संपादक की कलम से: जर्जर सड़कों का जिम्मेदार कौन?

Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी सरकार के तमाम दावों के बावजूद सड़कों का कायाकल्प नहीं हो रहा है। हालात ये हैं कि हल्की बारिश में प्रदेश के तमाम जिलों में सड़कें धंस रही हैं और लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। राजधानी लखनऊ तक में सड़कें खस्ताहाल हैं। यहां की कई सड़कों में गड्ढे बन चुके हैं तो कई धंस चुकी हैं। यह स्थिति तब है जब सरकार स्मार्ट सिटी बनाने का दम भरती रहती है।

सवाल यह है कि :

  • पिछले साढ़े सात वर्षों में भी प्रदेश की सड़कें गड्ढा मुक्त क्यों नहीं हो सकीं?
  • क्या घटिया निर्माण के कारण यहां की सड़कें जर्जर हो गयी हैं?
  • क्या ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत के कारण सड़कों के निर्माण में जरूरी मानकों को दरकिनार किया जा रहा है?
  • क्या सड़कें भ्रष्टाचार का शिकार हो चुकी हैं?
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति बेअसर क्यों साबित हो रही है?
  • आखिर सड़कों के निर्माण के लिए जारी होने वाला भारी-भरकम बजट कहां खर्च किया जा रहा है?
  • क्या ऐसे ही प्रदेश में स्मार्ट सिटी का सपना साकार होगा?
  • क्या लोगों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?

प्रदेश की सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने ऐलान किया था कि वह यूपी की सड़कों को चमका देगी और कहीं भी गड्ढा नहीं दिखेगा। साढ़े सात वर्षों से प्रदेश की जनता यह वादा सुनती आ रही है लेकिन इसे जमीन पर उतरता नहीं देख पा रही है। प्रदेश की सडक़ों की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। हालांकि इस दौरान कई सडक़ों का निर्माण किया गया लेकिन वे भी पहली ही बारिश में उखड़ गयी हैं। लखनऊ में बारिश के दौरान अब तक कई स्थानों की सड़कें कई फीट धंस चुकी हैं।

कमीशनखोरी और मोटे मुनाफे के कारण घटिया सड़कों का निर्माण जारी

यहां के कई इलाकों की सड़कों पर वाहन चलाना दूभर हो चुका है। इनमें गड्ढे ही गड्ढे बन चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि सडक़ों को गड्ढा मुक्त करने के सीएम के आदेशों को भी दरकिनार किया जा रहा है। जब राजधानी में यह हाल है तो दूसरे जिलों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार ने पूरे तंत्र को चौपट कर दिया है। सड़क निर्माण में जमकर धांधली की जा रही है। ठेकेदार और संबंधित विभाग के अफसरों की मिलीभगत से पूरा खेल चल रहा है। कमीशनखोरी और मोटे मुनाफे के कारण घटिया सड़कों का निर्माण जारी है।

खस्ताहाल सड इसका उदाहरण हैं। साफ है कि सरकारी तंत्र पर सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति का असर कहीं नहीं दिख रहा है। यदि सरकार वाकई सड़कों को गुणवत्तायुक्त बनाना चाहती है तो उसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होगा। साथ ही ठेकेदार और संबंधित विभाग की जवाबदेही तय करनी होगी। सरकार को चाहिए कि वह एक निर्धारित अवधि में सड़कों के खराब होने पर संबंधित निर्माण एजेंसी से उसका बिना कोई शुल्क दिए पुनर्निर्माण कराए। साथ ही निर्माण का ठेका देने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए अन्यथा हालात और बिगड़ेंगे।

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