संपादक की कलम से : पराजित कांग्रेस निशाने पर क्यों?

Sandesh Wahak Digital Desk:दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के सत्ता से बेदखल किए जाने पर इंडिया गठबंधन के साथी दल कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि यदि कांग्रेस-आम आदमी पार्टी साथ चुनाव लड़ती तो नतीजे कुछ और होते। कांग्रेस के प्रति यह आक्रामकता तब है जब वह दिल्ली चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल सकी है। उसके 67 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो चुकी है। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल गठबंधन के सहयोगी दलों के निशाने पर नहीं है।
सवाल यह है कि
- क्षेत्रीय दल दिल्ली विधानसभा में बुरी तरह पराजय का मुंह देखने वाली कांग्रेस पर आगबबूला क्यों हैं?
- क्या आने वाले दिनों में इंडिया गठबंधन के बिखरने का खतरा दिखाई देने लगा है?
- क्या वाकई यदि कांग्रेस-आप साथ लड़ती तो चुनाव नतीजे बदल जाते?
- क्या दिल्ली में कांग्रेस के एकला चलो की नीति से इन दलों के मुखियाओं को अपने वोट बैंक छिटकने का डर सता रहा है?
- क्या कांग्रेस ने अब समझ लिया है कि ये क्षेत्रीय दल उसके ही वोट बैंक में सेंध लगाकर फले-फूले हैं और अब पार्टी अपने जनाधार को मजबूत करने में जुट गयी है?
दलों के शीर्ष नेतृत्व पर निर्भर करती है राजनीति
राजनीति बहुत जटिल होती है। यह बहुत कुछ दलों के शीर्ष नेताओं पर निर्भर करती है कि वे अपनी रणनीति कैसे तय करते हैं। इंडिया गठबंधन के जरिए भाजपा को लोकसभा में हराने की कोशिश कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों ने की। हालांकि वे सफल नहीं हुए। वहीं कांग्रेस अब समझ चुकी है कि जिन क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनकर वह चुनाव लड़ रही है, वे उसके ही वोट बैंक में सेंध लगाकर यहां तक पहुंचे हैं। एक समय था जब मुस्लिम और दलित कांग्रेस के कोर वोटर हुआ करते थे। विभिन्न राज्यों में उभरे अधिकांश क्षेत्रीय दल इसी वोट बैंक को अपने पाले में कर फले-फूले। लिहाजा वे नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़े। ऐसा करने से उनका कोर वोटर कांग्रेस के पाले में जा सकता है।
उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस पर फोड़ा ठिकरा
यही वजह है कि नेशनल कांफ्रेस के उमर अब्दुल्ला से लेकर इंडिया गठबंधन के अन्य क्षेत्रीय दल आम आदमी पार्टी की हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ रहे हैं। यह कांग्रेस पर प्रकारांतर से दबाव बनाने की रणनीति है ताकि वह एकला चलो की अपनी रणनीति पर नहीं चले और उनका वोट बैंक बचा रहे। दलों को यह समझना चाहिए कि दिल्ली में यदि आप-कांग्रेस गठबंधन हो जाता तो वहां उसकी सरकार बन जाती।
सियासत में इसकी गारंटी नहीं होती है कि गठबंधन कर लेने से कांग्रेस समर्थक आप को वोट दे देंगे। यदि ऐसा होता तो लोकसभा चुनाव में आप-कांग्रेस गठबंधन दिल्ली में सिफर नहीं होता। यूपी में सपा-बसपा व कांग्रेस-सपा एकसाथ चुनाव लडऩे के बाद भी मुंह के बल आ गए थे। कांग्रेस भले ही दिल्ली में खाता नहीं खोल पायी हो लेकिन उसका वोट तीन फीसदी बढ़ा है। जाहिर है, यदि कांग्रेस एकला चलो की राह पर चली तो गठबंधन का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
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