संपादक की कलम से : भाजपा का सियासी दांव
Sandesh Wahak Digital Desk : बीजेपी ने होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी शंखनाद कर दिया है। बीते दिनों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए 60 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर भाजपा ने सबको चौंका दिया। 2024 के आम चुनाव से पहले इस साल विधानसभा चुनाव जो पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में होने हैं, लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान की विशेष अहमियत इस नजरिए से है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है।
हिमाचल प्रदेश और खासकर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों मात खाने के बाद भाजपा इन तीनों राज्यों में किसी तरह का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। शायद इसीलिए निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव की तारीखों का ऐलान होने से भी पहले भाजपा ने इन दो राज्यों में प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह चुनाव तैयारियों के मामले में अपने प्रतिद्वंद्वी दलों से काफी आगे है।
बीजेपी नेतृत्व अन्य दलों के मुकाबले कहीं ज्यादा गंभीर
जहां तक राजस्थान का सवाल है तो प्रत्याशियों की सूची भले न जारी की गई हो, लेकिन दो अहम समितियां चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प पत्र समिति जरूर गठित कर दी गईं। पहली नजर में, ये कदम बताते हैं कि चुनाव की तैयारियों को लेकर बीजेपी नेतृत्व अन्य दलों के मुकाबले कहीं ज्यादा गंभीर है। लेकिन थोड़ा ठहर कर देखें तो इन कदमों के साथ भी कई किंतु-परंतु जुड़े नजर आते हैं।
बेशक, चुनावों से काफी पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित करने के कई फायदे हैं। एक तो इन प्रत्याशियों को अपने क्षेत्र में काम करने का वक्त मिल जाता है, दूसरे पार्टी नेतृत्व के पास भी इस बात का मौका होता है कि अगर आधिकारिक प्रत्याशी के खिलाफ असंतोष या बगावत जैसी स्थिति बने तो उससे समय रहते निपट सके या संभावित नुकसान को कम कर सके। मगर इसी का दूसरा पहलू यह है कि फैसले से असंतुष्ट तत्व भी जवाबी कदम तय करने का वक्त पा जाते हैं।
जातीय और अन्य समीकरणों का ध्यान
विरोधी दलों के सामने भी यह मौका होता है कि वे प्रतिद्वंद्वी पार्टी के प्रत्याशी को देखकर और उससे क्षेत्र विशेष में बने जातीय और अन्य समीकरणों का ध्यान रखते हुए अपने प्रत्याशी तय करें। संभवत: इन्हीं कारणों से बीजेपी ने पहली सूची में उन्हीं सीटों को रखा जहां उसकी स्थिति कमजोर मानी जा रही है।
ये सभी सीटें ऐसी हैं जहां पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी को हार मिली थी। जहां तक राजस्थान की बात है तो दोनों अहम समितियों का गठन होते ही इस बात पर चर्चा शुरू हो गई कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को इनमें जगह नहीं दी गई। चर्चा की वजह यह है कि पार्टी नेतृत्व के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं माने जा रहे। बहरहाल, चुनावों में अभी वक्त है और ऐसी चर्चा और जवाबी चर्चा अभी हर दल में उठती और मंद पड़ती रहेगी। इतना जरूर है कि चुनाव आयोग की घोषणा से पहले ही विधानसभा चुनावों के समर का शंखनाद हो चुका है और अब दोनों पक्षों की ओर से रस्साकसी का दौर शुरू हो गया है।
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