज करायी।
Sandesh Wahak Digital Desk: देश को विकासशील से विकसित देश बनाने का खाका तैयार करने के लिए दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की आठवीं बैठक में विपक्षी दलों के आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज करायी। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, बिहार के नीतीश कुमार, तेलंगाना के केसी राव, तमिलनाडु के एमके स्टालिन, राजस्थान के अशोक गहलोत और केरल के पिनाराई विजयन ने जहां बैठक में न आने के कारण बताए वहीं दूसरी ओर दिल्ली के अरविंद केजरीवाल और पंजाब के भगवंत मान ने सीधे तौर पर इसका बहिष्कार किया।
सवाल यह है कि…
- विपक्षी दलों की राज्य सरकारों के मुखिया ऐसा क्यों कर रहे हैं?
- बहिष्कार के पीछे की मंशा क्या है?
- क्या देश का विकास बिना राज्यों के योगदान के संभव है?
- क्या राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति और अपने वोटरों को संदेश देने के लिए ऐसी अहम बैठक का बहिष्कार किया जा रहा है?
- क्या यह गैरजरूरी मांगों की पूर्ति के लिए केंद्र पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है?
- क्या केंद्र-राज्य सरकारों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत नहीं है?
नीति आयोग की बैठक आर्थिक नीतियों पर मंथन व उसे केंद्र और राज्यों के स्तर पर लागू करने के लिए बुलाई जाती है। इस बार आयोग की बैठक का विषय विकसित भारत 2047: रोल ऑफ टीम इंडिया था। इससे साफ है कि देश को किस प्रकार एक निर्धारित समय में विकसित देश बनाना, इस पर मंथन करना और केंद्र-राज्यों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर आर्थिक व अन्य नीतियों को पूरे देश में लागू करना है।
दलगत राजनीति से ऊपर हो देशहित
इसमें दो राय नहीं कि यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब केंद्र और राज्य मिलकर एक राह पर चलें लेकिन हालात इसके ठीक उलट है। विपक्षी दल बैठक में उपस्थित होना भी जरूरी नहीं समझ रहे हैं। वे देश हित से ऊपर दलगत राजनीति को रखते दिख रहे हैं। वे इस बात से भी नाराज हैं कि उन्होंने सत्ता प्राप्ति के लिए जनता को जिन वस्तुओं को मुफ्त में देने की घोषणाएं की थीं, उसकी पूर्ति के लिए केंद्र पैसे नहीं दे रहा है।
केंद्र और राज्य के बीच जारी है तनातनी
इसके अलावा लोकसभा चुनाव को करीब एक साल बचे हैं, इसलिए भी वे सत्तारूढ़ दल की सरकार का विरोध जोर-शोर से कर रहे हैं ताकि अपने वोटबैंक को सीधा संदेश दे सकें। भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों सीबीआई और ईडी की छापेमारी और कार्रवाई से भी ये दल नाराज हैं और केंद्र पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं। बावजूद इसके इन दलों को सोचना चाहिए कि यह बैठक सत्तारूढ़ भाजपा की नहीं बल्कि केंद्र की चुनी सरकार की नियामक संस्था की है और इसमें न जाने से वे अपने राज्य और वहां की जनता का ही नुकसान कर रहे हैं।
यह स्थितियां सुदृढ़ लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। वहीं केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह केंद्र और राज्यों के संबंधों में संतुलन साधने की कोशिश करे अन्यथा हालात खराब ही होंगे।
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