संपादक की कलम से: पर्यावरण संरक्षण पर एक्शन की जरूरत
योगी सरकार के पहले कार्यकाल में 100 करोड़ पौधों का रोपण किया गया था जिसे दूसरे कार्यकाल में बढ़ाकर 175 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। बावजूद इसके इन सारी कवायदों का कोई खास असर प्रदेश में नहीं दिख रहा है।
Sandesh Wahak Digital Desk: विश्व पर्यावरण दिवस पर उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में विमर्श और चिंतन का दौर चला। कई उपाय सुझाए गए, शपथें खाई गईं। भविष्य को बेहतर बनाने के दावे भी किए गए। उत्तर प्रदेश के सीएम ने लोगों से पर्यावरण अनुकूल आचरण अपनाने की अपील की। साथ ही सरकार की तरफ से पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा ठोस उपायों की चर्चा की। ग्रामीण जनप्रतिनिधियों से वृक्षारोपण अभियान में बढ़ चढक़र हिस्सा लेने का आह्वान भी किया।
सवाल यह है कि…
- क्या पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का असर जमीन पर दिख रहा है?
- हर साल कई करोड़ वृक्षों के रोपण के बावजूद प्रदेश के तमाम जिलों में हरियाली क्यों नहीं दिखती है?
- वनों का क्षेत्रफल तेजी से क्यों नहीं बढ़ रहा है?
- तमाम शहरों में प्रदूषण का स्तर कम क्यों नहीं हो रहा है?
- क्या जनभागीदारी के बिना हालात में सुधार संभव है?
- क्या पर्यावरण संरक्षण पर चिंतन भी वृक्षारोपण अभियान की तरह औपचारिकता बनकर रह गया है?
वृक्षारोपण अभियान के बावजूद नहीं दिख रहा असर
प्रदूषण से मुक्ति और पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर यूपी सरकार ने सघन वृक्षारोपण का अभियान पिछले कई सालों से चला रखा है। इस वर्ष भी प्रदेश भर में 35 करोड़ पौधों को रोपने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस मुहिम के लिए वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है। वन विभाग की निगरानी में सरकार के 27 विभाग मिलकर पौधरोपण के अभियान को चलाएंगे। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में 100 करोड़ पौधों का रोपण किया गया था जिसे दूसरे कार्यकाल में बढ़ाकर 175 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। बावजूद इसके इन सारी कवायदों का कोई खास असर प्रदेश में नहीं दिख रहा है। पांच साल में इतने पौधों के बावजूद प्रदेश का वन क्षेत्र का विस्तार रफ्तार नहीं पकड़ सका है।
प्रदेश के तीस जिलों में वन क्षेत्र महज दो फीसदी रह गया है। यूपी में कुल वन क्षेत्र 9.23 फीसदी है और यदि यही हालत रही तो 2030 तक वन क्षेत्र को 15 फीसदी करने का लक्ष्य सरकार शायद ही हासिल कर सके।
संबंधित विभाग पर्यावरण संरक्षण पर नहीं देते ध्यान
हकीकत यह है कि पौधरोपण के बाद संबंधित विभाग पौधों के संरक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं करते हैं लिहाजा लाखों पौधे हर साल सूख जाते हैं। वहीं वृक्षों की अवैध कटाई जारी है। दूसरी ओर प्रदूषण नियंत्रण के लिए जरूरी उपाय भी नहीं किये जा रहे हैं। प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारकों मसलन, सडक़ पर उड़ती धूल, खुले में पड़ी निर्माण सामग्री और पुराने वाहनों पर नियंत्रण लगाने में सरकारी विभाग आज तक सफल नहीं हो सके हैं। इनको रोकने के आदेशों को ठंडे बस्ते में डाल लिया गया है।
घातक स्तर पर पहुंचा लखनऊ का प्रदूषण
यही वजह है कि प्रदेश के अधिकांश शहर प्रदूषण से जूझ रहे हैं। राजधानी लखनऊ की हवा में धूल कणों, लेड और निकिल का प्रतिशत घातक स्तर तक पहुंच चुका है। जाहिर है यदि सरकार पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना चाहती है तो उसे प्रदूषण के कारकों पर लगाम लगानी और जनभागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
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