संपादक की कलम से: ढहती इमारत से सबक कब?

Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक बार फिर इमारत ढह गई। इस तीन मंजिला इमारत के मलबे में दबकर आठ लोगों की मौत हो गयी और करीब दो दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। इस मामले में संबंधित इमारत मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी गयी है और सरकार ने हादसे की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित की है। मकानों और इमारतों के ढहने की घटनाएं केवल लखनऊ ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों में भी हो चुकी है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि :

  • इन हादसों से सरकार और संबंधित विभाग के अफसर सबक क्यों नहीं लेते हैं?
  • क्या मकानों और इमारतों के निर्माण में तय मानकों की अनदेखी की जा रही है?
  • जर्जर भवनों के खिलाफ नगर निगम, नगरपालिकाएं और निर्माण विभाग जरूरी कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं?
  • आखिर ऐसे हादसों में होने वाली मौतों का कौन जिम्मेदार है?
  • क्या मुआवजा देने भर से हादसों में अपनों को खोने का दर्द खत्म हो जाएगा?
  • हादसे के बाद बनी कमेटियों की जांच रिपोर्ट और उनके द्वारा सुझाए गए उपायों का पालन क्यों नहीं कराया जा रहा है?
  • क्या लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की छूट किसी को दी जा सकती है?

अलाया अपार्टमेंट भी हुआ था धराशायी

लखनऊ में इमारतें के जमींदोज होने की यह कोई पहली घटना नहीं है। तीन जनवरी 2024 को नाका के आर्यनगर में खुदाई के दौरान तीन और दो मंजिला इमारतें ढह गयी थीं। वहीं 24 जनवरी 2023 में हजरतगंज में चार मंजिला अलाया अपार्टमेंट धराशायी हो गया था। इस हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। तब भी सरकार ने तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर हादसे की जांच करायी थी। जांच में बिना विशेषज्ञों के खुदाई और संबंधित विभाग की लापरवाही सामने आयी थी।

इसी तरह अन्य जिलों में भी जर्जर भवनों के गिरने की सूचनाएं मिलती रहती हैं। लखनऊ में 278 जर्जर भवन चिन्हित किए गए हैं। हर बार नगर निगम इनके स्वामियों को नोटिस जारी कर लिस्ट एलडीए को भेजकर देता है। यहां कई वर्षों से यही खेल चल रहा है। आज भी इन जर्जर भवनों में लोग जान जोखिम में डालकर रह रहे हैं और कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। यही हाल अन्य शहरों का भी है।

हैरानी की बात यह है कि बड़े हादसे के बाद सरकार और संबंधित विभाग के अफसर अचानक सक्रिय हो जाते हैं और मामले के ठंडा पड़ते ही सबकुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। जांच रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है। कुल मिलाकर विभागीय रवैया घोर लापरवाही पूर्ण है और यह स्थिति बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।

यदि सरकार ऐसे हादसों को रोकना चाहती है तो उसे न केवल बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में तय मानकों का न केवल कड़ाई से पालन कराना होगा बल्कि संबंधित विभाग के अधिकारियों को जवाबदेह बनाना होगा। साथ ही जांच रिपोर्ट में सुझाए गए उपायों का भी सख्ती से पालन सुनिश्चित करना होगा अन्यथा स्थितियां विकट हो जाएंगी।

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